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मुख्यमंत्री की ढील कुंभ को न बना दे 'महामारी का महाकुंभ'!

मुख्यमंत्री की ढील कुंभ को न बना दे 'महामारी का महाकुंभ'!

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का गंगा स्नान के लिए हरिद्वार आने वालों पर कोविड—19 निगेटिव रिपोर्ट लाने की अनिवार्यता ख़त्म करने वाला आदेश क्या कुंभ मेले को श्रद्धालुओं के लिए 'महामारी का महाकुंभ' साबित कर देगा? 

क्या तीरथ सिंह रावत का गंगा स्नान के लिए हरिद्वार आने वालों पर कोविड—19 निगेटिव रिपोर्ट लाने की अनिवार्यता ख़त्म करने वाला तुगलकी आदेश कुंभ मेले को श्रद्धालुओं के लिए 'महामारी का महाकुंभ' साबित कर देगा? उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री रावत, कुंभ के पहले ही शाही स्नान शिवरात्रि पर ख़ुद सारे नियम तोड़ कर कुंभ मेला प्रशासन की महीनों की मेहनत पर पानी फेर चुके हैं।

प्रशासन ने पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की सदारत में शाही स्नान के दिन मेले में वीआईपी व्यक्तियों की शिरकत पर रोक लगाई थी मगर तीरथ सिंह 10 मार्च को पदभार संभालने के अगले ही दिन शाही स्नान में हरकी पैड़ी जा पहुँचे। साथ ही उन्होंने कुंभ में महामारी संबंधी कड़े नियंत्रण भी हटवा दिए। इससे 14 अप्रैल को कुंभ के मुख्य स्नान पर 24 घंटे में ही एक करोड़ से अधिक लोगों द्वारा गंगा स्नान के अनुमान के मद्देनज़र संक्रमण बेकाबू हो सकता है। 

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और कुंभ स्नान के लिए इनके सहित उत्तरी एवं पश्चिमी राज्यों से ही अधिकतर श्रद्धालु हरिद्वार आते हैं। तो क्या बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के लिए वोट, देश की जनता की जान से भी ज़्यादा क़ीमती हैं? 

नए मुख्यमंत्री द्वारा महामारी नियंत्रण नियमों में ढील का पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी विरोध किया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने देश में कोविड संक्रमितों की संख्या तेज़ी से बढ़ने पर ध्यान दिलाया। उनके अनुसार कुंभ सिर्फ़ राज्य तक सीमित नहीं है बल्कि देश एवं दुनिया का पर्व है। इसलिए महामारी से बचाव और उसका संक्रमण रोकने के कड़े उपाय ज़रूरी हैं। वे इसीलिए कुंभ स्नान आयोजन को सीमित करना चाहते थे मगर तीरथ सिंह एहतियात ताख पर रखकर वोटों के लिए कुंभ को व्यापक और भव्य बनाना चाहते हैं। वे श्रद्धालुओं के बगैर अखाड़ों की शोभायात्रा को निरर्थक बता रहे हैं।

गाइडलाइन के अनुसार, मास्क और सैनिटाइजर अनिवार्य करते हुए सबको आने की छूट का बयान देकर मुख्यमंत्री ख़ुद शिवरात्रि मेले की भीड़ में अपना मास्क गले में लटकाए दिखे! उनके अनुसार लाखों की भीड़ में निगेटिव रिपोर्ट चेक करना अव्यावहारिक है। मुख्यमंत्री ने अपने तुगलकी फरमान की जानकारी बड़े गर्व से दी-

मैंने अधिकारियों को साफ़ कह दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह मुझे डांटेंगे तब भी कुंभ में अखाड़ों, व्यापारियों और श्रद्धालुओं पर कोई बंदिश नहीं लगेगी!


तीरथ सिंह रावत, उत्तराखंड मुख्यमंत्री

तो क्या रावत के करोड़ों श्रद्धालुओं की जान ख़तरे में डालने के आदेश का मोदी—शाह गुपचुप समर्थन कर रहे हैं? राज्य में बीजेपी सरकार की कोताही के कारण कुंभ के शाही स्नान का आयोजन पहले ही दो महीने देर से हुआ है। इसलिए संक्रमण रोकथाम उपायों में ढिलाई से मुख्य स्नान पर्वों पर अब श्रद्धालुओं की ज़बरदस्त भीड़ उमड़ेगी और जोखिम भी उतना ही बढ़ेगा। लाखों की भीड़ के बेकाबू होकर भगदड़ मचने की आशंका सामान्यत: रहती ही है, अब संक्रमण का डर लोगों को और असुरक्षित करेगा।

