उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), दलित समुदाय और मुसलिमों के बीच पूरी ताक़त के साथ पहुंचने की तैयारी कर रही है। पार्टी जानती है कि चुनाव से पहले किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह के हालात प्रदेश में बने हैं, ऐसे में उसे अपनी चुनावी तैयारियों को तेज़ करना ही होगा, वरना उसके सियासी रणबांकुरे चुनाव मैदान में हांफते नज़र आ सकते हैं।
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीजेपी ने ओबीसी, दलितों और मुसलिमों के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए बड़ी रणनीति तैयार की है। इसके तहत वह ओबीसी और दलितों के बीच जाति आधारित रैलियां करेगी और मुसलिम बहुल बूथों के मतदाताओं तक पहुंचने के लिए कार्यकर्ताओं की टीम बनाएगी।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार कश्यप ने पीटीआई को बताया कि ओबीसी की तमाम जातियों तक पहुंचने के लिए तीन चरणों की रणनीति बनाई गई है।
कश्यप ने कहा कि पहले चरण में पार्टी ओबीसी की उप श्रेणियों के बीच में 20 सामाजिक सम्मेलन करेगी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम बड़े नेता इन सम्मेलनों को खिताब करेंगे। उन्होंने कहा कि ये सम्मेलन कश्यप, राजभर, पाल, प्रजापति, जोगी, तेली, यादव, गुर्जर, सैनी, चौरसिया, कुर्मी के साथ ही जाट जाति के बीच किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में हर दो विधानसभा क्षेत्र में एक रैली की जाएगी। इस तरह कुल 202 ओबीसी रैलियां की जाएंगी। यह साफ है कि इस दौरान बीजेपी मोदी सरकार की ओर से ओबीसी समुदाय के लिए किए गए कामों को गिनाएगी।
बीजेपी इस बात को भी जोर-शोर से प्रचारित करती है कि देश की आज़ादी के बाद से मोदी सरकार पहली ऐसी सरकार है, जिसने ओबीसी से सबसे ज़्यादा मंत्री बनाए हैं। मोदी सरकार में ओबीसी मंत्रियों की संख्या 27 है।
इसी तरह पार्टी का अनुसूचित मोर्चा प्रदेश के सभी 75 जिलों में ‘अनूसूचित जाति सम्मेलन’ कराने पर विचार कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली पीटीआई से कहते हैं कि उनकी कोशिश प्रदेश के कुल मुसलिम मतदाताओं में से 20 फ़ीसद को अपने पाले में करने की है।
ओबीसी के लिए उठाए क़दम
मोदी सरकार ने बीते महीनों में ओबीसी समुदाय के लिए कई बड़े क़दम उठाए हैं। इनमें पिछड़े वर्ग को राष्ट्रीय आयोग का दर्जा देना, नीट परीक्षा में ओबीसी छात्रों के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण, क्रीमी लेयर की सीमा को 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख करना और केंद्रीय विद्यालयों, जवाहर नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूलों में ओबीसी समूहों के छात्रों के दाखिले को आसान बनाना जैसे क़दम शामिल हैं।
जातीय जनगणना गले की फांस
लेकिन बीजेपी की राह में जातीय जनगणना का मुद्दा बड़ा रोड़ा है। जातीय जनगणना की मांग ने जोर पकड़ लिया है। ओबीसी समुदाय के तमाम नेता ओबीसी की जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं। इनमें बीजेपी के सहयोगी नीतीश कुमार से लेकर अनुप्रिया पटेल तक का भी नाम शामिल है।
बीजेपी जातीय जनगणना कराने से इनकार कर चुकी है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां ओबीसी की आबादी 45 से 50 फ़ीसद है, वहां पर पार्टी को इसका जवाब देना भारी पड़ रहा है कि आख़िर वह जातीय जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती।
ओबीसी सीएम क्यों नहीं?
ओबीसी समुदाय को साथ रखने के लिए ही पार्टी ने कुर्मी समुदाय के स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष और केशव प्रसाद मौर्य को उप मुख्यमंत्री बनाया है। लेकिन इसके बाद भी ओबीसी वर्ग से मुख्यमंत्री न बनाने को लेकर वह विपक्षी नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों के निशाने पर रहती है।
बहरहाल, ओबीसी समुदाय के बीच में 202 रैलियां करने, दलितों और मुसलमानों के बीच में पहुंच बढ़ाने की बीजेपी की कोशिशें कितनी रंग लाती हैं, इसका पता पहले चुनाव प्रचार के दौरान और फिर नतीजों के बाद चल जाएगा।
ओबीसी सहयोगियों का सहारा
बीजेपी के पास निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और कुर्मी समुदाय से आने वालीं अनुप्रिया पटेल के रूप में मजबूत साथी हैं। देखना होगा कि ख़ुद के संगठन का जोर, पीएम मोदी के ओबीसी वर्ग से होने और इस वर्ग के लिए किए गए कामों का फ़ायदा क्या उसे उत्तर प्रदेश के चुनाव में मिलेगा।