नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में हुए प्रदर्शनों में पुलिस की कार्रवाई पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस पर आरोप लगे हैं कि उसने मुसलिम समुदाय के लोगों को घरों में घुसकर बेरहमी से पीटा है। मुज़फ्फरनगर में भी इस क़ानून के विरोध में 20 दिसंबर को हुए प्रदर्शनों को लेकर पुलिस ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों के पास हथियार थे और ये लोग दंगे और आगजनी में शामिल थे।
पुलिस की ओर से 21 दिसंबर को सुबह 2.30 बजे दर्ज की गई एफ़आईआर में 107 लोगों के नाम हैं। एफ़आईआर में इन सभी पर हत्या के प्रयास का आरोप लगाया है। हालांकि 73 लोगों की गिरफ़्तारी के बाद भी पुलिस की एफ़आईआर में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि पुलिस ने जो हथियार जब्त किये हैं, वे उसे कब और कहां से मिले और यह किस तरह के हथियार हैं। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को अदालती कागजातों से यह जानकारी मिली है।
हैरानी की बात यह है कि जिस दिन प्रदर्शन हुए थे उसमें नामजद और पहचान किए गए लोगों से पुलिस को कोई हथियार नहीं मिले। दूसरी हैरान करने वाली बात यह है कि पुलिस दावा करती है कि घटना के कई घंटे बाद उसने इन हथियारों को जब्त किया है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को यह जानकारी मुज़फ्फरनगर पुलिस की ओर से जिला और सेशन अदालत के सामने रखे गये दस्तावेज़ों से मिली है।
दस्तावेज़ों में कहा गया है, ‘20 दिसंबर, 2019 को प्रदर्शन वाले दिन के एक दिन बाद 21 दिसंबर, 2019 को जहां यह घटना हुई, वहां से .315 बोर की तीन देसी पिस्टल, 12 बोर की तीन पिस्टल, 12 बोर की तीन एसबीबीएल, एक देसी डीबीएल गन, तीन चाकू, तीन तलवारें, 30 खोखे, सात कारतूस, 12 बोर के 8 खोखे, .315 बोर की तीन गोलियां, 32 बोर के 4 खोखे, 31 बोर की एक गोली, 12 बोर की दो गोलियां और 12 बोर की 4 गालियां और 12 बोर रिवॉल्वर जब्त की गई हैं।’
कोर्ट के दस्तावेज़ों से पता चलता है कि पुलिस ने घटना के 18 घंटे बाद इन हथियारों को जब्त किया और जिस जगह से जब्त किया वह जगह सिविल लाइन पुलिस स्टेशन से महज 500 मीटर की दूरी पर है।
अभियुक्तों के एक वकील ने अख़बार से कहा कि इसका मतलब साफ़ है कि पकड़े गए लोगों को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि पुलिस को इतने सारे हथियार पुलिस स्टेशन के नजदीक कैसे मिल गये। नियमों के मुताबिक़, हथियारों को जब्त करते वक्त एक गवाह भी होना चाहिए लेकिन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि उस दौरान कोई भी गवाह वहां नहीं था।
इस पर पुलिस की ओर से अदालत को दिये गए जवाब में कहा गया है कि प्रदर्शन वाले दिन जो अधिकारी ड्यूटी पर तैनात थे वे घायल थे और उन्हें मेडिकल परीक्षण के लिए ले जाया गया था। अख़बार की ओर से इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए मुज़फ्फरनगर के एसपी को कॉल और मैसेज किये गये, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
इससे यह साफ़ पता चलता है कि मुज़फ्फरनगर पुलिस प्रदर्शनकारियों के पास हथियार थे, इस बात को साबित करने में जुटी है। लेकिन उसकी कहानी में बहुत सारे छेद हैं, जो साफ़ दिखाई देते हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने 15 जनवरी को ख़बर की थी कि गिरफ़्तार किये गये 73 लोगों में से 19 लोग सबूतों के अभाव में अदालत या पुलिस की ओर से जमानत पर रिहा कर दिये गये हैं। इनमें से 5 मामलों में पुलिस ने ख़ुद ही सीआरपीसी की धारा 169 के तहत जमानत दी है।
ऐसा नहीं है कि मुज़फ़्फरनगर में ही पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल उठे हैं। फिरोज़ाबाद में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान ऐसे वीडियो सामने आये थे जिनमें पुलिस पत्थर फेंकने वालों के साथ खड़ी दिखाई दी थी।
यूपी पुलिस के डीजीपी ओपी सिंह का कहना है कि राज्य भर में हुई हिंसक झड़पों में 288 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और इनमें से 61 बंदूक की गोलियों से घायल हुए हैं। लेकिन ‘द टेलीग्राफ़’ और कुछ अन्य मीडिया संस्थानों की पड़ताल यह बताती है कि पुलिस इस पर पाक साफ़ नहीं है। एनडीटीवी ने भी कुछ दिन पहले ख़बर दी थी कि पुलिस का दावा है कि 57 जवान हुए गोली लगने से घायल हुए हैं लेकिन पड़ताल में सिर्फ़ 1 ही जवान मिला है।