उत्तर प्रदेश में एक अदद सरकारी टीचर बनने की चाह में लाखों लोग ट्वि्टर से लेकर फ़ेसबुक तक गुहार लगा रहे हैं। अख़बारों, चैनलों से लेकर नेताओं के चक्कर लगाते-लगाते थक चुके इन लोगों के लिए अब सोशल मीडिया ही एक सहारा बचा है। इसी साल के शुरू में प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में 69000 शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा देकर बैठे इन लोगों का इंतज़ार लंबा खिंचता जा रहा है। शिक्षकों की इस बंपर भर्ती को लेकर प्रदेश में शिक्षामित्रों व अन्य ज़रूरी अर्हता रखने वालों के बीच ठन गयी और पूरा मामला अदालत में चला गया। उधर योगी सरकार हर रोज़ एलान कर रही है कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी पूरी की जाएगा। सत्ताधारी पार्टी के नेता हर रोज़ लाखों शिक्षकों के पद भरने का भी दावा करते हैं पर बीते 9 महीनों से नौकरी के इंतज़ार में बैठे लोगों की आस टूटने लगी है।
शिक्षकों की भर्ती पर मची रार के बीच योगी सरकार ने बीच का रास्ता निकालने की पहल की है। सरकार ने अदालत में इस मामले में पक्ष रख रहे सरकारी वकील से हलफ़नामा देकर बताने को कहा है कि भर्ती के मामले में बीच का रास्ता निकालते हुए सभी को संतुष्ट किया जाएगा।
सरकारी चूक में 9 महीनों से उलझी है भर्ती
उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों के लिए बड़ा मौक़ा माने जाने वाली इस भर्ती में लाखों लोग एक सरकारी चूक या लापरवाही के चलते भटक रहे हैं।
बीते 9 महीनों से ज़्यादा समय से लटकी उत्तर प्रदेश सरकारी प्राइमरी 69000 सहायक अध्यापकों की इस भर्ती के लिए लिखित परीक्षा इसी साल 6 जनवरी को कराई गई थी। इस परीक्षा में टीईटी/सीटीईटी पास 4.10 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे लेकिन कटऑफ़ को लेकर ऐसा विवाद शुरू हुआ कि आजतक प्रश्नपत्र की आन्सर-की या उत्तर-कुंजी भी जारी नहीं हो सकी है। भर्ती परीक्षा में शामिल चार लाख से ज़्यादा लोग यह तक नहीं जान सके हैं कि परीक्षा में उनके कितने अंक आ सकेंगे। सरकार की ओर से भर्ती परीक्षा का विज्ञापन निकाले जाते समय कटऑफ़ के अंकों को लेकर कुछ साफ़ न किए जाने के चलते यह सारा विवाद खड़ा हुआ।
कटऑफ़ क्यों बदला गया
बीते साल दिसंबर में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा डॉ. प्रभात कुमार की ओर से परीक्षा का शासनादेश जारी हुआ था जिसमें न्यूनतम अर्हता अंक का ज़िक्र नहीं था। हालाँकि 6 जनवरी 2019 को परीक्षा के ठीक एक दिन बाद कटऑफ़ तय करते हुए पास करने के लिए 60/65 फ़ीसदी अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया। शिक्षक नेता अजय सिंह बताते हैं कि इसके मुताबिक़ 150 अंकों की परीक्षा में से सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए 97 और अन्य आरक्षित वर्ग के लिए 90 अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया।
शिक्षामित्रों ने किया था कटऑफ़ का विरोध
सरकार की ओर से तय किए गए कटऑफ़ पर शिक्षामित्र और बीटीसी व बीएड अभ्यर्थी दो धड़े में बँट गए थे। जहाँ एक ओर शिक्षामित्रों ने कटऑफ़ के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका लगा दी तो दूसरी ओर बीटीसी व बीएड अभ्यर्थी कटऑफ़ के समर्थन में हैं।
बीटीसी व बीएड डिग्रीधारकों का कहना है कि शिक्षामित्र कम नंबर पाकर भी पास हो जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 25 फ़ीसदी वेटेज की मदद से उनका चयन सहायक अध्यापक पद पर हो जाएगा। जबकि अधिक मेरिट वाले बीटीसी व बीएड अभ्यर्थी बाहर हो जाएँगे। शिक्षामित्रों की ओर से 17 जनवरी को दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने 29 मार्च को आदेश सुनाया जिसमें 68500 शिक्षक भर्ती परीक्षा का कटऑफ़ घटाकर 40/45 फ़ीसदी को बहाल कर दिया।
कटऑफ़ पर प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट की डबल बेंच में जाने में दो महीने की देर लगायी और 27 मई को फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की। अब यह पूरा मामला अदालत में चल रहा है जिसकी अगली सुनवाई इसी हफ़्ते होनी है।
सरकार ने अब निकाला बीच का रास्ता
हालाँकि मामले में ज़्यादा किरकिरी होते देख अब प्रदेश सरकार ने इसके जल्द निपटारे की पहल की है। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार पांडे के मुताबिक़ सरकार ने अपना पक्ष रख रहे वकील से इस मामले में अगली सुनवाई पर एक हलफ़नामा दाखिल कर नयी कटऑफ़ बताने को कहा है। उनका कहना है कि नया कटऑफ़ शिक्षामित्रों व बीटीसी व बीएड डिग्रीधारकों दोनों को मान्य होगा। उनका कहना है कि इसको लेकर दोनों पक्षों से सहमति भी ले ली गयी है। पांडे का कहना है कि जनवरी में जो कटऑफ़ घोषित किया गया था उसके बाद शिक्षामित्रों का चयन असंभव हो गया था जबकि अदालत के पहले आदेश के बाद बीटीसी व बीएड डिग्रीधारक बाहर हो जाते। उनका कहना है कि बीच का रास्ता ही सबसे सुसंगत है जिसे निकाल लिया गया।
अब भी फँस सकता है पेच
शिक्षकों की भर्ती की राह आसान करने के सरकारी प्रयासों पर अभी भी कुछ लोगों का मानना है कि पेच फिर भी फँस सकता है। शिक्षक नेता मीनाक्षी सिंह का कहना है कि नयी कटऑफ़ को लेकर आपत्ति रखने वालों के सामने तो कोर्ट जाने का रास्ता फिर भी खुला रहेगा। उनका कहना है कि शिक्षामित्रों को जब से सहायक शिक्षक से वापस अपने मूल पद पर किया गया है तभी से यह विवाद चल रहा है। शिक्षामित्रों को पहले मिल रहे वेतन से एक-चौथाई ही मिल रहा है और वह भी समय पर नहीं। उनका कहना है कि शिक्षामित्र अन्य बेरोज़गार बीटीसी व बीएड डिग्रीधारकों के मुक़ाबले ज़्यादा संगठित हैं और अपने हितों पर कुल्हाड़ी चलते देख एक बार फिर से पेच फँसा सकते हैं।