मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शुरू हुआ मुक़दमे वापस लेने का सिलसिला अब मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के आरोपी बीजेपी विधायक संगीत सोम तक पहुँच गया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विधायक संगीत सोम के भी तमाम मुक़दमे वापस लेगी जिनमें दो तो मुज़फ़्फ़रनगर में दंगा भड़काने के हैं। मुज़फ़्फ़रनगर में दंगों के बाद बीजेपी के पोस्टर बॉय बने संगीत सोम से पहले यह मेहरबानी सत्ताधारी पार्टी से जुड़े कई नेताओं पर की जा चुकी है।
संगीत सोम पर वर्ष 2003 से 2017 के बीच मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर, मेरठ और गौतमबुद्ध नगर में कुल सात मुक़दमे दर्ज हैं। इनमें मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के दौरान दर्ज किये गये मुक़दमे भी शामिल हैं। प्रदेश सरकार ने इन मुक़दमों को लेकर संबंधित जिलों के प्रशासन से आख्या माँगी है। इसके बाद मुक़दमों की वापसी की प्रक्रिया शुरू होगी। मुज़फ़्फ़रनगर जिला प्रशासन ने भी 2013 के दंगों से जुड़े चार मामलों के संबंध में आख्या माँगे जाने की पुष्टि की है।
इससे पहले प्रदेश सरकार अलग-अलग तारीख़ों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऊपर से बलवा और धमकी देने के दो मुक़दमे वापस ले चुकी है। हाल ही में इलाहाबाद से बीजेपी के विधायक रहे उदयभान करवारिया पर से आपराधिक मुक़दमे वापस लेने को लेकर उच्च न्यायालय ने आपत्ति जतायी थी।
प्रदेश सरकार की इस क़वायद पर विपक्षी दलों का कहना है कि एक ओर जहाँ उनके नेताओं पर हर रोज नए व फ़र्जी मुक़दमे दर्ज किए जा रहे हैं, वहीं शासन व सत्ता से जुड़े लोगों पर संगीन अपराधों में दर्ज मुक़दमे वापस लिए जा रहे हैं।
संगीत सोम के ख़िलाफ़ सहारनपुर के देवबंद, मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली, कोतवाली, सिखेड़ा, मेरठ के सरधना तथा गौतमबुद्धनगर के थाना बिसाहड़ा में मामले दर्ज हैं। इनमें दंगों के दौरान भीड़ को उकसाने व दंगा भड़काने का आरोप भी शामिल है। मुज़फ़्फ़रनगर में 2013 में विवादित वीडियो को प्रसारित करने को लेकर संगीत सोम पर 2013 में आईटी एक्ट के तहत भी मुक़दमा दर्ज किया गया था जबकि सहारनपुर के मिरकपुर में पंचायत को संबोधित करते हुए भड़काऊ बातें करने का भी मुक़दमा दर्ज है। हालाँकि सोम का कहना है कि उन पर ज़्यादातर मुक़दमे राजनैतिक कारणों से दर्ज हैं। सोम के मुताबिक़, आईटी एक्ट में जो मुक़दमा उन पर दर्ज है उसमें तो जिला प्रशासन अब तक कोई साक्ष्य ही प्रस्तुत नहीं कर पाया है। सोम ने बीते महीने समाप्त हुए विधानसभा सत्र के दौरान अपने ऊपर चल रहे मामलों को लेकर एक पत्र शासन को सौंपा था। उसी पत्र के आधार पर प्रदेश सरकार ने संबंधित जिलों के प्रशासन से रिपोर्ट माँगी है।
मुज़फ़्फ़रनगर में 2013 में हुए दंगों से जुड़े 70 अदालती मामलों को वापस लेने के लिए योगी सरकार ने पहले ही प्रक्रिया शुरू कर दी है। पिछले साल सरकार ने मुक़दमे वापसी के लिए इस दंगे से जुड़े 48 केस भेजे थे। इन 48 मामलों में से 36 मामलों में भी वापसी के आवेदन को स्थानांतरित नहीं किया गया है क्योंकि इन मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश को छह महीने पहले स्थानांतरित किया गया था और तब से यह पद खाली है। इधर, एक साल के भीतर ही यह दूसरी बार है जब मुज़फ़्फ़रनगर प्रशासन को मामलों को वापस लेने के लिए राज्य सरकार से पत्र मिला है। पिछले महीने, मुज़फ़्फ़रनगर प्रशासन ने 2013 के दंगों के दौरान विभिन्न व्यक्तियों के ख़िलाफ़ दर्ज 22 मामलों को वापस लेने के लिए तीन पत्र प्राप्त किए।
ग़ौरतलब है कि 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों में 60 से अधिक लोग मारे गए थे और 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए थे।
सहारनपुर के दलित सामाजिक कार्यकर्ता रामकुमार का मानना है कि प्रदेश सरकार मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के अभियुक्तों को सजा दिलाने के लिए गंभीर ही नहीं है जिसके चलते एक के बाद एक मुक़दमे वापस लिए जा रहे हैं। उनका कहना है कि दंगे में दोनों समुदायों के लोग आरोपी थे पर मुक़दमे भी चुन-चुन कर वापस लिए जा रहे हैं।
मुक़दमे वापस लेना दुर्भाग्यपूर्ण
संगीत सोम पर दर्ज मुक़दमे वापस लेने की प्रक्रिया को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं व अधिवक्ताओं का कहना है यह एक गलत नज़ीर स्थापित करेगा। रिटायर्ड आईपीएस ए. आर. दारापुरी का कहना है कि अगर बीजेपी सरकार संगीत सोम पर से मुक़दमे हटाती है तो इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार सत्ता का दुरुपयोग करके आरोपी विधायक को बचाना चाहती है।
पीयूसीएल उपाध्यक्ष आशीष का कहना है कि क़ानून सबके लिए बराबर होता है और अगर सबके साथ एक जैसा न्याय नहीं होगा तो लोकतंत्र कमजोर होगा। उन्होंने कहा कि योगी सरकार अब मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में दायर ज़्यादातर मुक़दमों को फ़र्जी बता रही है। इससे साफ़ होता है कि उसकी मंशा दोषियों को सजा दिलाने की नहीं है।