कई राज्यों में क्षत्रपों के आपसी घमासान से जूझ रही कांग्रेस के लिए एक और राज्य में मुसीबत खड़ी हो रही है। यह राज्य है उत्तराखंड। परेशानी यह है कि पंजाब की ही तरह उत्तराखंड में भी सात महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन यहां भी पार्टी के बड़े नेता आपस में उलझे हुए हैं।
हालांकि आलाकमान पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी हालात को सामान्य करने की कोशिश कर रहा है। उसे पता है कि ऐसा करना ज़रूरी है वरना पंजाब से सत्ता जा सकती है और उत्तराखंड में सत्ता वापसी का जौ मौक़ा बनता दिख रहा है, वह हाथ से फिसल सकता है।
उत्तराखंड कांग्रेस में लड़ाई चल रही है चेहरे की। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चाहते हैं कि कांग्रेस किसी चेहरे के साथ चुनाव में जाए जबकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह चाहते हैं कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाना चाहिए। विपक्ष की नेता रहीं इंदिरा हृदयेश भी इस मामले में प्रीतम सिंह के साथ थीं लेकिन उनके निधन के बाद हरीश रावत कैंप ने चेहरा घोषित करने को लेकर पूरा जोर लगा दिया है।
बात कांग्रेस आलाकमान तक पहुंची है और हरीश रावत और प्रीतम सिंह के समर्थकों ने दिल्ली में डेरा डाला हुआ है।
हरीश रावत कैंप का फ़ॉर्मूला
सूत्रों के मुताबिक़, हरीश रावत कैंप ने कांग्रेस आलाकमान के सामने जो नया फ़ॉर्मूला रखा है वह यह है कि प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर खाली हो चुकी नेता विपक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया जाए और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर किसी ब्राह्मण चेहरे को। जबकि हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए जोर लगाया गया है।
कापड़ी-गोदियाल के नाम आगे
बताया गया है कि प्रीतम सिंह युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भुवन कापड़ी को इस पद पर देखना चाहते हैं और उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए यही शर्त भी रखी है कि उनके क़रीबी शख़्स को संगठन की कमान सौंपी जाएगी। जबकि हरीश रावत ने पूर्व विधायक गणेश गोदियाल का नाम आगे बढ़ाया है। भुवन कापड़ी वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री भी हैं।
उत्तराखंड की राजनीति में जातीय संतुलन के साथ ही क्षेत्रीय संतुलन भी बनाना ज़रूरी होता है। जातीय संतुलन से मतलब राज्य की दो प्रमुख जातियों ब्राह्मण और ठाकुर से है जबकि क्षेत्रीय संतुलन से मतलब राज्य के दो मंडलों कुमाऊं और गढ़वाल से है।
प्रीतम सिंह गढ़वाल से आते हैं और ठाकुर जाति से हैं, उन्हें अगर नेता विपक्ष बनाया जाता है तो ऐसे में लाजिमी तौर पर प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं से बनाना होगा। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष का यह पद ब्राह्मण या दलित जाति के खाते में जा सकता है लेकिन किसी ब्राह्मण चेहरे को इस पद पर बिठाने की चर्चा तेज़ है।
प्रीतम के चहेते भुवन कापड़ी इस शर्त पर फिट बैठते हैं क्योंकि वह ब्राह्मण भी हैं और कुमाऊं से भी आते हैं। जबकि गणेश गोदियाल भी ब्राह्मण हैं लेकिन वह गढ़वाल मंडल से आते हैं। ऐसे में प्रीतम सिंह के नेता विपक्ष बनने की सूरत में पार्टी गढ़वाल मंडल से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर चुनाव में जोख़िम नहीं लेगी।
इसका मतलब प्रीतम सिंह की पसंद को तरजीह मिल सकती है। कुमाऊं से प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में एक और ब्राह्मण चेहरे और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी का भी नाम लिया जा रहा है।
हां, यह संतुलन ज़रूर बन सकता है कि प्रीतम सिंह को नेता विपक्ष बनाया जाए और कुमाऊं मंडल से किसी ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष। इसके अलावा हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
प्रदेश प्रभारी पर छोड़ा जिम्मा
बताया जाता है कि आलाकमान ने इतने छोटे राज्य में इतने कठिन सियासी हालात को देखकर गेंद प्रदेश प्रभारी के पाले में डाल दी है। इन दिनों उत्तराखंड कांग्रेस के प्रभारी का दायित्व देवेंद्र यादव के पास है, जो दिल्ली में बादली सीट से विधायक रहे हैं और दिल्ली कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
देवेंद्र यादव (बीच में।)
राहुल से हुई मुलाक़ात
देवेंद्र यादव ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ लगातार दूसरे दिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाक़ात की है। सोमवार की मुलाक़ात के बाद उन्होंने पत्रकारों को बताया कि राहुल गांधी से तमाम मुद्दों पर बातचीत हुई है और पार्टी जल्द ही प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष पर नियुक्ति के मामले में फ़ैसला लेगी।
कांग्रेस आलाकमान के सामने मुश्किल स्थिति यह भी है कि 2017 में जब हरीश रावत के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा था तो पार्टी को सिर्फ़ 11 सीटों पर ही जीत मिली थी। इसलिए पार्टी नेतृत्व हरीश रावत के चेहरे पर दांव लगाने से पहले फूंक-फूंक कर क़दम रख रहा है।
चार महीने में तीन मुख्यमंत्री
बीजेपी उत्तराखंड को लेकर बेहद कन्फ्यूज़ दिखाई देती है। बीजेपी ने इस साल 9 मार्च को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई करवा दी थी और उनकी जगह सांसद तीरथ सिंह रावत को बैठाया गया लेकिन चार महीने से भी कम वक़्त में नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को भी बोरिया-बिस्तर समेटने का आदेश दे दिया गया और पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंप दी। इससे पता चलता है कि पार्टी इस बेहद छोटे राज्य में नेतृत्व को लेकर किस कदर कन्फ्यूज़ है।
गुटबाज़ी ख़त्म करनी होगी
ऐसे हालात में कांग्रेस की प्रदेश इकाई के साथ ही राष्ट्रीय नेतृत्व को भी लगता है कि यह पार्टी के लिए एक अच्छा मौक़ा है और इस बार वह वहां सरकार बना सकती है। लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि नेताओं के बीच गुटबाज़ी ख़त्म हो। हरीश रावत और प्रीतम सिंह के धड़े अगर मिलकर चुनाव लड़ें तो पार्टी के लिए जीत हासिल करना मुश्किल नहीं होगा।