ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर यूपी सरकार ने गुरुवार 29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर दी है। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। इस बीच अति पिछड़े वर्ग की राजनीति करने वाले नेता ओमप्रकाश राजभर ने गुरुवार को यूपी सरकार और सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के बिना शहरी निकाय चुनाव कराने का आदेश यूपी सरकार को दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को सरकार को आदेश दिया कि यूपी में बिना ओबीसी कोटा लागू किए नगरीय निकाय चुनाव कराए जाएं। इसके बाद सपा समेत सभी विपक्षी दलों ने यूपी की बीजेपी सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। इस पर यूपी के सीएम ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी और बिना ओबीसी आरक्षण लागू कराए स्थानीय निकाय चुनाव नहीं कराए जाएंगे। यानी मामला लंबा खिंच गया। सुप्रीम कोर्ट में जब एसएलपी स्वीकार की जाएगी और उस पर तारीख मिलेगी, फिर सुनवाई होगी, इस सारी प्रक्रिया में खासा समय लगने वाला है लेकिन तब तक यूपी की राजनीति पूरी तरह गरमाई रहेगी।
अगर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहरा दिया तो तब ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटें सामान्य मानी जाएंगी। हालांकि ऐसा मुश्किल लगता है। ओबीसी लॉबी बड़े पैमाने पर सक्रिय है और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को गौर से पढ़ा जा रहा है।
इससे पहले बुधवार को योगी आदित्यनाथ सरकार ने मामले की जांच के लिए राज्य में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था। आयोग में पांच सदस्य हैं। इसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जज राम अवतार सिंह करेंगे। यानी यह आयोग सरकार को सलाह देगा कि ओबीसी में किस जाति को कितना आरक्षण दिया जाए। यूपी सरकार के प्रवक्ता ने कहा, आयोग की रिपोर्ट के आधार पर यूपी के नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग आरक्षण तय किया जाएगा।
निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट कराकर आयोग अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। उस रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार नगर निगम चुनाव में ओबीसी कोटा तय करेगी।
उत्तर प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1916 में स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 1994 में किया गया। पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए अधिनियम में सर्वेक्षण कराने का भी प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार राज्य सरकार द्वारा हर नगर निकाय में पिछड़े वर्गों का त्वरित सर्वेक्षण किया जाना है।
1991 के बाद से नगर निकायों के सभी चुनाव (1995, 2000, 2006, 2012 और 2017) अधिनियम में दिए गए इन प्रावधानों और रैपिड सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर आयोजित किए जाते रहे हैं।
ओबीसी पॉलिटिक्स चरम पर
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को कहा कि उनकी पार्टी संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ यात्रा निकालेगी। लेकिन अति पिछड़े वर्ग के नेता ओमप्रकाश राजभर ने गुरुवार को कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए। राजभर ने पूछा कि जब हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही थी, तब सरकार क्या कर रही थी। सरकार की ओर से हाईकोर्ट में ठीक से पैरवी क्यों नहीं की गई।राजभर ने कहा कि सिर्फ आयोग पर आयोग बन रहे हैं लेकिन नतीजा कुछ नहीं आ रहा है। यहां यह बताना जरूरी है कि योगी सरकार ने बुधवार को एक आयोग गठित किया है, जिसका जिक्र इस खबर में ऊपर आ चुका है।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष राजभर ने कहा कि ओबीसी आरक्षण को लेकर अधिकारियों ने गड़बड़ी की है, उनकी पहचान कर बीजेपी सरकार उन्हें क्यों नहीं दंडित करती है।
अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण सपा सरकार में खत्म हुआ था। जब अखिलेश सत्ता में होते हैं तो उन्हें ओबीसी नहीं याद आते हैं, उन्हें मुसलमान याद नहीं आते हैं, उन्हें सिर्फ यादव याद आते हैं। अपने पांच साल के कार्यकाल में अखिलेश सामाजिक न्याय नहीं कर पाए। उन्हें अति पिछड़ी जातियां याद नहीं आतीं।
ओमप्रकाश राजभर ने 2017 का चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था। लेकिन बीजेपी पर अति पिछड़ों की बात न सुने जाने का आरोप लगाकर राजभर बाहर आ गए और सपा का दामन थामा। 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा। सुभासपा के 6 विधायक जीतकर आए, जिनमें राजभर खुद भी शामिल हैं। लेकिन सपा की सरकार नहीं बन पाई और कुछ ही दिन में राजभर का अखिलेश से मोहभंग हो गया। अब राजभर फिर से बीजेपी से हाथ मिलाने को तैयार हैं। 2024 के चुनाव में बीजेपी को उनकी जरूरत है, इसलिए वो राजभर और उनकी शैली की राजनीति को नजरन्दाज नहीं कर पा रही है।