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यूपीः सीतापुर में पत्रकार की हत्या, परिवार ने कहा- कहां है कानून व्यवस्था

यूपीः सीतापुर में पत्रकार की हत्या, परिवार ने कहा- कहां है कानून व्यवस्था

सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी की हत्या कर दी गई। वो दैनिक जागरण अखबार से जुड़े हुए थे। परिवार ने कानून व्यवस्था पर सवाल उठाया। कांग्रेस ने कहा प्रदेश में जंगलराज है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में शनिवार को लखनऊ-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक स्थानीय पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मृतक राघवेंद्र बाजपेयी दैनिक जागरण के स्थानीय संवाददाता थे। लेकिन जिस तरह से यह हत्या की गई, वो महत्वपूर्ण है। परिवार का कहना है कि पुलिस इस मामले में लीपापोती कर रही है।

पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी को 10 दिनों पहले धमकी मिली थी। उन्होंने धान खरीद को लेकर कोई खबर लिखी थी। शनिवार को उनके पास कोई फोन आया, उसके बाद वो अपनी बाइक से निकले थे।


रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना तब हुई जब हमलावरों ने पहले उसकी बाइक को टक्कर मारी और फिर उन्हें तीन बार गोली मारी। पहले इसे सड़क हादसा माना गया। लेकिन पोस्टमॉर्टम के दौरान जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर पर तीन गोलियों के निशान पाए गए हैं। इसके बाद इसे हत्या का मामला बना दिया गया।

35 वर्षीय पत्रकार शनिवार दोपहर को एक फोन कॉल आने के बाद अपने घर से निकले थे। कुछ ही देर बाद, करीब 3:15 बजे हाईवे पर उनकी हत्या कर दी गई।

पुलिस अभी तक हत्या के पीछे के मकसद का पता नहीं लगा पाई है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। अधिकारी मामला दर्ज करने से पहले पीड़ित परिवार की ओर से औपचारिक शिकायत का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि परिवार खुलेआम पुलिस पर मामले की लीपापोती का आरोप लगा रहा है। उसने सवाल भी किया है कि क्या यही कानून व्यवस्था है।

पुलिस के मुताबिक, "आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए चार टीमें गठित की गई हैं। महोली, इमलिया और कोतवाली की पुलिस टीमों के साथ ही सर्विलांस और एसओजी की टीमों को भी जांच और आरोपियों की पहचान के लिए लगाया गया है।"

नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे) ने इस घटना की निन्दा की है। उसने एक्स पर लिखा है- हम सीतापुर में दैनिक जागरण समूह के वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी की जघन्य एवं निंदनीय हत्या के मामले में सख्त एवं तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं। राज्य के सभी अंगों को मीडियाकर्मियों की सुरक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि वे समाज की आंख और कान हैं।

जनवरी में छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की दहलाने वाली खबर इसी तरह आई थी। उनकी हत्या सड़क निर्माण में धांधली को बेनकाब करने के बाद हुई थी। देश के पत्रकार संगठन लगातार कह रहे हैं कि छोटे शहरों और कस्बों में पत्रकारिता करना आसान नहीं है। जबकि इन इलाकों की पुलिस पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं रहती है।

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