उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों पर किसानों का क़रीब 15 हज़ार करोड़ रुपये बक़ाया हो गया है। मिल मालिकों की एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन के कारण बड़े ख़रीददार जैसे मिठाई, चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक और आइसक्रीम बनाने वाले बड़े ग्राहक बहुत कम चीनी ख़रीद रहे हैं जिसके चलते ये संकट पैदा हुआ है। लेकिन किसान नेता वीएम सिंह इसे सरासर झूठ बताते हैं।
वीएम सिंह का कहना है कि पिछले कई सालों से चीनी मिल मालिक किसानों को महीनों तक लटका कर रखने के बाद भुगतान कर रहे हैं और पिछले साल तो कोई महामारी नहीं थी। सिंह क़रीब 30 सालों से गन्ना किसानों की लड़ाई अदालतों में लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि चीनी मिल मालिक अपना पैसा दूसरे उद्योगों में डायवर्ट कर देते हैं और किसानों का भुगतान रोक कर रखते हैं।
नियमों के मुताबिक़, गन्ना ख़रीदने के 14 दिनों के भीतर किसानों को क़ीमत मिल जानी चाहिए। देर होने पर ब्याज दिया जाना चाहिए। लेकिन मिल मालिक न तो समय पर भुगतान करते हैं और न ही ब्याज देते हैं।
इसे लेकर राज्य सरकार की दो ज़िम्मेदारी हैं। पहली- गन्ने की क़ीमत तय करना और दूसरी किसानों को भुगतान कराना। रंगराजन कमेटी ने गन्ने की क़ीमत तय करने के लिए सालों पहले एक फ़ॉर्म्यूला तय कर दिया था। केंद्र और राज्य की सरकार साल दर साल इस फ़ॉर्म्यूले से कम क़ीमत तय करती हैं और समय पर भुगतान भी नहीं करातीं।
वीएम सिंह के मुताबिक़, ‘चीनी मिलों से नेताओं और पार्टियों को मोटा चंदा मिलता है। सरकार चाहे किसी पार्टी की बने चीनी मिल मालिक चंदे के बूते पर उन्हें पटा ही लेते हैं।’
नेता-मिल मालिकों का गठजोड़
देश के क़रीब 12 राज्यों में गन्ने की खेती होती है और ज़्यादातर राज्यों में भुगतान का कोई संकट नहीं है। उत्तर प्रदेश में इस संकट के बारे में किसान नेता वीएम सिंह का कहना है, ‘सरकार और चीनी मिल मालिकों के बीच एक सांठगांठ लंबे समय से चल रही है। पार्टी बदल जाती है, सरकार बदल जाती है लेकिन नेता और मिल मालिकों का नापाक गठजोड़ ख़त्म नहीं होता।’
उत्तर प्रदेश में क़रीब 47 लाख किसानों ने 119 चीनी मिलों को क़रीब एक करोड़ 20 लाख टन गन्ने की आपूर्ति की है। सरकार ने इस बार गन्ने की क़ीमत 320 रुपये प्रति क्विंटल तय की है। इस हिसाब से किसानों के क़रीब 33 हज़ार करोड़ का भुगतान बनता है लेकिन सितंबर के पहले सप्ताह तक क़रीब 18 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था और 15 हज़ार करोड़ रुपये बक़ाया है।
मिल मालिकों के तर्क
मिल मालिक भुगतान नहीं करने के कई और कारण गिनाते हैं। उनके मुताबिक़, केंद्र सरकार ने सब्सिडी के तौर पर दिए जाने वाले 8300 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है। मिलों को ये सब्सिडी उत्पादन, सुरक्षित चीनी भंडार और ब्याज के तौर पर होने वाले ख़र्च के तौर पर दी जाती है। उनका ये भी कहना है कि प्रदेश सरकार ने मिलों को बिजली आपूर्ति के क़रीब डेढ़ हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है।
इस विषय पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार शैलेश और किसान नेता वीएम सिंह की बातचीत।
इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल के पूर्व जुडिशियल सदस्य और क़ानून के विशेषज्ञ शैलेंद्र यादव का कहना है कि गन्ना मिल मालिकों को एक विशेष छूट मिली हुई है। वह ये कि किसानों को भुगतान किए बिना बकाए को ख़र्च में दिखा कर टैक्स में छूट ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि मिल मालिक बकाया रक़म को ख़र्च में दिखा कर कम्पनी को घाटे में दिखा देते हैं जिससे उनको टैक्स नहीं देना पड़ता है।
यादव का कहना है कि सरकार अगर वास्तविक ख़र्च पर ही टैक्स में छूट दे और किसानों के बकाए पर ब्याज अनिवार्य कर दे तो मिल मालिक कभी भी किसानों का पैसा रोक कर नहीं रखेंगे।
वीएम सिंह का कहना है कि किसान संगठित नहीं हैं, वे चुनाव के समय धर्म और जाति के आधार पर बंट जाते हैं और राजनीतिक दल इसी का फ़ायदा उठाते हैं। वे कहते हैं, ‘देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में किसानों के भुगतान का संकट नहीं है। उत्तर प्रदेश में नेताओं की सांठगांठ के चलते सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भी लागू नहीं हो पाता है। सुप्रीम कोर्ट बकाए पर ब्याज देने का आदेश दे चुका है लेकिन राज्य सरकार उसे लागू नहीं करती है।’ उन्होंने कहा कि प्रदेश की 119 में से 24 मिलें सहकारी क्षेत्र में और एक उत्तर प्रदेश सरकार की है और इन मिलों पर भी किसानों का पैसा बाक़ी है।
हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन मिलों को किसानों के बकाए के भुगतान के लिए 5 सौ करोड़ रुपये देने की घोषणा की और प्राइवेट मिलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की चेतावनी भी दी लेकिन उसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।
चीनी मिलों की कमाई बढ़ी
पिछले कुछ सालों में चीनी मिलों की कमाई तेज़ी से बढ़ी है। पहले गन्ने से 7-8% से कम चीनी निकलती थी लेकिन अब 11-12% चीनी मिलने लगी है। इससे निकलने वाला सीरा पहले सिर्फ़ शराब कम्पनियों को बेचा जाता था लेकिन अब इससे एथेनॉल बनाकर कर पेट्रोल में मिलाया जाता है। गन्ने की बची हुई भूसी से बिजली बनने लगी है और इस तरह से मिलों की आमदनी बढ़ी है।
गन्ने की क़ीमत तय करते समय सरकार चीनी मिलों को बाय प्रोडक्ट से होने वाली अतिरिक्त आमदनी पर ध्यान नहीं देती। चीनी मिलों की सिर्फ़ 60% आमदनी अब चीनी से होती है। 40% आमदनी सीरा, एथेनॉल और बिजली की बिक्री से होती है। मिल मालिक अब किसानों के भुगतान के लिए सरकार से विशेष पैकेज की मांग कर रहे हैं।
बहाना चाहे जो भी हो मिल मालिक किसानों का पैसा दबाकर बैठ गए हैं। वीएम सिंह के मुताबिक़, भुगतान नहीं होने के कारण किसान तबाह हो रहे हैं। लेकिन सरकार चीनी मिलों के दबाव के कारण कोई ठोस क़दम उठाने के लिए तैयार नहीं है।