गोरखपुर अस्पताल के निलंबित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान के ख़िलाफ़ पिछले साल दिया गया फिर से विभागीय जाँच का आदेश वापस ले लिया गया है। राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को यह जानकारी दी है। अब सरकार तीन महीने में उनके निलंबन पर फ़ैसला ले सकती है। पिछले साल दोबारा विभागीय जाँच के आदेश देने से पहले 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार की ही रिपोर्ट ने कफ़ील ख़ान को उन मुख्य आरोपों से मुक्त कर दिया था जिसमें 63 बच्चों की मौत के बाद सरकार ने उन्हें पहले निलंबित किया था और बाद में गिरफ़्तार कर उन्हें जेल भेज दिया था।
डॉक्टर कफ़ील ख़ान तब गोरखपुर के सरकारी अस्पताल बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विशेषज्ञ के तौर पर काम कर रहे थे। अगस्त 2017 में दो दिन के अंदर 63 बच्चों की मौत हो गई थी। बच्चों वाले वार्ड में ऑक्सीज़न सप्लाई नहीं होने की बात सामने आई थी।
सरकार ने आरोप लगाया था कि यह जानते हुए कि स्थिति काफ़ी ख़राब है कफ़ील ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं दी थी और तत्काल क़दम उठाने में विफल रहे थे। उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी और जेल की सज़ा हुई थी। जेल जाने के क़रीब आठ महीने बाद अप्रैल 2018 में उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज़मानत दी थी। तब कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल कॉलेज में लापरवाही का ख़ान के ख़िलाफ़ कोई सीधा सबूत नहीं है।
इसके बाद सितंबर 2019 में सरकार की ही 15 पन्नों की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट को डॉक्टर ख़ान को सौंपा गया था। इस रिपोर्ट में इसका ज़िक्र था कि डॉ. ख़ान मेडिकल लापरवाही के लिए दोषी नहीं थे। इसमें यह भी कहा गया था कि वह न तो ऑक्सीज़न सप्लाई के टेंडर की प्रक्रिया में शामिल थे और न ही इससे जुड़े किसी भ्रष्टाचार में।
हालाँकि उनके निलंबन को अब तक रद्द नहीं किया गया है। इसके ख़िलाफ़ कफील ख़ान ने याचिका दायर की थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार इसी को लेकर यूपी के अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने शुक्रवार को हाई कोर्ट को बताया, 'इस याचिका में ज़िक्र किए गए 24 फ़रवरी 2020 के आदेश को वापस ले लिया गया है, जिससे राज्य इस मामले में नए सिरे से आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है।"
कफील खान द्वारा 22 अगस्त, 2017 को उनके निलंबन को चुनौती दी गई थी। पिछले साल 24 फरवरी को अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने खान के ख़िलाफ़ एक और जाँच का आदेश दिया था। जाँच के इस आदेश को कफील ख़ान ने अदालत में चुनौती दी थी।
हाई कोर्ट ने 29 जुलाई को याचिका पर सुनवाई की और सरकार से जवाब मांगा था। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि तीन महीने की अवधि के भीतर डॉ. खान के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई को समाप्त करने के लिए सभी प्रयास किए जाएँगे।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि अब अदालत को याचिकाकर्ता के निलंबन को जारी रखने के औचित्य पर विचार करना होगा जो 22 अगस्त 2017 को पारित एक आदेश के अनुसार था।
बता दें कि बाद में उन्हें पिछले साल 29 जनवरी को उनको एक अन्य मामले में मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ़्तार किया गया था। तब डॉ. कफ़ील नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ मुंबई में हो रहे एक प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे थे। डॉ. कफ़ील पर आरोप था कि उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में 12 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में भड़काऊ भाषण दिया था। इसके बाद 10 फ़रवरी को उन्हें जमानत मिली थी। जमानत मिलने के बाद भी डॉ. कफ़ील को मथुरा जेल में ही रखा गया था और चार ही दिन बार उत्तर प्रदेश सरकार ने उन पर रासुका यानी एनएसए लगा दिया था।
जब इस मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई तो अदालत ने डॉ. कफील ख़ान को रिहा करने का आदेश दिया और कोर्ट ने कहा था कि एनएसए के तहत उनकी गिरफ़्तारी ग़ैर-क़ानूनी है और उन्हें रिहा किया जाए।
हाई कोर्ट ने कहा था, 'कफील का पूरा भाषण पढ़ने पर प्रथम दृष्टया नफ़रत या हिंसा को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं लगता है। इसमें अलीगढ़ में शांति भंग करने की धमकी भी नहीं लगती है।' कोर्ट ने कहा, 'ऐसा लगता है कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने भाषण से कुछ वाक्यों को चयनात्मक रूप से देखा और चयनात्मक उल्लेख किया था, जो इसकी वास्तविक मंशा की अनदेखी करता है।'