पाँच साल में अख़लाक हत्याकांड की सुनवाई तक शुरू नहीं, परिजनों पर दबाव

04:55 pm Sep 29, 2020 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

राजधानी दिल्ली से सटे दादरी में 5 साल पहले मुहम्मद अख़लाक को गोमांस रखने के आरोप में उग्र भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। अब तक अदालत में उस मामले की सुनवाई शुरू नहीं हुई है। इसके उलट अख़लाक के परिजनों का आरोप है कि उन पर समझौता करने और मामला वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है।

28 सितंबर, 2015 को दादरी के बिसाडा गाँव में हुई इस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया था। यह उस समय की पहली बड़ी घटना थी जब गाय और गोमांस के मुद्दे पर किसी को पीट-पीट कर मार डाला गया हो। किसी समुदाय विशेष को निशाना बनाने की एक के बाद एक घटनाएं उसके बाद हुईं। कथित गोरक्षकों के दल ने देश के अलग-अलग जगहों पर एक के बाद एक समुदाय विशेष के लोगों से मारपीट की थी। वह मामला गोमांस रखने का हो, कोई दूसरा मांस भी रखने का हो, गाय खरीदने बेचने का हो, समुदाय विशेष निशाने पर था।

मोदी ने दिया था बयान

बात यहां तक बढ़ी कि काफी विरोध प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को इस पर मुंह खोलना पड़ा था। उन्होंने राज्य सरकारों से ऐसे सभी लोगों का डेटाबेस बनाने को कहा था।

पर मुहम्मद अख़लाक के परिजनों को 5 साल बाद भी न्याय का इंतजार है। वे चाहते हैं कि जल्द से जल्द यह मामला अदालत में शुरू हो और दोषियों को सज़ा मिले।

मामला वापस लेने का दबाव

इन परिजनों का कहना है कि अभियुक्तों के रिश्तेदार उन पर दबाव डाल रहे हैं कि ये समझौता कर लें और मामला वापस ले लें। अख़लाक के भाई जान मुहम्मद सैफ़ी ने 'द क्विंट' से कहा,

'18 अभियुक्तों के परिजन बीते 5 साल में कम के कम 40 बार हमारे पाए आए हैं और कहा है कि हम मामला वापस ले लें। वे यह मानते हैं कि उनके लड़कों से ग़लती हुई और उसके बाद हमें यह याद दिलातें हैं कि हम पर गोकशी का मामला उन्होंने दर्ज करा रखा है।'


जान मुहम्मद सैफ़ी, अख़लाक के भाई

गोकशी का मामला

जून 2016 में पुलिस ने अख़लाक के परिजनों पर गोकशी का मामला दर्ज कर दिया था। इसमें जान मुहम्मद सैफ़ी, इकरामा, शाइस्ता और दानिश को अभियुक्त बनाया गया था। लेकिन मामला दर्ज कराने वाले सूरजपाल ने यह माना था कि उसने किसी को गाय काटते हुए नहीं देखा था। इसके जो गवाह हैं, उनमें से एक प्रेम सिंह अख़लाक हत्याकांड के अभिुक्त का दादा है।

जान मुहम्मद सैफ़ी ने 'द क्विंट' से कहा, 'गोकशी का मामला बेबुनियाद है। इस वजह से ही स्थानीय पुलिस इसे दर्ज ही नहीं कर रही थी। इसके बाद अखल़ाक हत्याकांड के अभियुक्तों के परिजन यह कहने लगे कि हम हत्याकांड का मामला वापस ले लें तो वे गोकशी का मामला वापस ले लेंगे।'

हत्याकांड के अभियुक्तों के परिजनों ने कहा, 'इस बारे में कुछ मत लिखिए वर्ना मामला फिर गड़बड़ हो जाएगा। मीडिया में बात आ गई तो नुक़सान हो जाएगा, लोगों के पुराने ज़ख़्म फिर खुल जाएंगे।' 

अख़लाक हत्याकांड के अभियुक्तों के परिजनों ने यह माना है कि वे समझौता कर मामला रफादफा करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि दोनों पक्ष एक दूसरे पर लगाए हुए मामले वापस ले लें।

