लॉकडाउन में फँसे प्रवासी मजदूरों के लिए यूपी सरकार ने चलाईं 1,000 बसें

05:03 pm Mar 28, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

लॉकडाउन में फँसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुँचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक हज़ार बसें चलाई हैं। इसके साथ ही इन मजदूरों के खाने-पीने का इंतजाम भी किया गया है। 

सरकार के एक प्रवक्ता ने इसकी जानकारी देते हुए कहा है कि परिवहन विभाग ने  बस ड्राइवरों और कंडकटरों से संपर्क किया कि वे किसी तरह इन मजदूरों को उनके स्थानों तक पहुँचा दें। ये मजदूर नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, बुलंदशहर और अलीगढ़ में फंसे हुए हैं। 

प्रवक्ता ने कहा, 'मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देर रात तक निर्देश देने में व्यस्त रहे। मुख्यमंत्री ने प्रवासी मजदूरों के लिए खाने-पीने का इंतजाम भी करने को कहा है।'

शनिवार सुबह लखनऊ के चारबाग बस स्टेशन पर राज्य सरकार ने लोगों के खाने-पीने का इंतजाम किया। 

कुछ बसें चलाई गई हैं। ये बसें कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आज़मगढ़, फ़ैजाबाद, बस्ती, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, अमेठी, राय बरेली, गोंडा, इटावा, बहराइच और श्रावस्ती गई हैं। 

उत्तर प्रदेश के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी और लखनऊ के पुलिस आयुक्त सुजीत कुमार पांडेय लखनऊ बस अड्डे पर मौजूद थे ताकि सारी व्यवस्थाओं की निगरानी की जा सके। 

अफ़रातफ़री

दिल्ली और उसके आसपास के इलाक़े, जैसे, नोएडा, ग़ाजियाबाद वगैरह में ज़बरदस्त अफरातफरी है।पिछले तीन दिनों से दिल्ली-एनसीआर से हज़ारों लोग अपने बच्चों, परिवार के साथ भागे चले जा रहे हैं। उन्हें परिवहन का कोई साधन नहीं मिल रहा है, कुछ लोग पैदल ही चल पड़े हैं। सड़कों पर ऐसे सैकड़ों लोग दिख रहे हैं। उनमें बूढ़े, बच्चे व महिलाएं भी शामिल हैं। 

पहले यह अफ़वाह फैली कि ग़ाज़ियाबाद के आगे लालकुआं बॉर्डर पर सरकार ने बसों की व्यवस्था की हुई है और लोगों को बस किसी तरह वहां तक पहुंचना है।

यह अफ़वाह उड़ने के बाद हज़ारों लोग जो कुछ अपने साथ ले जा सकते थे, पोटलियों में बांधकर अपने परिवार के साथ रफ्तार से निकल पड़े। ऐसा लग रहा था कि मानो कोई आपदा आ गयी हो और उससे बचने के लिये लोग भागे चले जा रहे हैं। इनमें से अधिकतर परिवारों के पास छोटे-छोटे बच्चे भी थे। 

रास्ते में फँसे इन लोगों का कहना है कि गाँव चले जायेंगे तो कम से  कम किराया तो नहीं देना होगा। उन्हें यह डर भी है कि यहां रहे तो कोरोना वायरस उन्हें नहीं छोड़ेगा। ग़रीब आदमी के पास ज़्यादा विकल्प नहीं होते। ऐसे हालात में वे बसों के इंतजाम की अफ़वाह में तेज़ी से निकल पड़े। इनकी कोशिश है कि किसी तरह अपने गांव, अपने लोगों के बीच पहुंच जाएं तो इस वायरस से जान बचे।