उत्तर प्रदेश में चार चरणों में होने वाले पंचायत चुनावों में वैसे तो बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस ने पूरी ताक़त लगा रखी है पर सबसे ज़्यादा हलचल दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के खेमों में नज़र आ रही है। हर चुनाव को गंभीरता से लेने वाली बीजेपी ने इस बार भी अन्य दलों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा ताक़त लगा रखी है।
आगामी विधानसभा चुनावों में ख़ुद को सत्ता की दावेदार साबित करने में जुटी समाजवादी पार्टी के लिए पंचायत चुनाव करो या मरो की तरह है। पार्टी ने ज़िला स्तर पर बड़े नेताओं को तैनात कर उन्हें सीटें जीतने का लक्ष्य दे रखा है और ख़ुद अखिलेश यादव राजधानी में बैठ कर सीटवार मॉनिटरिंग करने में जुटे हैं। पश्चिम में चल रहे किसान आंदोलन का फ़ायदा उठाने की नीयत से सपा ने पंचायत चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल से समझौता भी कर रखा है।
बीते कुछ समय से पार्ट टाइम पॉलिटिक्स करती दिख रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ज़रूर पंचायत चुनावों को लेकर महज खानापूर्ति ही करती नज़र आ रही हैं। ज़िला पंचायत के लिए उम्मीदवारों के एलान और ज़ोनल कोऑर्डिनेटरों की ड्यूटी लगाने से ज़्यादा बसपा इन पंचायत चुनावों में करती नहीं नज़र आ रही है।
कांग्रेस की तेज़ी चौंकाने वाली
दशकों बाद कांग्रेस ने यूपी के पंचायत चुनावों में ताल ठोंकी है। रस्मी तौर पर ज़िला पंचायत सदस्यों के लिए उम्मीदवार खड़े करने की भूमिका से आगे बढ़कर कांग्रेस ने इस बार इन चुनावों के लिए ख़ास रणनीति बनाई है। पहली बार कांग्रेस ने ज़िला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की आर्थिक मदद भी की है और प्रचार सामग्री भी उपलब्ध कराई है। ज़िला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे पार्टी प्रत्याशियों के सीधे खाते में आर्थिक मदद भेजी गयी है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय लल्लू सहित दूसरे बड़े नेता ज़िलों का दौरा कर वोट मांग रहे हैं तो प्रदेश मुख्यालय पर नियमित तौर पर प्रचार की मॉनिटरिंग की जा रही है।
प्रदेश कांग्रेस के एक बड़े नेता के मुताबिक़ पंचायत चुनावों के पहले ही पार्टी ने ब्लॉक, तहसील और न्याय पंचायत स्तर पर संगठन को चुस्त करने का काम शुरू कर दिया था। तीन दशकों बाद न्याय पंचायत स्तर तक कांग्रेस का सांगठनिक ढाँचा तैयार किया गया है।
आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी टिकट की माँग करने वाले संभावितों को लक्ष्य दिया गया पंचायत चुनावों में अपने उम्मीदवार जितवाने का। पार्टी की पूरी कोशिश पंचायत चुनावों के बहाने गाँव स्तर तक कार्यकर्ताओं की टीम बनाने पर ज़्यादा है।
बीजेपी के लिए वार्म अप एक्सरसाइज
साल भर से भी कम समय में यूपी के विधानसभा चुनाव होने हैं और सत्ताधारी बीजेपी इन पंचायत चुनावों को वार्म अप एक्सरसाइज की तरह ले रही है। लोकसभा, विधानसभा व निकाय चुनावों में लगातार मिलती रही सफलता के चलते आत्मविश्वास के घोड़े पर सवार बीजेपी को लगता है कि पंचायत चुनाव में उसके विजय रथ को कोई रोक नहीं सकता है। पंचायत चुनावों में शानदार सफलता हासिल कर बीजेपी की कोशिश किसान आंदोलन के चलते पश्चिम में कमज़ोर हुई पकड़ की धारणा को झूठा साबित करने की है।
बीजेपी अध्यक्ष सहित बड़े नेताओं की फौज किसी अन्य दल के मुक़ाबले कहीं पहले से ज़िलों का दौरा कर रहे हैं और हर रोज़ के घटनाक्रम पर नज़र रख रहे हैं। पंचायत चुनावों में पार्टी की पूरी कोशिश जिताउ उम्मीदवारों पर दाँव लगाने की रही है और इसी के चलते बड़े पैमाने पर सांसदों, विधायकों, बड़े नेताओं के परिजनों सहित दूसरे दलों के लोगों को भी टिकट दिए गए हैं। बीजेपी का मानना है कि कम से कम 90 फ़ीसदी ज़िला पंचायत के अध्यक्ष पदों पर उसका क़ब्ज़ा होगा।
सपा जी-जान से जुटी तो बसपा बेपरवाह!
बसपा के एक बड़े नेता का कहना है कि पंचायत चुनावों में सत्ताधारी दल की ही चलती है और विधानसभा चुनावों के मिज़ाज का इससे पता नहीं चलता है। यही कारण है कि इन चुनावों में सबसे निश्चिंत बसपा ही नज़र आती है। ज़िला पंचायत सदस्य पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने के अलावा बसपा ने प्रचार को लेकर कोई ठोस रणनीति तक नहीं बनाई है।
मायावती ने अब तक पंचायत चुनावों के लिए एक अपील तक नहीं जारी की है वहीं अन्य बड़े नेता कहीं दौरा तक नहीं कर रहे हैं। इसके उलट सपा के नेताओं की ज़िलावार ड्यूटी लगाकर उन्हें उम्मीदवार जिताने का लक्ष्य सौंपा गया है। सपा को किसान आंदोलन और रालोद से गठबंधन के चलते पश्चिम और मध्य यूपी में अपने मज़बूत इलाक़ों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।