सुनवाई तक शुरू नहीं

हत्याकांड के 5 साल बीत जाने के बावजूद अब तक इस पर सुनवाई तक शुरू नहीं हुई है। अख़लाक के वकील मुहम्मद युसुफ़ सैफ़ी ने 'द क्विंट' से कहा, 'उत्तर प्रदेश पुलिस ने तय समय में चार्ज शीट पेश कर दिया था। पर इन 5 सालों में सिर्फ अभियुक्तों के डिस्चार्ज अप्लीकेशन पर सुनवाई हुई है। ये अभिुक्त जान बूझ कर मामले को लटकाए रखना चाहे हैं और मुक़दमा शुरू होने देना नहीं चाहते। वे न्याय से डरते हैं।'

सैफ़ी ने आरोप लगाया है कि पुलिस 2018 में जारी सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रही है। दिशा निर्देश के अनुसार एक नोडल ऑफिसर होना चाहिए जो मामले की प्रगति पर नज़र रखे। पर इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। अभी तक मामला शुरू भी नहीं हुआ है।

याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अख़लाक़ की हत्या का एक अभियुक्त विशाल राणा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दादरी में हुई जनसभा में दिखाई दिया था। इस दौरान जब मुख्यमंत्री जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो विशाल ने योगी-योगी के ख़ूब नारे लगाये थे। समझा जा सकता है कि विशाल की सत्तारुढ़ पार्टी से नजदीकी रही होगी, वरना वह योगी आदित्यनाथ के समर्थन में नारेबाज़ी क्यों करता।

झारखंड

झारखंड में 22 साल के तबरेज़ को जून 2019 महीने में बाइक चोरी के शक में भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था और उससे ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ के नारे भी लगवाए थे। अब तबरेज़ की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट कहती है कि तबरेज़ की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी न कि भीड़ के द्वारा की गई पिटाई से। पुलिस ने इस मामले में 11 अभियुक्तों पर से हत्या की धारा को भी हटा दिया है।

झारखंड के ही रामगढ़ में जून 2017 में अलीमुद्दीन अंसारी को पीट-पीट कर मार दिया गया था। इस मामले में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने आठ लोगों को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।  लेकिन हाई कोर्ट ने जुलाई 2018 में ज़मानत दे दी। 

2018 में तत्कालीन नागरिक उड्यन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने लिंचिंग के मामले में जेल से ज़मानत पर छूटे आठ लोगों को माला पहनाकर स्वागत किया था। उन्होंने तो इसकी तसवीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर की थीं और कहा था कि न्याय की प्रक्रिया के अनुसार ही उन्होंने ऐसा किया है। हालाँकि काफ़ी ज़्यादा आलोचना होने पर बाद में उन्होंने इस पर दुख जताया था।

राजस्थान

राजस्थान में गाय ले जा रहे पहलू ख़ान को इतना पीटा गया कि अस्पताल में उनकी मौत हो गई। पहलू ख़ान के सभी 6 आरोपी बरी हो गए। लिन्चिंग का वीडियो बनाया गया। इसकी साफ़-साफ़ तसवीरें थीं। पहलू ने मौत से पहले ‘डाइंग स्टेटमेंट’ दिया था और पीटने वालों के नाम बताए थे। पहलू के दो बेटे प्रत्यक्षदर्शी थे। एनडीटीवी का एक एक स्टिंग ऑपरेशन भी था। फिर भी सभी अभियुक्त बरी हो गए। 

उनके परिजनों और वकील ने आरोप लगाया कि इस केस को हर स्तर पर कमज़ोर किया गया। जब काफ़ी किरकिरी हुई तो राजस्थान की काग्रेस सरकार ने कहा कि वह पहलू ख़ान मामले की फिर जाँच कराएगी और इसके लिए एक विशेष टीम का गठन किया जाएगा।

हरियाणा

जुनैद अपने भाई के साथ दिल्ली से ईद की ख़रीदारी कर ट्रेन से हरियाणा जा रहे थे। उसके बैग में गो मांस होने के शक में भीड़ ने पीटा था। बल्लभगढ़ के पास कथित रूप से चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में तीन महीने के अंदर छह में से चार अभियुक्तों को ज़मानत मिल गई थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हरियाणा रेलवे पुलिस ने चार्जशीट में दर्ज दंगा करने, अवैध रूप से एकत्रित होने जैसे कई आरोपों को वापस ले लिया था।

जब सुर्खियों में रहे अख़लाक हत्याकांड में 5 साल बाद सुनवाई तक शुरू नहीं हुई तो दूसरे मामलों के पीड़ितों के परिजन क्या उम्मीद करें, यह सवाल अहम है।