एबीवीपी छात्र नेता दानिश आजाद अंसारी क्यों बने मंत्री? 

10:17 pm Mar 25, 2022 | सत्य ब्यूरो

योगी कैबिनेट में जगह पाने वाले दानिश अभी विधानसभा या विधान परिषद (एमएलसी) में से किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। समझा जाता है कि बीजेपी उन्हें एमएलसी बनवाएगी।

बलिया के बसंतपुर गांव में जश्न शुरू हो चुका है। गांव वालों ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके गांव का कोई युवक यूपी में मंत्री भी बन जाएगा। दानिश आजाद अंसारी ने योगी कैबिनेट में राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली है। हालांकि दानिश की हायर स्टडी लखनऊ में हुई है लेकिन वो गांव से हमेशा जुड़े रहे। लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही दानिश छात्र राजनीति में कूदे औऱ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ज्वाइन कर ली।

मंत्री बनने के बाद मीडिया से बातचीत में दानिश अंसारी ने कहा कि मैं अपने जैसे साधारण पार्टी कार्यकर्ता को इतना बड़ा अवसर देने के लिए पार्टी का धन्यवाद करता हूं। मैं अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभाऊंगा। यह पूछे जाने पर कि क्या मंत्री पद मिलना अप्रत्याशित था, उन्होंने कहा, नहीं, यह मामला नहीं था। बीजेपी हर कार्यकर्ता की कड़ी मेहनत को पहचानती है। मेरे लिए, यह पार्टी द्वारा अपने समर्पित विश्वास का प्रतीक है। उन्होंने यह भी दावा किया कि बीजेपी में मुसलमानों का विश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा, बीजेपी द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं से मुसलमानों को फायदा हो रहा है। यह सरकार योजनाओं का लाभ देने से पहले किसी की जाति और धर्म नहीं पूछती। बीजेपी मुसलमानों की बुनियादी सुविधाओं और जरूरतों के लिए काम करती है।

32 साल के दानिश अंसारी 2010 में एबीवीपी में शामिल हुए थे, जब वह लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र थे। उन्होंने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और क्वॉलिटी मैनेजमेंट में मास्टर्स किया है। लखनऊ यूनिवर्सिटी में आने से पहले वो स्कूल लेवल की पढ़ाई के लिए बलिया के होली क्रॉस स्कूल में थे।

उन्हें अक्टूबर 2018 में योगी सरकार ने उर्दू भाषा समिति में राज्य मंत्री का दर्जा दिया था। समझा जाता है कि दानिश को मंत्री बनाने का प्रस्ताव न सिर्फ अल्पसंख्यक मोर्चा, बल्कि संघ के कतिपय नेताओं की तरफ से भेजा गया था। भाषा समिति की बैठकों में भी दानिश को काफी सक्रियता से भाग लेने से पार्टी उन्हें नोटिस कर रही थी।

पार्टी ने पिछले साल उन्हें बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा का महासचिव बनाया है। दानिश अपने गांव से लेकर लखनऊ तक मुस्लिम समुदाय के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे हैं और वो हर जगह खुद को भाजपा वाला मुसलमान बताते हैं। यूपी में बीजेपी के जीतने पर सोशल मीडिया पर उन्होंने जिस ढंग से इस जीत को सभी धर्मों की जीत बताया, पार्टी के नेता उनकी इस गतिविधि से काफी खुश हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि दानिश अभी युवा हैं और उनमें बीजेपी की अल्पसंख्यक राजनीति में दूर तक जाने की संभावना है।

दरअसल, मुख्तार अब्बास नकवी के बाद बीजेपी यूपी से किसी मुस्लिम युवक को तलाश रही थी। पार्टी को यूपी में मुस्लिम मतदाताओं की वजह से एक मुस्लिम चेहरे की जरूरत हर समय पड़ती रहती है। पार्टी ने पिछली बार मोहसिन रजा को मंत्री बनवाया था लेकिन वो अपनी मौजूदगी का कोई एहसास नहीं करा पाए। पार्टी उनसे तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर बयान की उम्मीद करती थी, उसमें भी वो नाकाम रहे।दानिश के पक्ष में एक बात यह भी गई है कि वो मुस्लिमों में पिछले माने जाने वाले अंसारी समुदाय से आते हैं। यूपी में अंसारी समुदाय मूलतः बुनकर है और तमाम लोग पुश्तैनी पेशे में लगे हुए हैं। पूर्वाचल में अंसारियों का गढ़ है। बीजेपी की इसके पीछे रणनीति यह है कि वो मुस्लिमों में पसेमंदा मुस्लिमों को अपने साथ मिलाकर मुस्लिम वोटों का समीकरण भविष्य में बिगाड़ सकती है। अधिकांश राजनीतिक दलों में पसेमंदा मुस्लिम समुदाय से बहुत कम प्रतिनिधित्व मिला हुआ है।