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उत्तरकाशी सुरंग हादसाः फँसे श्रमिकों के कुछ घंटों में बाहर आने की उम्मीद

उत्तरकाशी सुरंग हादसाः फँसे श्रमिकों के कुछ घंटों में बाहर आने की उम्मीद

पिछले 12 दिनों से उत्तरकाशी की सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिकों को बचाने का अभियान अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। बचाव दल ने कहा है कि बड़े पैमाने पर मलबा हटा दिया गया है और चंद घंटों में अच्छी खबर मिल सकती है। बाहर एंबुलेंस और डॉक्टर तैयार हैं।

उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने का काम युद्धस्तर पर जारी है। बचाव और राहतकर्मी आधी रात को सुरंग के अंदर से मलबा हटाने के लिए घुसे थे। चंद घंटों में अच्छी खबर की उम्मीद है। बचाव दल के अनुसार, मलबा हटाकर चौड़ा पाइप डालने के लिए ड्रिलिंग जारी है। बरमा मशीन, जो एक घंटे में लगभग 3 मीटर मलबे को ड्रिल करती है, पहले किसी चीज से टकरा गई थी। फिर ब्लॉक को हटाने के लिए मेटल कटर का इस्तेमाल किया गया और ऑपरेशन फिर से शुरू हुआ। बाद में फिर से बिल्कुल वैसी ही रुकावट आने से फिर से देरी हुई। 

बचाव कार्य में अभी भी कुछ घंटे लग सकते हैं और फँसे कर्मियों को रात में निकाले जाने की उम्मीद है। इससे पहले एनडीआरएफ के डीजी अतुल करवाल ने दोपहर 12 बजे बताया था कि बचाव और राहत का मिशन गुरुवार शाम तक पूरा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि "ऑगर मशीन ने फिर से काम करना शुरू कर दिया है। हम 6 मीटर के 2-3 पाइप अंदर भेजने का अनुमान लगा रहे हैं। उम्मीद है कि दिन के अंत तक अगर हमें कोई बाधा नहीं मिली तो बचाव अभियान पूरा हो जाएगा।" इसी मुद्दे पर उत्तरकाशी के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक रुहेला ने कहा- " अंदर की अधिकांश दूरी तय कर ली गई है, केवल थोड़ा और काम बाकी है।" लेकिन बाद में काम में बाधा आई।

सुबह करीब 10.20 पर केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह (रिटायर्ड) सिल्कयारा सुरंग स्थल पर पहुंचे जहां फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए बचाव अभियान चल रहा है। एनडीआरएफ के डीजी अतुल करवाल का कहना है कि "एनडीआरएफ उन सभी नतीजों के लिए तैयार है जिनका हमें सामना करना पड़ सकता है। विशेष उपकरण भी तैयार हैं ताकि हम फंसे हुए श्रमिकों को जल्द से जल्द बाहर निकाल सकें। हमारी टीमें तैयार हैं क्योंकि मुझे उम्मीद है कि हम कामयाब होंगे।"

जैसे-जैसे बरमा मशीन ड्रिल करती हुई आगे बढ़ रही है, पाइपों को मलबे के अंदर धकेल दिया जाता है। एक बार जब एक पाइप पूरी तरह से अंदर जाता है, तो दूसरे को उसमें वेल्ड कर दिया जाता है। इस तरह से लंबे समय से फंसे मजदूरों के लिए बाहर निकलने का रास्ता तैयार किया जा रहा है।

सुरंग के अंदर से सिर्फ मजदूरों को बाहर लाना ही असली चुनौती नहीं है। 12 दिनों के बाद बाहर आने पर उनको किस तरह की मेडिकल सहायता चाहिए होगी, यह भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि जब सभी लोग बाहर आएंगे तो वहां का तापमान अंदर के तापमान से अलग है।

यह तय किया गया है कि एक बार जब पाइप मजदूरों तक पहुंच जाएगा, तो एनडीआरएफ का एक डॉक्टर अंदर जाएगा और उनकी स्थिति की जांच करेगा। वह उन्हें बताएगा कि पाइप के अंदर कैसे रेंगना है। बचाव दल ने कहा है कि स्ट्रेचर की भी व्यवस्था की गई है।

सुरंग के बाहर, मजदूरों को चिन्यालीसौड़ में बने एक अस्थायी अस्पताल में ले जाने के लिए 41 एम्बुलेंस तैयार हैं। बचावकर्मियों ने कहा कि अस्पताल पहुंचने पर श्रमिकों की गहन डॉक्टरी जांच की जाएगी।

बचाव अधिकारी हरपाल सिंह ने मीडिया को बताया कि वर्टिकल ड्रिलिंग के बाद अब तक 44 पाइप डाले जा चुके हैं, लेकिन ये आपस में जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, "हमें मलबे में स्टील की छड़ें मिलीं। मशीन उन छड़ों को नहीं काट सकी। एनडीआरएफ कर्मी उन छड़ों को काटेंगे और मशीन का दोबारा इस्तेमाल करेंगे।"

यह सुरंग, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा है। उत्तरकाशी और यमुनोत्री को जोड़ने के लिए प्रस्तावित सड़क पर उत्तराखंड में सिल्क्यारा और डंडालगांव के बीच यह स्थित है। 4.5 किमी लंबी सुरंग का काम ज्यादातर पूरा हो चुका है। 12 नवंबर को भूस्खलन के बाद मजदूर सुरंग में फंस गए थे। जिस इलाके में वे फंसे हैं वह करीब 8.5 मीटर ऊंचा और 2 किलोमीटर लंबा है। निर्माणाधीन सुरंग के उस हिस्से में बिजली और पानी की आपूर्ति होने की वजह से मजदूर इतने दिनों तक जिन्दा हैं।

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