उत्तराखंड में महापंचायत पर रोक, धारा 144, हिन्दू संगठन अड़े
उत्तराखंड के पुरोला में जिला प्रशासन ने कल 15 जून को होने वाली महापंचायत पर रोक लगा दी है। शहर में धारा 144 भी लगा दी गई है। प्रशासन से महापंचायत की अनुमति मांगी गई थी लेकिन प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी। जिस प्रधान एसोसिएशन ने इसकी घोषणा की थी, उसने पीछे हटने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के लोकल नेताओं ने कहा वो इस महापंचायत को अपने हाथ में ले रहे हैं। पुरोला और अन्य स्थानों पर कुछ पोस्टर और पर्चे चिपकाए गए हैं, जिनमें मुसलमानों से 15 जून से पहले इलाके को खाली करने को कहा गया है। इसी बीच पुरोला, गंगोत्री, जौलीग्रांट आदि इलाकों में कुछ मुस्लिम दुकानदारों की दुकानों को बंद करा दिया गया, उनके साथ बदसलूकी की गई। इस संबंध में कुछ वीडियो सामने आए, जिनमें मुस्लिम दुकानदारों को सामान आदि ले जाते देखा गया।
इसके जवाब में मुसलमानों ने 18 जून को देहरादून में अपनी पंचायत रख दी। इस मुद्दे पर सभी पक्षों की ओर से जमकर बयानबाजी हो रही है। इसी दौरान आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान सामने आया है। एबीपी लाइव के मुताबिक सीएम धामी ने कहा कि देवभूमि में बाहरी लोग माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। विशेष समुदाय के लोगों के जरिए माहौल खराब करने की कोशिश हो रही है। धामी ने यह बयान कहां दिया, कब दिया इस पर एबीपी लाइव खामोश है।
इस मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट का कहा गया कि दक्षिणपंथी समूहों के लोग हिंदू मकान मालिकों से मिल रहे हैं और उन्हें मुसलमानों की दुकानों के साथ ही घरों को खाली करने के लिए कह रहे हैं। शहर में यह सब कथित 'लव जिहाद' का मामला सामने आने के बाद हो रहा है। पहले ख़बर आई थी कि शहर में कुछ लोगों ने ऐसे पोस्टर चिपका दिए हैं जिसमें चेतावनी दी गई है कि मुस्लिम व्यापारी 15 जून तक दुकानें खाली कर दें।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने से 30 से अधिक दुकानें बंद हैं। हालाँकि पुलिस ने कुछ पोस्टरों को हटा दिया है, मुसलमानों ने कहा है कि उत्तरकाशी में उन्हें डराने की रणनीति में बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट में मुस्लिम परिवारों के हवाले से कहा गया है कि यहाँ तक कि दशकों से बसे परिवारों को भी निशाना बनाया जा रहा है। इससे पहले 'बाहरी' को निशाना बनाया जा रहा था।
पुरोला के एसडीएम देवानंद शर्मा ने कहा है कि “हमने पुरोला प्रधान संगठन को 15 जून को महापंचायत आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और पुलिस अधीक्षक के साथ शांति बैठक के बाद संगठन ने लिखित में दिया कि वे अपना अनुरोध (अनुमति के लिए) वापस ले रहे हैं। उनका बयान हिंदू और मुस्लिम संगठनों द्वारा महापंचायतों के लिए अपने आह्वान को दोहराने के बाद आया है। मुस्लिम संगठनों ने 18 जून को देहरादून में महापंचायत बुलाई है।
ब्लॉक प्रधान संगठन के अध्यक्ष अंकित रावत ने कहा, 'प्रशासन चाहता था कि हम महापंचायत रद्द कर दें। हमने डीएम को बताया कि महापंचायत शांतिपूर्ण रहेगी। स्थानीय लोग महापंचायत चाहते हैं, हम नहीं। लोग जो कहते हैं हम उससे बंधे हुए हैं। हम महापंचायत के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारे शांतिपूर्ण कस्बे में एक समुदाय विशेष की अवैध गतिविधियों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
देवभूमि रक्षा अभियान के संस्थापक स्वामी दर्शन भारती ने कहा, 'महापंचायत करना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है। वे कैसे अनुमान लगा सकते हैं कि महापंचायत के दौरान हिंसा हो सकती है? हम महापंचायत शांतिपूर्ण ढंग से कराएंगे। प्रशासन अनुमति ना दे तो भी महापंचायत होगी। अगर कोई हमें परेशान करने की कोशिश करेगा, तो हम उसी क्षण महापंचायत को समाप्त कर देंगे। दर्शन भारती ने यह भी कहा कि हम मुस्लिमों की महापंचायत नहीं होने देंगे।
उधर, मुस्लिम संगठन भी 18 जून की महापंचायत के लिए अड़ा हुआ है। मुस्लिम सेवा संगठन के मीडिया प्रभारी वसीम अहमद ने कहा, 'महापंचायत की तैयारी चल रही है. महापंचायत में देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर, हल्द्वानी समेत प्रदेश भर से लोग हिस्सा लेंगे।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) वी मुरुगेसन ने कहा, “यह स्थानीय प्रशासन को तय करना है कि पुरोला में महापंचायत की अनुमति दी जाए या नहीं। कानून और व्यवस्था बनाए रखना हमारे लिए सर्वोपरि है और हम कानून का पालन करने वाले नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कानून हाथ में लेने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस संबंध में एसएसपी एसपी को उचित कार्रवाई के निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं।
पुरोला में हिन्दू-मुस्लिम तनाव की शुरुआत 26 मई से हुई थी। आरोप है कि दो पुरुषों, एक मुस्लिम और एक हिंदू ने कथित रूप से एक 14 वर्षीय लड़की के अपहरण की कोशिश की। कुछ स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि यह 'लव जिहाद' का मामला था। हिंदू महिलाओं को लुभाने और बहकाने के लिए मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक कथित साजिश के लिए दक्षिणपंथी समूह इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि अदालतें और केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती हैं।