कहते हैं कि जब 'दुश्मन' भी क़रीब आने लगें तो समझ लेना चाहिए कि हवा का रुख बदला हुआ है! तो उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के क़रीब आने के क्या मायने हैं? क्या शिवपाल यादव को भी चुनावी नतीजों का आभास होने लगा है या फिर अपने भतीजे के लिए फिर से 'प्यार' उमड़ आया है? 2017 के चुनावों से पहले तो दोनों के बीच तलवारें तनी थीं!
समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने गुरुवार को शिवपाल यादव से मुलाक़ात की और उनके साथ की तसवीर के साथ ही जो ट्वीट किया उसके काफ़ी गहरे राजनीति मायने हैं। अखिलेश ने ट्वीट में कहा कि प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाक़ात और गठबंधन की बात तय हुई।
2017 में विधानसभा से पहले अखिलेश द्वारा सपा से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा का गठन किया था। उन्होंने प्रसपा से ही चुनाव लड़ा था। इसका सीधा असर सपा के परांपरागत वोटबैंक में बंटवारे के रूप में पड़ा था।
शिवपाल सिंह यादव पूर्व में अखिलेश यादव की सरकार के सबसे कद्दावर मंत्री के रूप में काम करते रहे हैं। मुलायम सिंह की सरकार के वक़्त से ही उन्हें समाजवादी पार्टी का एक कद्दावर चेहरा माना जाता है।
बीते दिनों से ही ऐसी अटकलें सामने आ रही थीं कि शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव एक बार फिर साथ आ सकते हैं। हालांकि शिवपाल ने आगामी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज होने पर पांच साल पुरानी तल्खी को दूर करने की पहल करते हुए अखिलेश से गठबंधन कर चुनाव लड़ने की पेशकश की थी। अखिलेश ने भी कहा था कि शिवपाल यादव उनके चाचा हैं और सपा उनका सम्मान करेगी। शिवपाल यादव ने हाल में कई बयानों में यह कहा था कि वह समाजवादी पार्टी में अपनी पार्टी के विलय के लिए भी तैयार हैं और एसपी संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भी यही इच्छा है।
इसी बीच अखिलेश गुरुवार दोपहर में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के संस्थापक के आवास पहुँचे और क़रीब 40 मिनट तक उनसे बातचीत की।
दोनों दलों के सैकड़ों समर्थक शिवपाल के आवास के बाहर जमा हो गए और उन्होंने 'चाचा-भतीजा जिंदाबाद' के नारे लगाए।
सपा के सूत्रों के हवाले से पीटीआई ने बताया कि अखिलेश के वहाँ पहुंचने से पहले सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव शिवपाल के आवास पर मौजूद थे।
चाचा और भतीजे के बीच संबंधों में खटास 2016 से आनी शुरू हुई थी। अखिलेश ने मुख्यमंत्री रहते हुए शिवपाल यादव को बर्खास्त कर दिया था। जनवरी 2017 में अखिलेश सपा अध्यक्ष बने और शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बनाई।
चाचा-भतीजे के बीच बैठक पर प्रतिक्रिया देते हुए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि बैठक से चुनाव में बीजेपी की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, "बीजेपी 2022 में 300 से अधिक सीटें जीतकर फिर बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। चाहे 'चाचा' 'भतीजा' या 'बुआ' 'भतीजा' या सपा या कांग्रेस या उन सभी की बैठक हो, केवल कमल खिलेगा।"
बता दें कि यूपी की सत्ता में वापसी के लिए अखिलेश छोटे-छोटे दलों से गठबंधन करने में जुटे हुए हैं। बीजेपी से चुनावी मुक़ाबले के लिए अखिलेश जातीय आधार वाले आधा दर्जन से भी ज़्यादा दलों के साथ गठबंधन कर चुके हैं। अखिलेश ने आरएलडी, सुभासपा, महानदल, एनसीपी, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और कृष्णा पटेल के अपना दल के साथ गठबंधन तय कर लिया है। इनके अलावा भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल रहे कई दलों के साथ भी सपा तालमेल कर रही है।