उत्तराखंड ने बुधवार को समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को मंजूरी दे दी। ऐसा करने वाला यह पहला राज्य बन गया है। बीजेपी शासित उत्तराखंड की सरकार ने यूसीसी लाने की घोषणा काफी पहले ही कर रखी थी। यह एक ऐसा कदम है जिसे अन्य भाजपा शासित राज्य भी अपना सकते हैं। बीजेपी शासित कुछ राज्यों में तो इसको लेकर प्रतिक्रिया भी आने लगी है। राजस्थान पहले ही कह चुका है कि वह अगले विधानसभा सत्र में यूसीसी विधेयक पेश करना चाहता है। लोकसभा चुनाव से पहले यूसीसी को भी बीजेपी का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा हो सकता है। यह काफी लंबे समय से पार्टी का चुनावी मुद्दा रहा है।
यूसीसी का मतलब है कि सभी धर्मों और समूहों के लिए एक समान क़ानून जो सभी भारतीय नागरिकों पर एक जैसे लागू होता है। यह ख़ासकर विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने सहित अन्य व्यक्तिगत मामलों के लिए है और क़ानून किसी ख़ास धर्म के लिए अलग-अलग नहीं हो सकता। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा है कि बिल पास होने को ऐतिहासिक बताया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने कहा है कि ऐतिहासिक समान नागरिक संहिता विधेयक-2024 विधानसभा में पारित हो गया है। उन्होंने कहा है, 'माँ गंगा व यमुना की उद्गम स्थली देवभूमि उत्तराखंड से निकली यूसीसी के रूप में समानता और समरूपता की यह अविरल धारा संपूर्ण देश का पथ प्रदर्शित करेगी। यह विधेयक मातृशक्ति के सम्मान एवं उनकी सुरक्षा के प्रति हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को भी परिलक्षित करता है।'
उन्होंने आगे कहा है, 'आज 24 साल के सशक्त, स्वाभिमानी एवं ऊर्जावान उत्तराखंड को देखकर हमारे राज्य आंदोलनकारियों का मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया होगा। हमारे शहीदों के प्रति यह एक सच्ची श्रद्धांजलि है जब हमारा प्रदेश विश्व पटल पर एक नई पहचान बना रहा है।'
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा के बाहर संवाददाताओं से कहा, 'आज का दिन उत्तराखंड के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। हमने एक ऐसा विधेयक पारित किया है जिसकी देश भर के लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे और उत्तराखंड इसे पारित करने वाला पहला राज्य है।' मुख्यमंत्री ने कहा,
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यह विधेयक किसी के खिलाफ पारित नहीं किया गया है। यह विवाह, भरण-पोषण, विरासत और तलाक जैसे मामलों पर बिना किसी भेदभाव के सभी को समानता का अधिकार देगा... यह मुख्य रूप से महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को दूर करेगा।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
इससे पहले बुधवार सुबह सदन में बिल पेश होने के बाद विपक्ष ने मांग की थी कि इसे पहले विधानसभा की प्रवर समिति के पास भेजा जाए। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और चर्चा कर बुधवार को ही सदन में इसे पास कर दिया गया।
एक बार विधेयक को राज्यपाल की सहमति मिल गई तो उत्तराखंड आजादी के बाद सभी नागरिकों के लिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत पर एक समान कानून बनाने वाला पहला राज्य बन जाएगा।
यूसीसी की ख़ास बातें
- यूसीसी विधेयक को महिला अधिकारों पर केंद्रित बताया जा रहा है। इसमें बहु-विवाह पर रोक का प्रावधान है। लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाने का प्रावधान है।
- यूसीसी लागू होने के बाद उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले या प्रवेश करने की योजना बनाने वाले व्यक्तियों को जिला प्रशासन की साइट पर खुद को रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
- साथ में रहने की इच्छा रखने वाले 21 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए माता-पिता की सहमति आवश्यक होगी। ऐसे रिश्तों का अनिवार्य पंजीकरण उन व्यक्तियों पर भी लागू होगा जो उत्तराखंड के निवासी हैं और राज्य के बाहर लिव-इन रिलेशनशिप में हैं।
- बिल में लड़कियों को भी लड़कों के बराबर ही विरासत का अधिकार देने का प्रस्ताव है। अभी तक कई धर्मों के पर्सनल लॉ में लड़कों और लड़कियों समान विरासत का अधिकार नहीं है।
- बिल के में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया आसान करने का प्रस्ताव रखा गया है। मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार देने का प्रस्ताव बिल में है।
- उत्तराखंड की 4 फीसदी जनजातियों को क़ानून से बाहर रखने का प्रावधान किया गया है। मसौदे में जनसंख्या नियंत्रण उपायों और अनुसूचित जनजातियों को शामिल नहीं किया गया है।
- बिल में शादी का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर सरकारी सुविधाएं नहीं देने का प्रस्ताव भी रखा गया है।
- मुस्लिम समुदाय के भीतर हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का प्रस्ताव बिल में रखा गया है। इस प्रथा का काफी विरोध होता रहा है।
- पति की मृत्यु पर पत्नी ने दोबारा शादी की तो मुआवज़े में माता-पिता का भी हक़ होने का प्रस्ताव भी बिल में रखा गया है। पत्नी की मृत्यु होने पर उसके मां-बाप की ज़िम्मेदारी पति पर होगी।
- पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ, तो बच्चों की कस्टडी दादा-दादी को देने का प्रस्ताव भी यूसीसी विधेयक में रखा गया है।
बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने इस कानून की आलोचना की है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने मंगलवार को कहा था कि कुछ समुदायों को इससे छूट दी जाएगी। मौलाना फिरंगीमहली ने कहा, "क्या यह (यूसीसी) आने पर सभी कानूनों में एकरूपता होगी? नहीं, बिल्कुल भी एकरूपता नहीं होगी। जब आपने कुछ समुदायों को इससे छूट दी है तो एकरूपता कैसे हो सकती है? हमारी कानूनी समिति इसका अध्ययन करेगी। हम भी मसौदा तैयार करेंगे और उसके अनुसार निर्णय लेंगे।'
समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा कि समान नागरिक संहिता मुसलमानों की पवित्र किताब कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है।