राज्यसभा चुनाव के घटनाक्रम ने उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव को इशारा कर दिया है कि अगर उन्होंने अपनी राजनीति के तरीके को ठीक नहीं किया तो लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी कुछ भी हासिल नहीं कर पाएगी। यूपी में हाल के घटनाक्रमों ने साफ कर दिया कि अखिलेश की पार्टी पर अस्तित्व का संकट आ गया है।
यूपी में 10 राज्यसभा सीटों पर सभी पार्टियों की साख दांव पर है। सोमवार की रात को अखिलेश यादव ने विधायकों को डिनर पर बुलाया। इसमें सपा के चीफ व्हिप मनोज कुमार पांडे, राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी, अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह, मुकेश वर्मा, महराजी प्रजापति, पूजा पाल शामिल नहीं हुए। इससे सपा नेताओं में क्रॉस वोटिंग की आशंका पैदा हो गई है। मंगलवार सुबह चीफ व्हिप मनोज कुमार पांडे ने अपना इस्तीफा भेज दिया और कहा कि वे तीन अन्य विधायकों राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी, अभय सिंह अब भाजपा को वोट देंगे। बाद में कुछ और सपा विधायकों के भाजपा कैंप में जाने की सूचनाएं आईं। अखिलेश यादव को रात को ही मालूम चल गया था कि चीफ व्हिप मनोज पांडे डिनर बैठक से गायब हैं। उन्होंने उसी समय मनोज पांडे को हटाने और नया व्हिप नियुक्त करने की घोषणा नहीं की। इस झटके पर अखिलेश का त्वरित एक्शन गायब था।
मनोज पांडे को अखिलेश यादव के सबसे नजदीकी नेताओं में माना जा रहा था। पार्टी में उनकी ही तूती बोल रही थी। मनोज पांडे पार्टी ने सबसे पहले बयान दिया कि सभी सपा विधायकों को अयोध्या जाना चाहिए। इसका स्वामी प्रसाद मौर्य ने विरोध किया। स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार पिछड़ों और दलितों के मुद्दों के जरिए भाजपा और उसकी सवर्ण राजनीति पर हमले कर रहे थे। स्वामी के विरोध में मनोज पांडे ने सार्वजनिक बयान देना शुरू कर दिया। जब यह तय करने की बारी आई कि पार्टी मुखिया अखिलेश यादव किसके साथ खड़े होंगे तो अखिलेश अपने ब्राह्मण नेता मनोज पांडे के साथ खड़े थे। स्वामी प्रसाद मौर्य ने मनोज पांडे के बयानों से परेशान होकर और अखिलेश की अनदेखी की वजह से पार्टी छोड़ दी। इससे पहले मनोज पांडे ने अखिलेश की शान में कई ब्राह्मण सम्मेलन कराए थे और तब इसे अखिलेश की सोशल इंजीनियरिंग के रूप में खूब प्रचारित किया गया था।
दो सपा विधायकों के बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगड़े विधायक सपा से जीतने के बावजूद उसके साथ विचारधारा के रूप में नहीं जुड़े थे। अमेठी की गौरीगंज विधानसभा सीट से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने मीडिया से कहा, "अंतरात्मा की आवाज पर वोट करना है।" राम मंदिर के बारे में सवाल पर उन्होंने कहा: "राम कण-कण में हैं, राम मन-मन में हैं।"
इसी तरह अयोध्या की गोसाईगंज विधानसभा सीट से सपा विधायक अभय सिंह ने कहा कि वो वोट डालने से पहले यह नहीं बताएंगे कि उन्होंने किसे वोट दिया है, लेकिन उन्होंने कहा, "भगवान राम हमारे आराध्य हैं, हम तो उन्हीं के कुल खंडन के हैं। हमारे भगवान, हम उनके ही परिवार से हैं।”
ऐसा नहीं है कि समाजवादी विचारधारा किसी भगवान को मानने से रोकती है। लेकिन जब पार्टी का विधायक यह कहते है कि वो अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालेगा तो उसकी विचारधारा पर शक पैदा होता है। सपा के अगड़े विधायकों की अंतरात्मा विचारधारा पर भारी पड़ती रही है।
