भाजपा आलाकमान एक तरफ तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल के असंतुष्ट सहयोगियों के बीच समझौते की कोशिश में लगा हुआ है लेकिन असंतुष्ट सहयोगी योगी सरकार के लिए विधानसभा और विधान परिषद में भी मुश्किलें पेश कर रहे हैं। नजूल भूमि को लेकर योगी सरकार के विधेयक पर यही हुआ। विधान सभा द्वारा उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक पारित करने के ठीक दो दिन बाद, विधान परिषद में विरोध होने पर राज्य सरकार ने विधेयक को सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया है। यानी बिल एक तरह से ठंडे बस्ते में चला गया है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, सिद्धार्थनाथ सिंह और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी आदि ने इस विधेयक का जोरदार विरोध किया था।
यूपी बीजेपी प्रमुख भूपेन्द्र सिंह चौधरी ने तो इस विधेयक को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया और योगी आदित्यनाथ से साफ शब्दों में कहा कि इस विधेयक को सेलेक्ट कमेटी में भेज दिया जाए। आमतौर पर भूपेंद्र चौधरी ने योगी के खिलाफ इतना कड़ा स्टैंड पहले नहीं लिया था। इस विधेयक के विरोध में आए भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, विधायकों ने कहा कि यूपी में नजूल जमीन पर लोगों के घर बने हुए हैं। वे जब उजाड़े जाएंगे तो कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जाएगी। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के बावजूद जिन लोगों को वहां सुंदरीकरण के नाम पर उजाड़ा गया, उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया। यही हाल वाराणसी में भी हुआ, वहां काशी कॉरिडोर के नाम पर लोगों को उजाड़ा गया और 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की जीत का अंतर सिर्फ डेढ़ लाख वोट रह गया। इन सब तथ्यों के मद्देनजर भाजपा नेताओं ने नजूल भूमि विधेयक का विरोध किया था।
भाजपा के सूत्रों ने बताया कि "चूंकि चौधरी प्रदेश भाजपा प्रमुख हैं, इसलिए उन्होंने विधेयक को सेलेक्ट कमेटी को भेजने के लिए अध्यक्ष से अनुरोध करने से पहले सरकार के साथ-साथ पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी परामर्श किया था।" उनके अनुसार, कुछ भाजपा विधायक विधेयक के कुछ प्रावधानों से नाराज थे और वे चाहते थे कि राज्य सरकार इसमें आवश्यक संशोधन करे। राज्य कैबिनेट की मंजूरी के बाद गुरुवार को यह बिल सदन में पेश किया गया था।
सूत्र ने कहा- "मुझे उम्मीद है कि चयन समिति विभिन्न लोगों और स्टेकहोलडर्स से सलाह करेगी और फिर दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।" भाजपा के अन्य नेता ने कहा कि विधेयक को सेलेक्ट कमेटी में भेजने का आशय उसे ठंडे बस्ते में डालना है। क्योंकि योगी सरकार ने अपनी ही पार्टी के नेताओं का मूड देख लिया है। वो इसे लागू करने पर जोर नहीं देगी।
विधेयक का उद्देश्य नजूल भूमि को निजी फ्रीहोल्ड में बदलने से रोकना है। नजूल भूमि का तात्पर्य "राज्य सरकार के स्वामित्व वाली भूमि से है, लेकिन अक्सर राज्य भर में इसे सीधे राज्य की संपत्ति के रूप में नहीं गिना जाता है"। यूपी के लगभग हर शहर में इस श्रेणी की जमीन है और कई लोग लीज का नवीनीकरण कराने के बाद वहां रहते हैं। कई लीज को एक सदी तक बीत चुकी है।
इस विधेयक पर विरोध की शुरुआत भाजपा विधायक हर्ष वाजपेयी ने की। वाजपेयी ने नजूल भूमि पर रहने वाले गरीब लोगों का जिक्र करते हुए कहा कि इस विधेयक के कानून बनने पर उन गरीबों के आशियाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्हें उजाड़ दिया जाएगा। भाजपा विधायक ने विधेयक पर जोरदार आपत्ति जताई थी। उनकी बात डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सिद्धार्थनाथ सिंह को भी समझ आई। इन नेताओं ने भी विधेयक का विरोध कर दिया।
विधेयक के एक प्रावधान यह भी है कि सरकार या तो उन नजूल भूमि के पट्टाधारकों का पट्टा जारी रख सकती है, जिनका पट्टा अभी भी जारी है और जो नियमित रूप से पट्टे का किराया जमा कर रहे हैं। पट्टे की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है। विधेयक में यह भी उल्लेख किया गया है कि पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद, ऐसी भूमि को राज्य सरकार द्वारा फिर से शामिल माना जाएगा। लेकिन इस नियम का फायदा रसूखदार लोग तो उठा लेते लेकिन गरीब पट्टाधारक की जमीन छिनने का खतरा था।
यूपी विधानसभा में इस बिल का सपा और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी विधायकों ने जोरदार विरोध किया था। योगी का पैर छूने वाले और उनके समर्थकों में शामिल पूर्व मंत्री और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी इस बिल का विरोध किया था। केंद्र में मोदी सरकार का समर्थन कर रही अपना दल (सोनेलाल) की नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी इस बिल को 'अनावश्यक' और 'आम लोगों की भावना के खिलाफ' बताया है। उन्होंने मांग की थी कि यूपी सरकार इस बिल को वापस ले।