जिस पंचांग से शुभ मुहूर्त निकाला जाता है, क्या उसकी मदद से अपराध पर काबू पाया जा सकता है? कम से कम उत्तर प्रदेश पुलिस ने तो ऐसी ही योजना बनाई है। पुलिस का मानना है कि अपराध की अधिकांश घटनाएं 'कृष्ण पक्ष' में 'अमावस्या' से एक सप्ताह पहले और उसके एक सप्ताह बाद होती हैं। डीजीपी ने निर्देश दिया है कि इस अवधि के दौरान अपराध की घटनाओं की मासिक समीक्षा की जानी चाहिए।
इसी को आधार बनाकर उत्तर प्रदेश पुलिस इसी तरह की रणनीति बना रही है। यूपी के डीजीपी विजय कुमार ने जिलों के पुलिस अधिकारियों को एक परिपत्र जारी किया है और उन्हें अमावस्या के दिनों और उसके एक सप्ताह के दौरान यूपी 112 और क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स (सीसीटीएनएस) के अपराध रिकॉर्ड का अध्ययन करने का निर्देश दिया है।
परिपत्र में कहा गया है कि अवैध गतिविधियों से निपटने के लिए मैपिंग योजना तैयार की जाए। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार डीजीपी ने कहा है, '1 अगस्त को पूर्णिमा का दिन था और 2 अगस्त को शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक चमकदार चांदनी थी, जिससे अपराधियों की आवाजाही रुकी रही थी। 8 अगस्त से अमावस्या की अवधि शुरू हुई जो 16 अगस्त तक जारी रही। 16 अगस्त को शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक अंधेरा था, जिससे अपराधियों को अंधेरे का फायदा उठाने और अपराध करने में मदद मिली।'
रिपोर्ट के अनुसार डीजीपी ने कहा है कि 14 सितंबर और 14 अक्टूबर को अमावस्या होगी, इसलिए इससे एक सप्ताह पहले और बाद में अधिकारी अलर्ट रहें। परिपत्र में कहा गया है, 'सर्कुलर सिर्फ पुलिस के लिए नहीं बल्कि आम जनता के लिए भी है ताकि वे सतर्क रहें। मज़बूत पुलिसिंग के माध्यम से प्रदेश में सुरक्षित वातावरण स्थापित किया जाये। लोगों में विश्वास की भावना पैदा करने के लिए प्रभावी रात्रि गश्त सुनिश्चित की जानी चाहिए।'
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, "इन गिरोहों के सदस्य 'अमावस्या' से पहले झाड़ियों में रहते हैं और अपराध को अंजाम देने के बाद वे अपने देवता को जानवरों की बलि देते हैं।" टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पारदी और बावरिया जैसे गिरोह अमावस्या की रात को हमला करते हैं, इससे पहले वे पड़ोस के इलाके में शौच कर देते हैं और उसे ही हमला करने का स्थान मान लेते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार यूपी पुलिस पहले भी ऐसे सर्कुलर का इस्तेमाल कर चुकी है। कहा जाता है कि यह एक सदियों पुरानी परंपरा है। तब चंद्रमा के अंधेरे वाली अवधि के दौरान एसएचओ और प्रभारियों को छुट्टी लेने की अनुमति नहीं दी जाती थी।