रविवार को खबर आई कि अंबेडकर नगर के विधायक रितेश पांडे ने बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। रितेश पांडे को इसके बदले पीएम मोदी के साथ लंच का इनाम भी मिला। रितेश पांडे के पिता राकेश पांडे सपा विधायक (जलालपुर) हैं। जलालपुर अंबेडकर नगर की तहसील है। अंबेडकर नगर में विधानसभा की पांच सीटें हैं। सभी पांच पर सपा का कब्जा है यानी अंबेडकर नगर सपा का सबसे मजबूत गढ़ है। लेकिन भाजपा ने वहां पांडे खानदान की बदौलत सेंध लगा दी। पिता-पिता अब भाजपा के खेमे में आ चुके हैं। इस टारगेट को मनोज पांडे के जरिए भाजपा ने हासिल किया।
इस घटनाक्रम से एक बात यह साफ हुई कि भाजपा लोकसभा चुनाव के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। बसपा से रितेश पांडे को इसलिए तोड़ा गया, क्योंकि वहां भाजपा के पास मजबूत प्रत्याशी नहीं था। इस तरह रितेश के रूप में उसे प्रत्याशी मिला, उसके पिता बोनस राकेश पांडे बोनस के रूप में आए और राज्यसभा चुनाव में वोट हासिल हो गया। अंबेडकर नगर में सपा का मजबूत किला हिल गया।
अखिलेश यादव ने अभी जब राज्यसभा के लिए प्रत्याशी तय किए तो उसमें दो अगड़ी जाति के लोगों को टिकट दिया और तीसरे प्रत्याशी रामजी लाल सुमन को दलित प्रत्याशी के रूप में उतारा। इसमें कहीं भी अल्पसंख्यक और ओबीसी को महत्व नहीं मिला। सलीम शेरवानी ने इस पर खुलकर बयान दिया- फिर अल्पसंख्यक समुदाय अखिलेश की पार्टी के साथ क्यों खड़ा हो। जब सारे टिकट सवर्ण लोगों को दिए गए। जया बच्चन का पार्टी के लिए क्या योगदान है, जो उन्हें टिकट दिया गया, उनके पति घोषित रूप से पीएम मोदी के भक्त हैं। सलीम शेरवानी ने साफ किया कि वो अपने लिए टिकट नहीं मांग रहे हैं, वो पांच बार बदायूं से सांसद रहे हैं। वो ये मुद्दा उठाना चाहते हैं कि आखिर अखिलेश यादव किस तरह की राजनीति करना चाहते हैं।
अखिलेश यादव ने सपा के कुछ लोकसभा प्रत्याशियों की घोषणा पहले ही कर दी है। इन नामों में एक नाम शफीकुर्रहमान बर्क का भी था। उनका मंगलवार सुबह निधन हो गया। बर्क की उम्र 94 साल थी। अखिलेश को मालूम था कि बर्क बीमार हैं और अब चुनाव नहीं लड़ सकते। वो सपा के संस्थापक सदस्यों में थे। पांच बार संभल से सांसद चुने गए थे। अखिलेश चाहते तो उनके परिवार या किसी कर्मठ सपा कार्यकर्ता को बर्क से आशीर्वाद दिलाकर टिकट दे सकते थे। यह एक सामान्य बुद्धि वाली राजनीति थी लेकिन अखिलेश ने 94 साल के बीमार बर्क को फिर से टिकट देकर उस इलाके में अल्पसंख्यकों की हमदर्दी हासिल करने की कोशिश की।
2022 के विधानसभा चुनाव में 35 अल्पसंख्यक विधायकों के साथ सपा ने शानदार प्रदर्शन किया। सपा टिकट पर ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जीतकर आए। हालांकि 2022 में सरकार भाजपा की बनी। 2017 वाले योगी आदित्यनाथ 2022 में बुलडोजर बाबा के रूप में सामने आए। सपा को मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में इस बुलडोजर राजनीति का मुकाबला करना था, लेकिन वो गायब रही। अखिलेश यादव घर बैठकर ट्वीट से काम चला रहे थे। ये बुलडोजर अल्पसंख्यकों पर चलाए गए लेकिन सपा इसके खिलाफ एक सशक्त आंदोलन नहीं खड़ा कर सकी। उसने मान लिया कि मुसलमानों के पास उसे वोट देने के अलावा और कोई चारा नहीं है। उसका टेस्ट होता, इससे पहले सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो गया। इसलिए हालात संभल गए लगते हैं। लेकिन राज्यसभा चुनाव ने अखिलेश और उनकी पार्टी को ओबीसी के मामले में कमजोर कर दिया है।