यूपी चुनाव में विकास के एजेंडे पर अब कोई पार्टी चुनाव लड़ने के मूड में नजर नहीं आ रही।
चुनाव में कैसे ध्रुवीकरण कराया जाता है, यूपी उसका बेहतरीन उदाहरण बनता जा रहा हैं।
ध्रुवीकरण की यह कोशिश सिर्फ़ बीजेपी में ही नहीं, हर पार्टी में हो रही है। लेकिन बीजेपी ज़्यादा आक्रामक है।
इसमें सिर्फ मजहब ही नहीं जाति आधार पर भी ध्रुवीकरण शामिल है।
बीजेपी में सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही नहीं बल्कि उस पार्टी में छोटे से छोटा कार्यकर्ता ध्रुवीकरण की ज़मीन तैयार करने में जुटा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काशी कार्यक्रम से पार्टी के काडर को स्पष्ट संदेश चला गया कि हिन्दुत्व ही इस पार्टी का पालनहार हो सकता है। इसके अगले ही दिन योगी मथुरा में पूजा करने पहुंच गए।
इन दोनों कार्यक्रमों को मीडिया ने भरपूर कवरेज दी।
अब अमेठी से स्मृति ईरानी का जवाब
अमेठी में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस नेता राहुल गांधी दो दिन पहले पदयात्रा और रैलियां कर रहे थे। कांग्रेस के बाकी नेताओं ने वहां की बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भी ललकारा है - कहां हैं सांसद। हालांकि राहुल खुद यहां भी कांग्रेस और बीजेपी के हिन्दुत्व का फर्क समझाते नजर आए।
प्रियंका ने महिलाओं, विकास और तमाम दूसरे मुद्दों पर बात रखी लेकिन चर्चा में राहुल का हिन्दुत्व गान रहा।
भाजपा यही चाहती भी है।
कांग्रेस की ललकार को दिल्ली तक बहुत गौर से सुना गया। अब 25 दिसम्बर को अमेठी में स्मृति के आने का कार्यक्रम तय है। उससे पहले पूरे इलाके को हिन्दुत्वमय बनाया जा रहा है। स्मृति की रैली और पदयात्रा में ठीक उसी तरह की भीड़ लाने की तैयारी है, जैसी भीड़ राहुल और प्रियंका के कार्यक्रम में दिखी थी।
अमेठी के लोगों ने सोमवार को देखा कि लाइन से बसें खड़ी हुई हैं, और उनमें लोगों को राम लला के दर्शन कराने अयोध्या ले जाया जा रहा है।
वहां प्रचार हो रहा था कि आप लोग न सिर्फ रामलला का दर्शन करेंगे, बल्कि उस राम मंदिर के साक्षी बनेंगे, जिसका दिन-रात निर्माण किया जा रहा है।
मुफ्त की लग्जरी बसों से अयोध्या तीर्थ स्थान जाने वालों की लंबी लाइनें अमेठी के कुछ गांवों में देखी गईं।
सांसद स्मृति ईरानी का कैंप आफिस अमेठी के गौरीगंज में बनाया गया है। जहां से इस पूरे आपरेशन का संचालन हुआ।
सोमवार को हुए प्रोग्राम में खासतौर पर यूपी के मंत्री सुरेश पासी, प्रभारी मंत्री संजय राय, स्मृति ईरानी के प्रतिनिधि विजय गुप्ता और जिला पंचायत अध्यक्ष राजेश अग्रहरि की ड्यूटी आरएसएस की ओर से लगाई गई थी।
आज से शुरू हुआ यह सिलसिला जारी रहेगा। इसके लिए अमेठी के 17 ब्लॉकों का चयन किया गया है। प्रमुख गांव इन ब्लॉकों से जुड़े हैं। रोजना तीन बसें भेजी जाएंगी। अभी तक करीब दो हजारनामों की सूची इस आपरेशन को संभाल रहे बीजेपी नेताओं के पास आ गई है, जिन्हें अयोध्या ले जाया जाएगा।
मुजफ्फरनगर में तनातनी
मुजफ्फरनगर के महावीर चौक पर चौधरी चरण सिंह मार्केट में दो दिन पहले पीपल का पेड़ काट दिया गया।
हिन्दू जागरण मंच ने इसे वहां का बड़ा मुद्दा बना दिया। उसके कार्यकर्ता कोतवाली पर जमा हो गए और अपनी ही सरकार की पुलिस के खिलाफ धरना देकर बैठ गए।
उनके साथ आरएसएस से जुड़े हिन्दू शक्ति दल और क्रांति सेना ने इसे इतना तूल दिया कि सिविल लाइंस पुलिस को एफआईआर दर्ज करना पड़ी।
दंगों की वजह सेपूरा मुजफ्फरनगर जिला ही काफी संवेदनशील है। किसान आंदोलन का असर भी इसी बेल्ट मेंसबसे ज्यादा है।
