अखिलेश का साथ छोड़ ‘भाई-भतीजे’ के दम पर यूपी को जीतेंगी माया?

08:36 am Jun 24, 2019 | कुमार तथागत - सत्य हिन्दी

अखिलेश से किनारा कर अकेले अपने दम पर यूपी फतेह का सपना संजोये बैठीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने बीएसीपी संगठन का पुनर्गठन किया है। मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय संयोजक बनाया है। लोकसभा चुनाव ख़त्म होने के बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती निरंतर संगठन में फेरबदल कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राम आसरे कुशवाहा को तो उनके पद पर बनाए रखा गया है पर कई प्रदेशों के अध्यक्ष व जोनल को-ऑर्डिनेटर बदल दिए गए हैं। 

मायावती ने रविवार को संगठन को मजबूत करने व पुनर्गठन के लिए बुलाई गई बैठक में एक तरह से यह साफ़ कर दिया है कि बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों पर चलने का दावा करने वाली और कांशीराम के मिशन वाली बीएसपी में उनका उत्तराधिकारी कोई बाहरी नहीं बल्कि घर का ही होगा।

मायावती ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के दौरान पूरे प्रचार अभियान में भतीजे आकाश आनंद को अपने साथ रखा था और मंच पर सम्मान सहित जगह दी थी। हालाँकि उनके भाई आनंद कुमार इस दौरान नजर नहीं आए थे।

ख़त्म की नंबर दो की दावेदारी

बीएसपी में नंबर दो की हैसियत को लेकर लंबे समय से कयास लगाए जाते रहे हैं। कभी नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा को इस स्थान का उत्तराधिकारी माना जाता था तो बाद में पार्टी का ब्राह्मण चेहरा कहे जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा ने इस जगह को भरने की कोशिश की।
बीएसपी में अघोषित रूप से ही सही पर लंबे समय से बहन जी के बाद सतीश चंद्र मिश्रा ही सब कुछ माने जाते रहे हैं। लोकसभा चुनावों में एसपी से गठबंधन के बाद अचानक से मायावती के भतीजे आकाश आनंद की एंट्री होती है और कुछ ही समय में बीएसपी की राजनीति की धुरी उनके चारों ओर घूमने लगती है। कुछ समय के लिए आकाश आनंद ने बीएसपी का डिजिटल मीडिया विंग भी संभाला पर बाद में उसे ख़त्म कर दिया गया।

चुनावी रैलियों में माया के साथ आकाश आनंद नज़र आए, हालाँकि उन्होंने कहीं भाषण नहीं दिया। आज माया ने न केवल आकाश बल्कि भाई आनंद को भी संगठन में स्थापित कर यह साफ़ कर दिया कि पार्टी में उनके बाद परिवार के यही लोग सब कुछ होंगे।

नेता चयन में सोशल इंजीनियरिंग 

अपनी सोशल इंजीनियरिंग के लिए मशहूर मायावती ने लोकसभा व विधानसभा में नेता, उपनेता व सचेतक के पदों पर इसका प्रयोग किया है। ऐन चुनाव से पहले जनता दल सेक्युलर छोड़कर बीएसपी में आए दानिश अली को लोकसभा में बीएसपी संसदीय दल का नेता बनाया गया है तो गिरीश जाटव को मुख्य सचेतक बनाया गया है।

जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव को लोकसभा में बीएसपी का उपनेता बनाया गया है। सतीश चंद्र मिश्रा राज्यसभा में बीएसपी के नेता होंगे। अंबेडकर नगर के विधायक लालजी वर्मा को विधानसभा में बीएसपी विधायक दल का नेता बनाया गया है। यहाँ यह बात भी ख़ास है कि अगले तीन सालों में बीएसपी का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में शून्य हो जाएगा। एसपी से नाता तोड़ने के बाद आने वाले कुछ सालों तक बीएसपी के किसी व्यक्ति के राज्यसभा जाने की गुंजाइश भी नहीं बची है।

मायावती ने बदला मिजाज

अपने स्वभाव से इतर बीएसपी सुप्रीमो इन दिनों अपने बिछड़ चुके साथियों को फिर से जोड़ने में जुटी हैं। अमूमन बीएसपी छोड़ने वालों के लिए पार्टी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते थे। आर.के. चौधरी, बरखूराम वर्मा जैसे कुछ नेताओं को छोड़ दें तो ज़्यादातर के बीएसपी छोड़ने के बाद उनका चैप्टर बंद हो जाता है। लेकिन एसपी से नाता तोड़ने के बाद मायावती ने अपना मिजाज बदला है। 

ख़बर है कि बीएसपी छोड़ चुके तमाम नेताओं से संपर्क साधा जा रहा है और उन्हें फिर से पार्टी में लाने की कवायद चल रही है। बीएसपी के कई नेताओं को इस काम में लगाया गया है। आने वाले दिनों में पार्टी छोड़ने वाले कई नेता फिर से हाथी की सवारी करते दिख सकते हैं।

एसपी से अलग होने के बाद मायावती के लिए सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश में 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव हैं। लंबे अरसे के बाद बीएसपी ने उपचुनाव में भाग लेने का एलान किया है। माया का मानना है कि उपचुनावों का प्रदर्शन ही यह तय करेगा कि बीजेपी से प्रदेश में असली मुक़ाबला एसपी का है या बीएसपी का।