 - Satya Hindi

ग्रहों—नक्षत्रों की विशिष्ट युति के अनुरूप हरिद्वार में गंगा तट पर बारह साल बाद आने वाले कुंभ स्नान का मौक़ा जनवरी में मकर संक्रांति से ही निकल जाने के बावजूद पहला शाही स्नान 11 मार्च को आयोजित हो पाया। तमाम दावों के बावजूद कुंभ मेला प्रशासन शहर की उधड़ी सड़कों को पाटने और अधूरे निर्माण कार्यों को पूरा करने में सरासर निकम्मा साबित हुआ। हाईवे और पुल तो ले दे कर चालू हो गए मगर शहर की गलियाँ अब भी उधड़ी हुई हैं। हालाँकि राज्य के सार्वजनिक निर्माण मंत्री मदन कौशिक हरिद्वार के ही विधायक एवं कुंभ मेला आयोजन के प्रभारी मंत्री थे। उनकी हरकतों के चलते उन्हें मंत्री पद से हटाया जाना तो लोगों को समझ में आया मगर आनन-फानन में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बना देना किसी के गले नहीं उतरा।

संक्रमण की रोकथाम और केंद्र सरकार की गाइडलाइन के तहत हरिद्वार कुंभ की अवधि फ़रवरी में ही घटा कर एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक सीमित की गई थी। यह निर्णय उत्तराखंड के मुख्य सचिव ओमप्रकाश की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठक में किया गया था।

सामान्यत: हरिद्वार में कुंभ मेला गंगा तट पर चार महीने यानी जनवरी से अप्रैल के अंत तक आयोजित होता रहा है। साल 2010 के कुंभ की अवधि में हरिद्वार में चार करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान किया था।

शिवरात्रि पर महज 17 घंटे में ही 30 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने हरिद्वार में गंगा स्नान किया। मकर संक्रांति से लेकर शिवरात्रि के पर्व सहित कुंभ काल के पर्वों में 75 लाख से ज़्यादा श्रद्धालु महामारी के बावजूद हरिद्वार में गंगा स्नान कर चुके। अब बंदिशें हटने के बाद ज़रा सोचिए और कितने करोड़ लोग अगले तीन शाही स्नानों के दिन महामारी की अगली लहर के सर पर मंडराते ख़तरे के बीच हरिद्वार में आ टूटेंगे?

कुंभ का दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या, तीसरा 14 अप्रैल को मेष संक्रांति और चौथा स्नान 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा को होगा। इनके अलावा 13 अप्रैल को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा 21 अप्रैल को रामनवमी पर भी लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए हरिद्वार आएँगे। शाही स्नान में संन्यासियों के सात अखाड़ों जूना, आवाह्न, अग्नि, निरंजनी, आनन्द, निर्वाणी व अटल अखाड़े के साधुओं सहित 30 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भी गंगा में पुण्य की डुबकी लगाई। शाही स्नान की परंपरा में कुल 13 अखाड़े शामिल होते हैं। 

अखाड़ों की शाही यानी जुलूस निकलने के दौरान महामारी नियंत्रण नियम एकदम हवा हो गए।

कुंभ में मुख्य स्नान की तिथियों पर वीआईपी लोगों के हरिद्वार आने पर रोक लगाई गई थी। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शिवरात्रि पर पहले मुख्य स्नान पर सरेआम इसका उल्लंघन कर दिया।

सभी राज्यों की पुलिस को कोविड—19 गाइडलाइन के व्यापक प्रचार—प्रसार की हिदायत दी गई थी। श्रद्धालुओं को मास्क लगाने और छह फीट दूरी बरतने संबंधी निर्देश के पहले शाही स्नान में ही धुर्रे उड़ गए। भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था के लिए सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल का भी उपयोग तय था। महामारी के कारण भीड़ नियंत्रण के निर्देश उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, चण्डीगढ़, जम्मू-कश्मीर के साथ ही एनआईए, आईबी, रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारियों की साझा बैठक में तय हुए थे। मुख्यमंत्री ने अपने तुगलकी आदेश से सब पर पानी फेर दिया। 

अहमदाबाद में टी—20 क्रिकेट मैच में हज़ारों दर्शकों के स्टेडियम आने पर रोक लगा दी लेकिन उत्तराखंड में लाखों श्रद्धालुओं को कुंभ में आने की पूरी छूट कैसे है? देश में नए संक्रमितों की संख्या ​फिर रोजाना 28 हज़ार पार कर चुकी। पंजाब, महाराष्ट्र सहित सात राज्यों में फिर से फैल रही महामारी के बीच श्रद्धालुओं को संक्रमण के मुँह में कोई भी निर्वाचित सरकार कैसे झोंक सकती है। श्रद्धालुओं की आस्था और अखाड़ों का सम्मान क्या नागरिकों की जान से ज़्यादा क़ीमती है? लोकतंत्र का सिद्धांत यह है कि अमूमन नागरिकों का विवेक चुकने पर क़ानून का दायरा शुरू होता है मगर जब निर्वाचित मुख्यमंत्री ही लोक लुभावन उद्देश्यों के लिए क़ानूनों को ठेंगा दिखाएँगे तो फिर नागरिकों की जान कैसे बचेगी?

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