पिछले कई दिनों सेजाट नेता संजीव बालियान यहां अपना काफिला लेकर घूम रहे हैं, लेकिन भीड़ नहीं जुट पा रही है। हालांकि किसान आंदोलन खत्म हो चुका है और सारेकिसान अपने घरों को लौट आए हैं। इसलिए पीपल कापेड़ काटने जैसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं।
बसपा भी पीछे नहीं
बसपा ने यूपी की सुरक्षित विधानसभा सीटों पर अपना फोकस रखने का फैसला किया है।
सुरक्षित विधानसभा सीट से किसी भी पार्टी के सिर्फ दलित प्रत्याशी को लड़ने की अनुमति है।
बसपा ने तय किया है कि वो इन सभी सीटों पर मंडल स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन करेगी।
इस अभियान की जिम्मेदारी बसपा सुप्रीमो मायावती ने सतीश मिश्रा को सौंपी है।
सतीश मिश्रा 21 को चकिया चंदौली, 22 को केराकत (जौनपुर) 24 को प्रयागराज और 25 को मऊ में इन सम्मेलन को न सिर्फ संबोधित करेंगे, बल्कि स्थिति की रिपोर्ट मायावती को सौंपेंगे।
दरअसल, बसपा ऐसे सम्मेलनों को कर दलित वोटों का ट्रांसफर अन्य दलों में रोकना चाहती है। पिछले कई चुनावों से न सिर्फ बीजेपी बल्कि कांग्रेस और सपा में भी दलितों का वोट ट्रांसफर हुआ है। इन हालात से मायावती सतर्क हो गई हैं।
दलित बसपा का कोर वोटर रहा है। बसपा इस पहचान को बनाये रखना चाहती है। यही वजह है कि वो सुरक्षित सीटों पर सम्मेलन कर रही है, ताकि बसपा कार्यकर्ताओं को एकजुट रखा जा सके।
प्रदेश में 83 सुरक्षित सीटें हैं। अगर बसपा ये सारी सीटें या लगभग 50 सीटें ही जीत ले तो अपनी मर्जी की सरकार बनवाने का ख्वाब देख सकती है।
आशंका है कि इस बार किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिले, ऐसे में बसपा जैसी पार्टी 50 विधायकों के सहारे किंगमेकर भी बन सकती है। यही वजह है कि बसपा ने भी अब यूपी चुनाव को पूरी गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है।
सपा और ओवैसी भी कम नहीं इसी तरह सपा यादवों और एआईएमआईएम चीफ असद्दुदीन ओवैसी मुसलमानों में ध्रुवीकरण की कोशिशों में जुटे हुए हैं।
हाल ही में भतीजे अखिलेश यादव से हाथ मिलाने वाले उनके चाचा शिवपाल यादव को सपा केंद्रित सीटों का प्रबंधन करने का मास्टर माना जाता है। लेकिन ऐसा तभी होता है जब यादव खानदान एक होकर चुनाव लड़ता है।
तमाम यादव केंद्रित गांवों में भटकने के बाद भी आपेक्षित नतीजे न मिल पाने पर शिवपाल अब अखिलेश के पास लौट आए हैं।
बसपा के बाद सपा भी ब्राह्मण सम्मेलन कर ही चुकी है।
जाति आधारित वोटों के ध्रुवीकरण के लिए ही जयंत चौधरी की पार्टी रालौद और राजभर की पार्टी से गठबंधन किया है। इसके अलावा भी वो कई छोटी पार्टियों के संपर्क में हैं। रालौद को जाटों की पार्टी के रूप में पहचान मिली हुई है।
जयंत से गठबंधन कर सपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में और राजभर से गठबंधन कर पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े फेरबदल की उम्मीद है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओबीसी मतदाताओं की बड़ी भूमिका होने वाली है।
इसी तरह ओवैसी भी यूपी में ताबड़तोड़ रैलियों के दम पर मुस्लिम वोटों की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
उन्होंने यूपी के मुस्लिम बहुल शहरों में कई रैलियां की हैं, लेकिन अभी से उनकी रैलियों से किसी नतीजे की उम्मीद नहीं करना चाहिए। अलबत्ता वो सपा के लिए परेशानी जरूर पैदा कर सकते हैं।
ओवैसी की वजह से मुस्लिम वोटों के बंटने का खतरा बढ़ गया है।