'ज्ञानवापी में त्रिशूल क्यों?' मस्जिद केस में योगी ने मुस्लिमों से पूछा हल!

05:58 pm Jul 31, 2023 | सत्य ब्यूरो

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर फिर बयान दिया है। पिछले बयान में योगी ने कहा था कि अगर ज्ञानवापी को मस्जिद कहा जाएगा तो दिक्कत होगी। मुख्यमंत्री योगी ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए गए इंटरव्यू में सवाल किया कि मस्जिद कैंपस में त्रिशूल क्या कर रहा है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष को इस "ऐतिहासिक भूल" को ठीक करने के संकल्प के साथ आगे आना चाहिए। आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को हल करना चाहती है।

एएनआई के मुताबिक उन्होंने कहा, "अगर हम इसे मस्जिद कहते हैं, तो यह एक मुद्दा होगा... वहां मस्जिद में त्रिशूल क्या कर रहा है? हमने इसे नहीं रखा। वहां एक ज्योतिर्लिंग है और देवता हैं।" मुख्यमंत्री ने कहा, "मुझे लगता है कि ऐतिहासिक भूल को ठीक करने के लिए मुस्लिम पक्ष की ओर से एक प्रस्ताव आना चाहिए। हम इस गलती का समाधान चाहते हैं।"

अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि ने ज्ञानवापी मामले पर प्रस्ताव लाने के लिए मुस्लिम पक्ष पर आदित्यनाथ की टिप्पणियों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह मुस्लिम याचिकाकर्ताओं के लिए भाईचारे और सद्भावना का संदेश देने का अच्छा अवसर है।

स्वामी प्रसाद मौर्य का कड़ा जवाब

सपा महासचिव ने योगी आदित्यनाथ को कड़ा जवाब दिया है। स्वामी ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद है इसलिए मामला कोर्ट पहुंचा। अगर मस्जिद ना होती तो केस कोर्ट में नहीं जाता। 5 वक्त की अभी भी वहां पर नमाज पढ़ी जा रही है।

उन्होंने कहा कि ‘जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता वो ज्ञानवापी मस्जिद है।’ सीएम योगी हाईकोर्ट से बड़े नहीं हैं। पूरा निर्णय हाईकोर्ट पर छोड़ देना चाहिए। बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर का भी सर्वे होना चाहिए। राष्ट्रपति को भी मंदिर जाने से रोका गया। आदिवासी, दलित और पिछड़ों का अपमान हुआ। स्वामी ने कहा- धर्म के ठेकेदारों को ये अपमान नहीं दिखता। सीएम आवास को गंगाजल और गोमूत्र से धोया गया था। एक वर्ग के लिए हिंदू धर्म बनाया गया है। यह आदिवासी, दलितों का धर्म होता तो अपमान नहीं होता। शायद मंदिर में जाने से राष्ट्रपति को न रोकते।

पूर्व मंत्री मौर्य ने कहा कि भारत की पहचान बौद्ध दर्शन से और बुद्ध से है।अगर हिंदू-बौद्ध एक हैं तो बौद्ध धर्मस्थल क्यों तोड़े। बौद्ध धर्म स्थलों को तोड़कर मंदिर क्यों बनाया। हिंदू और बौद्ध एक होते तो बौद्ध मठ नहीं तोड़े जाते।

वहां 400 साल से मस्जिद हैः ओवैसी

एआईएमआईएम प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा  कि वहां पर 400 साल से मस्जिद थी। क्या मुख्यमंत्री ने इतिहास नहीं पढ़ा। ओवैसी ने कहा, ''सीएम योगी जानते हैं कि मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एएसआई सर्वेक्षण का विरोध किया है और कुछ दिनों में फैसला सुनाया जाएगा, फिर भी उन्होंने ऐसा विवादास्पद बयान दिया, यह न्यायिक अतिक्रमण है।'' 

इलाहाबाद हाई कोर्ट में क्या हो रहा है

यूपी के सीएम का इंटरव्यू ऐसे समय में आया है जब इलाहाबाद हाईकोर्ट वाराणसी जिला अदालत के आदेश के खिलाफ याचिका पर 3 अगस्त को फैसला सुना सकता है। अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को यह तय करने के लिए सर्वे करने का निर्देश दिया है कि क्या ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर पर बनाई गई थी। इससे पहले कोर्ट ने तब तक (3 अगस्त) एएसआई सर्वे पर रोक लगा दी थी। 

ज्ञानवापी मामले के बारे में सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट और वाराणसी कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि 16वीं सदी में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने मस्जिद का निर्माण कराया था। वाराणसी के एक वकील, विजय शंकर रस्तोगी ने ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण में अवैधता का दावा करते हुए निचली अदालत में एक याचिका दायर की थी और मस्जिद के पुरातात्विक सर्वे की मांग की थी। यह दिसंबर 2019 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि शीर्षक विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया था।

वाराणसी की अदालत ने अप्रैल 2021 में एएसआई को सर्वे करने और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। हालाँकि, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद चलाने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने रस्तोगी की याचिका का विरोध किया और मस्जिद के सर्वे के लिए वाराणसी अदालत के आदेश का भी विरोध किया।

इसके बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा और सभी पक्षों की सुनवाई के बाद उसने एएसआई को सर्वे करने के निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार, कानून 15 अगस्त, 1947 को मौजूद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में किसी भी बदलाव पर रोक लगाता है।

देश में लोकसभा चुनाव 2024 में होने वाले हैं। उससे पहले तमाम धार्मिक मामले खड़े हो गए हैं। जिनमें वाराणसी की ज्ञानवापी सबसे प्रमुख है। अयोध्या का फैसला आने के बाद आरएसएस और उससे जुड़े हिन्दू संगठन मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद और वाराणसी की ज्ञानवापी का मामला उठा रही है। तमाम जन संगठनों का कहना है कि आरएसएस इसके जरिए धार्मिक उन्माद पैदा करके हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कराना चाहता है, ताकि 2024 में भाजपा की जीत का रास्ता साफ हो सके।