उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में हाल में 'गैर हिंदुओं' को चेतावनी देने वाले बोर्ड लगे थे। इसमें 'रोहिंग्या मुसलमानों' और 'फेरीवालों' को चेतावनी दी गई थी। उनके गाँवों में घुसने या घूमने को प्रतिबंधित किया गया था। प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को दंड देने की बात कही गई थी। वैसे, तो इन बोर्डों पर 'समस्त ग्रामवासी की आज्ञा से' पर लिखा था, लेकिन कई ग्रामीण इससे समहत भी नहीं हैं। ग्रामीण तो कहते हैं कि पहले उन्होंने ऐसी चीजें नहीं देखी थीं। तो सवाल है कि अब यह कैसे होने लगा है और कौन यह सब कर रहा है?
केदारनाथ यात्रा के दौरान बीच में एक प्रमुख पड़ाव रुद्रप्रयाग है। यह इलाक़ा शांतिपूर्ण और शौहार्दपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता रहा है। वहाँ के गांवों में समुदाय शांतिपूर्वक एक साथ काम करते देखे जाते रहे हैं, उनकी आजीविका उत्तराखंड में तीर्थयात्रा के मौसम से जुड़ी हुई है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में हालात एकदम से बदल गए हैं।
हालात कितने बदल गए हैं, इसको इससे समझा जा सकता है कि अब समुदाय विशेष के लोगों को चेतावनी देने वाले बोर्ड लगाए गए हैं। उन बोर्डों पर लिखा है, 'चेतावनी: गैर-हिंदुओं/रोहिंग्या मुसलमानों और फेरीवालों को गांव में घूमने और व्यापार करने से प्रतिबंधित किया गया है। अगर गांव में कहीं भी मिलता है, तो दंडात्मक और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।'
ऐसा माहौल तब सामने आया है जब बीते हफ्ते चमोली में हुई यौन शोषण की एक घटना के बाद स्थानीय लोगों ने समुदाय विशेष के लोगों पर कार्रवाई करने के लिए विरोध-प्रदर्शन किया। प्रशासन ने बाद में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन यहाँ से शुरू हुआ विवाद बाद में यह फैलता गया और अब रुद्रप्रयाग के गाँवों तक यह मामला पहुंच गया है।
पुलिस का कहना है कि रुद्रप्रयाग में कुछ पोस्टर लगाने के मामले सामने आए थे, जिसमें पुलिस द्वारा ग्रामीणों के साथ और स्थानीय लोगों के साथ बातचीत से समन्वय बनाने की कोशिश की गई है। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड पुलिस के प्रवक्ता दिनेश भरणे ने कहा है कि यदि कोई माहौल बिगाड़ने की कोशिश करता है तो उस पर संबंधित धाराओं में कार्रवाई की जाएगी।
मैकांडा की प्रधान चांदनी देवी के पति प्रवीण कुमार ने कहा कि गांवों में यह अभियान पिछले एक साल से चल रहा है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'एक हफ़्ते पहले मेरे गाँव में कुछ लोगों ने बोर्ड लगाया था, जिसके बाद मुझे पुलिस से फ़ोन आया कि हम सांप्रदायिक टिप्पणी नहीं कर सकते।' कुछ किलोमीटर दूर शेरसी गांव में नाई की दुकान चलाने वाले 28 वर्षीय नदीम ने कहा, 'मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी यहीं बिताई है, लेकिन ऐसी चीज़ें पहली बार हो रही हैं।'
अंग्रेजी अख़बार ने पांच गांवों के लोगों से बातचीत के आधार पर कहा है कि लोगों में अलग-अलग चिंताएँ हैं। मंदिरों में कथित चोरी से संबंधित "सुरक्षा चिंताओं", स्थानीय मुद्दों जैसे कि बारिश से संबंधित घटनाओं और व्यवसायों पर "बाहरी लोगों द्वारा कब्ज़ा" किए जाने के बारे में निराधार बयान सामने आए।
खुद को हिंदुत्व समर्थक संगठन भैरव सेना के जिला अध्यक्ष बताने वाले एक स्थानीय निवासी अशोक सेमवाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'मैंने सुरक्षा चिंताओं के कारण बाहरी लोगों को रोकने के लिए दो महीने पहले शेरसी में बोर्ड लगाया था। हाल के दिनों में, मंदिरों से लोगों द्वारा चोरी की घटनाएं हुई हैं। हमें संदेह है कि वे व्यापार करने के बहाने बाहर से आ रहे हैं।'
मैकांडा और शेरसी के अलावा न्यालसू, त्रियुगीनारायण, बडासू, जामू, अरिया, रविग्राम, सोनप्रयाग और गौरीकुंड जैसे गांवों में भी इसी तरह के बोर्ड लगे थे। गुप्तकाशी थाना प्रभारी राकेंद्र कठैत ने बताया कि उन्होंने इन गांवों में बोर्ड हटाने के लिए टीमें भेजी थीं। कठैत ने कहा, 'शनिवार तक अधिकांश बोर्ड हटा दिए गए थे। हमने निवासियों को बताया कि अगर उन्हें कोई संदिग्ध व्यक्ति मिले तो वे पुलिस को सूचित कर सकते हैं। इस तरह के बोर्ड लगाना गलत है।' सेमवाल ने दावा किया कि कई अन्य गांवों ने भी उनके नक्शेकदम पर चलते हुए ऐसा किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि अब उन्हें शब्दों के चयन पर पछतावा है। उन्होंने कहा है कि हम 'गैर-हिंदू और रोहिंग्या मुस्लिम' शब्दों को हटाकर 'बाहरी और फेरीवाले' शब्द लगा देंगे और बोर्ड फिर से लगा देंगे... हम प्रशासन पर यह सुनिश्चित करने का दबाव भी डालेंगे कि दुकानदार और विक्रेता अपनी दुकानों के बाहर अपना नाम लिखें।'
एक होटल मालिक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि चारधाम यात्रा से कमाई करने वाले अन्य समुदायों के सदस्यों द्वारा राज्य की केदार घाटी में हाल ही में हुई बारिश से संबंधित आपदाओं के दौरान मदद के लिए आगे न आने की बात तनाव को और बढ़ा रही है। उन्होंने कहा, 'इस बात का भी डर है कि राज्य की जनसांख्यिकी बदल रही है, स्थानीय व्यवसायों पर बाहरी लोगों का कब्जा हो रहा है।'