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पश्चिम की 8 सीटों पर टिका है यूपी की 80 सीटों का फ़ैसला

पश्चिम की 8 सीटों पर टिका है यूपी की 80 सीटों का फ़ैसला

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों से काफ़ी हद तक यह अंदाजा लग जाएगा कि यूपी में गठबंधन को जीत मिलेगी या बीजेपी को।

ब्याह-शादियों में अक्सर बिरयानी की देग़ उतरती है तो पहले दो-चार चावल निकाल कर चेक कर लिया जाता है। इन्हीं चावलों से अंदाजा लग जाता है कि बिरयानी कैसी बनी है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर होने वाला मतदान बिरयानी के उन्हीं चावलों की तरह है जिनसे पूरी देग़ की बिरयानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर होने वाला मतदान यह तय करेगा कि उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर मतदान का रुझान क्या रहेगा। 

बिरयानी का जिक्र मैंने इसलिए किया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश का इलाक़ा मुसलिम बहुल है। यहाँ चुनाव के दौरान बिरयानी की देग़ ख़ूब उतरती हैं। इस बार भी कई जगह से ख़बरें आई हैं कि बिरयानी को लेकर मुसलमान आपस में ही भिड़ गए। उम्मीदवारों ने मुसलमानों के बीच प्रचार के दौरान बिरयानी के लिए देग उतरवाए तो खाना कम पड़ गया और इसी वजह से झगड़े हुए। कइयों को बिरयानी तो नहीं मिली लेकिन उन्हें हवालात की हवा खानी पड़ी है। 

बिरयानी की तरह चुनावी माहौल भी बेहद गर्म है। अप्रैल का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। मतदान का दिन नज़दीक आते-आते सियासी पारा भी चढ़ गया है। ऊपर से मतदाताओं की ख़ामोशी ने ऐसी उमस पैदा कर दी है कि उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टियों के भी पसीने छूट रहे हैं।

पिछले चुनाव में उत्तर भारत में मोदी की ऐसी आँधी चली थी कि तमाम दलों के तंबू उखड़ गए थे। इस चुनाव में मोदी की आँधी नज़र नहीं आ रही है। लेकिन मौसम ज़रूर बेईमानी पर उतर आया है। मौसम की बेईमानी की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का खेल बिगड़ गया लगता है। लेकिन कांग्रेस का खेल तो कम बिगड़ा है, बीजेपी और मोदी का ज़्यादा बिगड़ गया है। 

बीजेपी-गठबंधन के बीच होगा सीधा मुक़ाबला

पश्चिमी यूपी की आठों सीटों पर बीजेपी और गठबंधन के बीच सीधे मुक़ाबले के आसार हैं और गठबंधन बीजेपी पर हर सीट पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। जिन सीटों पर कांग्रेस संघर्ष में आती दिख रही थी, सोमवार को राहुल-प्रियंका की रैली रद्द होने की वजह से वहाँ भी वह हाशिए पर जाती दिखाई देने लगी। लेकिन मंगलवार को सहारनपुर में इमरान मसूद और बिजनौर में उतारे गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी के लिए प्रियंका गाँधी को रोड शो करने पड़े। ऐसा करके कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि वह गठबंधन को किसी तरह की ढील देने के मूड में नहीं है।

ग़ौरतलब है कि पहले चरण में यूपी में मतदान वाली सभी सीटों पर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली थी। ये सीटें - सहारनपुर, बाग़पत, कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर, ग़ाज़ियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मेरठ और बिजनौर हैं।

2018 में कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन ने बीजेपी की हवा निकाल दी थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में यह सवाल जोर-शोर से पूछा जा रहा है कि क्या इस बार गठबंधन सभी 8 सीटों पर बीजेपी का सफाया कर देगा?

