वरुण गांधी ने बीजेपी को फिर लिया निशाने पर, एमएसपी पर लिखी चिट्ठी
कृषि क़ानून और दूसरे मुद्दों पर अपनी ही पार्टी और केंद्र व राज्य सरकारों पर लगातार हमले बोलते रहने वाले बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने एक बार फिर अपनी पार्टी और सरकार को निशाने पर लिया है।
बीजेपी के इस सांसद ने इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) का मुद्दा उठाया है। उन्होंने एमएसपी क़ानून को लेकर कुछ सुझावों की एक लिस्ट संसद को सौंपी है।
India's farmers & her governments have long debated the agricultural crisis,in & out of commissions.The time has come for an MSP law.I’ve created & submitted to parliament what I believe to be an actionable piece of legislation.I welcome any critique of it.https://t.co/oUCRSNW0Te pic.twitter.com/BiX2AGoED4
— Varun Gandhi (@varungandhi80) December 12, 2021
क्या कहा वरुण गांधी ने?
उन्होंने इसके साथ ही ट्वीट भी कर दिया। उन्होंने ट्वीट में लिखा,
“
भारत के किसान और उनकी सरकारें लंबे समय से कृषि संकट पर बहस कर रही हैं। एमएसपी कानून का समय आ गया है।
वरुण गांधी, सांसद, बीजेपी
उन्होंने इसके आगे कहा, "मैंने प्रस्ताव तैयार किया और उसे संसद को सौंपा है, मुझे लगता है कि यह कानून का एक ज़रूरी हिस्सा हो सकता है। इस पर मैं किसी भी आलोचना का स्वागत करता हूँ।"
वरुण से परेशान बीजेपी?
लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब वरुण गांधी ने अपनी ही सरकार और पार्टी की आलोचना की है।
उन्होंने इसके पहले 30 नवंबर को 'इंडियन एक्सप्रेस' में एक लेख लिख कर अर्थव्यवस्था पर सरकार की नीतियों और उसके कामकाज की आलोचना की थी। उन्होंने 'पॉलिसी मेकर्स मस्ट ब्रेक इंडियाज़ साइकिल ऑफ पॉवर्टी' में लिखा था, "पिछले दशक में हमारे नीति निर्माताओं ने लगातार सैकड़ों अप्रभावी नीतियों की घोषणा की। इन नीतियों का लक्ष्य भारत में मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्सहान देना था। नौकरियाँ पैदा करनी थी और किसानों की आमदनी बढ़ानी थी।"
इसी तरह वरुण गांधी ने बेरोज़गारी और नियुक्ति परीक्षा में घपले के मुद्दे को उठा कर सवाल किया था कि युवा आखिर कब तक सब्र रखे।
वरुण गांधी ने ट्वीट किया था, "पहले तो सरकारी नौकरी ही नहीं है, फिर भी कुछ मौक़ा आए तो पेपर लीक हो, परीक्षा दे दी तो सालों साल रिजल्ट नहीं, फिर किसी घोटाले में रद्द हो। रेलवे ग्रुप डी के सवा करोड़ नौजवान दो साल से परिणामों के इंतज़ार में हैं। सेना में भर्ती का भी वही हाल है। आख़िर कब तक सब्र करे भारत का नौजवान?''