कोरोना संक्रमित 69 लोगों को लेकर इटावा के सैफई में लापरवाही का मामला सामने आया है। इन संक्रमित लोगों को आगरा से यहां के सरकारी अस्पताल में ट्रांसफ़र किया गया था। एक बस गुरुवार सुबह इन्हें अस्तपाल लेकर पहुंची थी। लेकिन उस वक्त तक अस्पताल का गेट नहीं खुला था और ऐसे में इन लोगों को एक घंटे तक गेट के बाहर ही खड़े रहना पड़ा।
इस घटना के वीडियो में दिख रहा है कि कोरोना संक्रमित ये लोग अस्पताल के गेट के बाहर बने फुटपाथ पर बैठे हुए हैं। सुरक्षा के नाम पर इन्होंने केवल एक मास्क पहना हुआ है। इस दौरान वहां मौजूद स्थानीय पुलिस अफ़सर चंद्रपाल उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए कहते हैं।
पुलिस अफ़सर कहते हैं कि वे लोग इधर-उधर न घूमें, इससे कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने का ख़तरा है। वह यह भी कहते हैं कि इस बारे में जानकारी नहीं थी कि आप लोग अचानक आ जाएंगे।
अस्पताल को चलाने वाले विश्वविद्यालय के कुलपति राज कुमार ने इस मामले में कहा कि जब इतनी बड़ी संख्या में मरीजों को ट्रांसफ़र किया जाता है तो उनकी एक लिस्ट बनाकर भेजी जाती है जिसमें मरीजों के नाम, उनकी क्लीनिकल डिटेल्स होती हैं। उन्होंने कहा कि इस लिस्ट में ताज़ा हालात में इन मरीजों के बारे में कोरोना से जुड़ी जानकारियां भी दी जानी चाहिए थीं।
कुलपति ने कहा, ‘जिस दिन इन लोगों को यहां पहुंचना था, ये उस दिन नहीं पहुंचे बल्कि अगले दिन पहुंचे। लेकिन इसके बाद भी इनके पहुंचने की सूचना मिलने पर हमारे डॉक्टर्स ने इनके पास कोई डॉक्यूमेंट्स न होने के बाद भी सबको भर्ती किया और इसी में आधा या एक घंटे का समय लग गया।’ उन्होंने कहा कि इस मामले में कम्युनिकेशन गैप की वजह से गड़बड़ी हुई है।
कुलपति का कहना है कि इस मामले में उनके अस्पताल की ओर से कोई ग़लती नहीं हुई है। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमितों का 1 घंटे तक सड़क पर रहना लापरवाही तो है ही।
बीते कुछ दिनों में ऐसी कई घटनाएं देश भर में हुई हैं, जहां कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़ौफ़ के चलते लोगों ने इससे संक्रमित अपने सगों को तक घर में नहीं आने दिया या कई जगहों पर महानगरों से आने वाले लोगों को गांव में नहीं घुसने दिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अस्पताल प्रशासन भी कोरोना संक्रमितों को भर्ती नहीं करना चाहता था।