रविवार को देवबंद में हुई गठबंधन के नेताओं की रैली के बाद गठबंधन के महारथी तो ऐसा ही दावा कर रहे हैं। एक-एक सीट पर उम्मीदवारों की सियासी हैसियत और जातीय गणित का जायजा लेने पर अंदाजा लगता है कि आठोंं सीटों पर बीजेपी की वापसी बहुत मुश्किल है।

सहारनपुर: त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी है सीट

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी के बावजूद कांग्रेस के इमरान मसूद इस सीट पर सबसे कम 65000 वोटों के अंतर से हारे थे। इस बार वह फिर मैदान में हैं, दूसरी ओर गठबंधन ने हाज़ी फज़लुर्रहमान को अपना उम्मीदवार बनाया है।

बीजेपी के टिकट पर पिछली बार जीते राघव लखन पाल फिर मैदान में हैं और उन्हें जिताने के लिए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ननौता में रैली भी की थी। एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन ने भी अपनी पहली रैली इस इलाके़ में की। 

बीजेपी मुसलिम वोटों के बँटवारे के आधार पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है। इस ख़तरे को भाँपते हुए रविवार को हुई रैली में मायावती ने मुसलमानों से वोट नहीं बँटने देने की अपील भी की थी।

पिछले चुनाव में राघव लखन पाल को 472999, इमरान मसूद को 4,07,909 और बीएसपी के जगदीश राणा को 235033 वोट मिले थे। मुसलमानों का रुझान गठबंधन की तरफ़ ज़्यादा दिखाई देता है क्योंकि इमरान मसूद को हिंदू वोट मिलने के आसार कम दिखाई देते हैं।

बाग़पतः दाँव पर चौ. चरण सिंह की विरासत

बाग़पत में पूर्व प्रधानमंत्री और जाटों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत दाँव पर लगी हुई है। मोदी की सुनामी के चलते पिछला चुनाव यहाँ चरण सिंह के बेटे अजित सिंह आईपीएस अधिकारी रहे सत्यपाल सिंह से हार गए थे। हारे भी इतनी बुरी तरह से कि तीसरे नंबर पर खिसक गए थे। दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के हाज़ी ग़ुलाम मुहम्मद रहे थे। इस बार चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने के लिए उनके पोते जयंत चौधरी मैदान में हैं। 

जयंत चौधरी गठबंधन के सहारे मोदी के सिपहसालार सत्यपाल को चुनौती देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। पिछले चुनाव में सत्यपाल सिंह को 4,23,475 वोट मिले थे। 16 लाख से ज़्यादा मतदाता वाले इस लोकसभा क्षेत्र में एक तरह से जाट नेतृत्व के भविष्य का फ़ैसला होना है। 

बाग़पत में जाटों को यह फ़ैसला करना है कि उन्हें मोदी के ‘नए भारत’ के साथ चलना है या फिर चौधरी चरण सिंह की पुरानी विरासत को उनके पोते के नेतृत्व में ही आगे बढ़ाना है।

मुज़फ़्फ़रनगर: अजित सिंह की प्रतिष्ठा दाँव पर

2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद बीजेपी ने मुज़फ़्फ़रनगर के नाम पर पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में वोटों की फसल काटी थी। लेकिन अब हालात बदले हैं और सांप्रदायिक तनाव की जगह सांप्रदायिक सौहार्द्र ने ले ली है और यही बीजेपी के लिए सबसे बड़ी बेचैनी का सबब है। 

मोदी सरकार के मंत्री संजीव बालियान को यहाँ चौधरी अजित सिंह चुनौती दे रहे हैं। मुक़ाबला कड़ा है। पिछले चुनाव में संजीव बालियान को 6,53,391 वोट मिले थे। जबकि बीएसपी के काजल राणा को 2,52,240 और समाजवादी पार्टी के वीरेंद्र सिंह को 1,60,810 वोट मिले थे।

