बीएसपी की मुखिया मायावती ने उत्तर प्रदेश की सियासत में करंट दौड़ा दिया है। बहनजी के नाम से पहचानी जाने वालीं मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलनों की शुरुआत क्या की, बीजेपी से लेकर अखिलेश यादव की एसपी में तक हड़कंप का माहौल है।
बीएसपी के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा ने अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत की है और ऐसे सम्मेलन पूरे प्रदेश के जिलों में कई चरणों में आयोजित किए जाने हैं। लेकिन शायद अखिलेश यादव इससे परेशान हुए हैं और रविवार को उन्होंने पार्टी के ब्राह्मण नेताओं की बैठक बुला ली।
इस बैठक के बाद जो बात निकलकर सामने आई है, उसके मुताबिक़ एसपी भी ब्राह्मण समुदाय के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश करेगी।
अखिलेश यादव ने एसपी की प्रबुद्ध सभा और परशुराम पीठ से जुड़े पार्टी के नेताओं को ब्राह्मण समुदाय के बीच में बैठकें करने के लिए कहा है। एसपी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि इन बैठकों की शुरुआत अगले महीने बलिया से होगी।
चौधरी ने कहा कि लगातार उत्पीड़न झेल रहे ब्राह्मण समुदाय के लोगों में योगी सरकार के प्रति नाराज़गी है। उन्होंने कहा कि इन बैठकों के दौरान लोगों को बताया जाएगा कि ब्राह्मणों को न्याय सिर्फ़ अखिलेश यादव की सरकार में ही मिल सकता है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, एसपी की प्रबुद्ध सभा के अध्यक्ष मनोज पांडेय बैठकों को लेकर रणनीति बनाने के काम में जुट गए हैं। ये सभी नेता प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर प्रेस कॉन्फ्रेन्स करेंगे और अखिलेश सरकार के कार्यकाल में ब्राह्मण समुदाय के लोगों के लिए किए गए काम के बारे में बताएंगे।
बीजेपी से नाराज़गी की चर्चा
पिछले साल हुए कानपुर के बिकरू कांड के कुख्यात बदमाश विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद विपक्षी राजनीतिक दलों के ब्राह्मण समुदाय के नेताओं ने बीजेपी को निशाने पर ले लिया था। कहा गया था कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में सैकड़ों निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या हुई है और योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी बताने की कोशिश की गयी थी।
इसके बाद भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाने के मामले में बीएसपी और एसपी आमने-सामने आ गए थे। एसपी ने जब एलान किया था कि वह लखनऊ में 108 फुट की और हर जिले में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाएगी तो मायावती ने तुरंत बयान जारी कर कहा था कि बीएसपी की सरकार बनने पर एसपी से ज़्यादा भव्य भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाई जाएंगी।
माया का सोशल इंजीनियरिंग पर जोर
उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मणों की आबादी 12-13 फ़ीसदी है। कहा जाता है कि 2007 तक गठबंधन के दम पर ही सरकार में आ सकी बीएसपी ने जैसे ही ब्राह्मणों को हाथ खोलकर टिकट बांटे, उसे अपने दम पर सरकार बनाने का मौक़ा मिला। इसे दलित-ब्राह्मण की सोशल इंजीनियरिंग कहा गया और पार्टी ने एक बार इस फ़ॉर्मूले को आजमाने का फ़ैसला किया है।
बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलनों को अगर आप देखें तो इसमें सतीश मिश्रा सिर्फ़ दलित-ब्राह्मण भाईचारे की बात करते हैं। वे कहते हैं कि 23 फ़ीसदी दलित और 13 फ़ीसदी ब्राह्मण साथ आ जाएं तो उत्तर प्रदेश में फिर से बीएसपी की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता। मायावती ख़ुद इन ब्राह्मण सम्मेलनों की मॉनीटरिंग कर रही हैं।
24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को बड़ी सियासी ताक़त माना जाता रहा है। बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलनों के बाद बीजेपी के नेताओं ने जोर-शोर से कहना शुरू किया है कि ब्राह्मण समुदाय फिर से मायावती के साथ नहीं जाएगा। इससे उसकी घबराहट का पता चलता है।