उन्नाव: जनता के मुद्दों पर क्यों नहीं लड़ते अखिलेश, मायावती?

03:59 pm Jul 30, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

उत्तर प्रदेश में लोग पूछते हैं कि विपक्ष कहाँ है। सोनभद्र में हुए आदिवासियों के नरसंहार के बाद उन्नाव रेप कांड पर जैसे तेवर विपक्ष को दिखाने चाहिए थे, वैसे नहीं दिखे। बीएसपी प्रमुख मायावती ने सिर्फ़ ट्वीट किया तो सोनभद्र नरसंहार पर अपनी चुप्पी के कारण निशाने पर आई समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने आवास से बाहर निकलकर पीड़िता का हाल जानने के लिए अस्पताल पहुँचे। सोनभद्र के नरसंहार और उन्नाव रेप कांड के बाद उत्तर प्रदेश की क़ानून-व्यवस्था को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी तो सोनभद्र मामले में काफ़ी सक्रिय दिखी थीं लेकिन उन्नाव पर अभी तक वह सिर्फ़ ट्विटर पर ही सक्रिय दिखीं। सोनभद्र और उसके बाद उन्नाव पर भी बीएसपी और एसपी सिर्फ़ ट्वीट और इक्का-दुक्का जगहों पर प्रदर्शन तक ही सीमित रहे। 

घटना के 40 घंटे बाद तक एसपी और बीएसपी के नेता पीड़िता का हाल जानने के लिए लखनऊ नहीं पहुँचे थे। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर से इस मामले पर प्रतिक्रिया ठंडी ही रही। पार्टी की ओर से न तो कोई नेता ट्रामा सेंटर पहुँचा और न ही कोई प्रदर्शन किया गया। मायावती ने सिर्फ़ ट्वीट कर अपना विरोध जताया। बीएसपी प्रमुख ने उन्नाव रेप पीड़िता के साथ हुई सड़क दुर्घटना पर ट्वीट किया कि यह दुर्घटना उसे जान से मारने का षड्यंत्र लगती है। सुप्रीम कोर्ट को इसका संझान लेकर दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए।

हालाँकि सोनभद्र सामूहिक नरसंहार में चुप दिखी समाजवादी पार्टी इस बार तेज़ नज़र आयी। ट्रामा सेंटर में पहुँचे सपा नेताओं ने इलाज का ख़र्च उठाने की बात कही तो संसद में भी सपा सांसदों ने मामले को उठाया। परिवार से मिल कर ट्रामा सेंटर के बाहर अखिलेश ने कहा कि पीड़ित परिवार को प्रदेश की राज्यपाल से मिलाया जाएगा और सपा न्याय मिलने तक परिवार के साथ है।समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने घटना की सीबीआई जाँच कराने की माँग के साथ ही कहा था कि मामले में पुलिस सरकार की भाषा बोल रही है। अखिलेश ने कहा कि इस तथाकथित दुर्घटना से देश-प्रदेश की हर एक माँ, बहू, बेटी, बहन गहरे आघात में है।

लोकसभा चुनाव में मिली क़रारी हार के बाद तो कम से कम विपक्ष को निराशा से उबरते हुए जनता के संघर्षों की लड़ाई लड़नी चाहिए थी। लेकिन सोनभद्र और उन्नाव के मसले पर जिस तरह प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल बीएसपी और एसपी का रवैया रहा, उससे तो ऐसा लगता है कि यूपी में मानो ये दल विपक्ष की भूमिका निभाने को तैयार ही नहीं हैं। सोनभद्र कांड पर प्रियंका के तेवरों ने कांग्रेस को तो संजीवनी दी ही थी, विपक्ष का धर्म भी निभाया था। तब एसपी और बीएसपी के स्थानीय नेताओं ने भी प्रियंका के इस क़दम की सराहना की थी और अपने नेतृत्व से सवाल पूछा था कि आख़िर वे कब सोनभद्र जाएँगे।

अब सवाल यह है कि यूपी में लंबे समय तक सरकारें चला चुके बीएसपी और एसपी क्या सत्ता सुख भोगने के कारण आलसी हो गए हैं। क्या उन्हें इतने बड़े मुद्दों पर भी सड़कों पर उतरकर जनता के लिए संघर्ष करने की बात याद नहीं रहती। ऐसे में जब वे किसी चुनाव में जनता के पास वोट माँगने के लिए जाएँगे तो जनता उनसे यह तो पूछेगी ही कि वे जनहित के मुद्दों पर संघर्ष के दौरान कहाँ थे।

कुछ समय बाद यूपी में 12 सीटों के लिए विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। ऐसे में विपक्ष को राज्य सरकार को इन मुद्दों पर इतनी मजबूती से घेरना चाहिए था कि सरकार को भी विपक्ष की ताक़त का अहसास होता और जनता में भी संघर्ष का संदेश जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विरोध सिर्फ़ खानापूर्ति तक ही सीमित रह गया।