संजीव बालियान के साथ कुछ पिछड़ी जातियों के अलावा बीजेपी के सवर्ण वोट हैं। वहीं, अजित सिंह को एसपी-बीएसपी के साथ आने से मुसलमानों का भरपूर वोट मिलने की उम्मीद है। पहले भी अजित सिंह को मुसलिम वोट मिलता रहा है।

संजीव बालियान मानकर चल रहे हैं कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वहीं, अजीत सिंह मान कर चल रहे हैं कि ‘गठबंधन है तो जीत मुमकिन है।’

कैराना: आसान नहीं तबस्सुम की राह

पिछले साल हुए उपचुनाव में एसपी-बीएसपी-आरएलडी के गठबंधन की बुनियाद बनी कैराना सीट पर इस बार तबस्सुम हसन की राह आसान नहीं दिख रही है। हालाँकि तबस्सुम ने उपचुनाव में आरएलडी के टिकट पर 2014 में जीते बीजेपी के कद्दावर नेता हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को 55000 वोटों से हराया था। अब तबस्सुम समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। पिछले चुनाव में हुकुम सिंह को 5,65,909 वोट मिले थे। वहीं, समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर तबस्सुम के बेटे नाहिद हसन को 3,29,081 वोट मिले थे तो बीएसपी के कंवर हसन को 1,60,414 वोट मिले थे। 

कैराना सीट पर भी बीजेपी और गठबंधन के बीच बेहद कड़ा मुक़ाबला है। कांग्रेस के उम्मीदवार हरेंद्र मलिक चुनावी समीकरण बिगाड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

ग़ाज़ियाबाद: इतिहास दोहरा पाएँगे वीके सिंह?

ग़ाज़ियाबाद में बीजेपी के उम्मीदवार और मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह के सामने इतिहास बनाने की चुनौती है। ग़ौरतलब है कि पिछले चुनाव में जनरल वीके सिंह को सबसे ज़्यादा रिकॉर्ड 7,58,000 वोट मिले थे और उन्होंने 5,67,000 वोटों के अंतर से कांग्रेस के राज बब्बर को हराया था। दूसरे नंबर पर आने के बावजूद राज बब्बर की जमानत जब्त हो गई थी। इस बार कांग्रेस ने यहाँ से युवा नेता डॉली शर्मा को मैदान में उतारा है। उनके लिए प्रियंका गाँधी रोड शो करके कांग्रेस की ताक़त का एहसास भी करा चुकी हैं। गठबंधन की ओर से पूर्व विधायक सुरेश बंसल मैदान में हैं। 

पिछले चुनाव में जनरल वीके सिंह को मिले वोटों को देखें तो उनके ख़िलाफ़ पड़े तमाम वोट मिलाकर भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते। इस सीट पर बीजेपी की राह ज़रूर आसान दिखती है। लेकिन वीके सिंह के सामने सबसे ज़्यादा वोट हासिल करने का इतिहास दोहराने की चुनौती है।

गौतमबुद्ध नगरः त्रिकोणीय मुक़ाबले में फंसे शर्मा

देश की राजधानी से सटी उत्तर प्रदेश की गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार की जाती है। यहाँ से मोदी सरकार में संस्कृति मंत्री महेश शर्मा दोबारा मैदान में हैं।  कांग्रेस के उनके ख़िलाफ़ युवा चेहरे अरविंद कुमार सिंह को उतारा है तो एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन से सतवीर नागर ताल ठोक रहे हैं। त्रिकोणीय मुक़ाबले की वजह से महेश शर्मा को जीत की पूरी उम्मीद है। 

गौतमबुद्ध नगर के गाँव-देहात में महेश शर्मा का जबरदस्त विरोध भी है। इस विरोध के चलते कई गाँवों से शर्मा को बगैर प्रचार किए लौटना पड़ा है। यह ख़बरें उनकी और पार्टी, दोनों की धड़कनें बढ़ा रही हैं। स्थानीय राजनीति के जानकारों का मानना है कि शर्मा की सीट ख़तरे में है।

