उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही बीजेपी क्या बीएसपी के प्रबुद्ध वर्ग या ब्राह्मण सम्मेलनों से घबरा गई है। क्योंकि बीएसपी की ओर से किए जा रहे ब्राह्मण सम्मेलनों के बाद अब वह भी पूरे उत्तर प्रदेश में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन करने जा रही है। इसके अलावा एसपी की ओर से तमाम जिलों में इस समुदाय के मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रबुद्ध सम्मेलन का आयोजन जारी है।
ये सम्मेलन 5 से 20 सितंबर तक प्रदेश के कई जिलों में आयोजित किए जाएंगे। हालांकि बीजेपी का कहना है कि इन सम्मेलनों को किसी एक जाति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए और यह समाज के बुद्धिमान लोगों से जुड़ने की एक कोशिश है, फिर चाहे वे किसी भी जाति के क्यों न हों।
बड़े नेता करेंगे संबोधित
इन सम्मेलनों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वाराणसी में, प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह प्रयागराज में, महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल लखनऊ में और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कानपुर में संबोधित करेंगे।
विकास दुबे एनकाउंटर
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों की सियासत पिछले साल हुए कुख्यात बदमाश विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद तेज़ हुई थी। विपक्षी राजनीतिक दलों और ब्राह्मण समुदाय के नेताओं ने आरोप लगाया था कि योगी सरकार में ब्राह्मणों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं।
उस दौरान बीएसपी प्रमुख मायावती सबसे पहले आगे आई थीं और ब्राह्मण समुदाय के साथ खड़ी हुई थीं। बीते दिनों मायावती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में ब्राह्मणों से अपील की थी कि वे बीजेपी के बजाए बीएसपी को वोट दें। इसके बाद जब सतीश मिश्रा उत्तर प्रदेश के जिलों के दौरे पर निकले तो निश्चित रूप से बीजेपी में खलबली शुरू हुई और बीजेपी के नेताओं ने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन करने की योजना बनाई।
परशुराम की प्रतिमा पर जंग
यहां याद दिलाना होगा कि पिछले साल जब अखिलेश यादव की एसपी ने एलान किया था कि वह लखनऊ में 108 फुट की और हर जिले में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाएगी तो मायावती ने तुरंत बयान जारी कर कहा था कि बीएसपी की सरकार बनने पर एसपी से ज़्यादा भव्य भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाई जाएगी।
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ चुनाव नतीजे बताते हैं कि ब्राह्मण समुदाय का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को इस समुदाय के मतदाताओं ने अच्छी संख्या में वोट दिया है।
बीजेपी की मुश्किल यह भी है कि उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति एक बार फिर जोर मार रही है। पिछड़े नेता बीजेपी पर इस बात के लिए हमलावर हैं कि उसने पिछड़े समुदाय से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री नहीं बनाया।
हालांकि बीते दिनों में बीजेपी ने केंद्रीय कैबिनेट में ओबीसी नेताओं की भागीदारी से लेकर इस समुदाय के लिए कई अहम एलान किए हैं। ऐसे में उसे इस बात का भी डर है कि सवर्ण मतदाता इससे नाराज़ न हो जाएं। मायावती, अखिलेश की तमाम कवायदों के बीच यह भी एक बड़ा फ़ैक्टर है और शायद इसीलिए उसे पूरे प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय के लोगों के बीच जाना पड़ रहा है। वरना जिस समुदाय को हमेशा उसके नज़दीक माना जाता रहा है, उसके लिए वह इतनी ऊर्जा ख़र्च नहीं करती।
लंबे वक़्त तक रहा दबदबा
24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में करीब 12 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। उत्तर प्रदेश में इस समुदाय से आने वाले कई नेता मुख्यमंत्री बने, जिनमें गोविंद बल्लभ पंत से लेकर सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायणदत्त तिवारी का नाम प्रमुख है। लेकिन तिवारी के बाद से यानी 1989 के बाद से अब तक कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना।
एक वक़्त में उत्तर प्रदेश की सियासत में एकछत्र राज करने वाले ब्राह्मण मंडल राजनीति के उभार के बाद से ही हाशिए पर हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि 2022 के चुनाव में इनकी फिर से अहम भूमिका हो सकती है।