मेरठ: बीजेपी के सामने साख बचाने की चुनौती

मेरठ में बीजेपी के सामने लोकसभा सीट के साथ ही अपनी साख बचाने की चुनौती भी है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल 532981 वोट लेकर जीते थे जबकि बीएसपी के हाज़ी अख़लाक क़ुरैशी 300655 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे। समाजवादी पार्टी के शाहिद मंजूर को 2,11,760 वोट मिले थे। दोनों पार्टियों के मतों को मिला दिया जाए तो यह बीजेपी के आसपास बैठते हैं। 

कांग्रेस ने मेरठ से हरेंद्र अग्रवाल को उतार कर बीजेपी की ही मुश्किल बढ़ाई है। वैसे भी 2017 के विधानसभा चुनाव में मेरठ शहर की विधानसभा सीट और उसी साल हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में मेयर की सीट हार कर बीजेपी अपनी साख़ गँवा चुकी है।

बिजनौर: नसीमुद्दीन के भाग्य का होगा फ़ैसला 

3 ज़िलों, 3 मंडलों और गंगा नदी के दोनों तरफ़ फैली बिजनौर लोकसभा सीट वीआईपी तो नहीं है लेकिन कई मायनों में यह बेहद अहम है। कभी बीएसपी की राजनीतिक प्रयोगशाला रहे बिजनौर ज़िले की इसी सीट से मायावती ने लोकसभा में क़दम रखा था। तब यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। साल 2009 में परिसीमन के बाद इसका स्वरूप एकदम बदल गया। कहने को तो नाम बिजनौर है लेकिन इसमें बिजनौर ज़िले की सिर्फ़ 2 विधानसभा सीटें शामिल हैं। इसमें मुज़फ़्फ़रनगर की दो और एक सीट मेरठ की है। यहाँ 40 फ़ीसदी मुसलमान होने के बावजूद गठबंधन ने मलूक नागर को अपना उम्मीदवार बनाया है। 

मलूक नागर का सीधा मुक़ाबला बीजेपी सांसद भारतेंद्र सिंह से होने की उम्मीद जताई जा रही है। बिजनौर में स्थानीय लोगों की माँग थी कि गठबंधन मुसलिम प्रत्याशी उतारे, कुछ संगठनों ने यह भी कहा था कि अगर मुसलिम प्रत्याशी ना हुआ तो गठबंधन को वोट नहीं देंगे।

इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने पहले घोषित की गई उम्मीदवार इंदिरा भाटी का टिकट काटकर कभी बीएसपी में रहे कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन नसीमुद्दीन सिद्दीकी का चुनाव खड़ा नहीं हो पाया। 

बिजनौर से आ रही ख़बरों के मुताबिक़, मुक़ाबला  गठबंधन और बीजेपी के बीच होगा। साढ़े 16 लाख से ज़्यादा मतदाताओं वाली इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के कुंवर भारतेंद्र सिंह को 4,86,913 वोट मिले थे। समाजवादी पार्टी के शाहनवाज राणा 2,81,136 वोट लेने में कामयाब रहे थे। बीएसपी के टिकट पर लड़े मलूक नागर तब 2,30,124 वोट पर सिमट गए थे। 

मौजूदा परिस्थितियों में नागर को गुर्जरों के साथ-साथ जाट वोट मिलने की भी उम्मीद है। शाहनवाज राणा भी मलूक नागर के समर्थन में आ गए हैं। इससे पहली बार चुनाव लड़ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मुसलिम वोट मिलने की रही-सही उम्मीद थी ख़त्म हो गई है। अब सिद्दीकी भी अपनी और कांग्रेस की नाक बचाने की कवायद में जुटे हैं।

पहले चरण की इन 8 सीटों पर क़ानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा और विकास से लेकर तमाम मुद्दे हैं लेकिन चुनाव जातिगत समीकरणों और नेताओं की साख के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गया है।

अगर इन सीटों पर बीजेपी और एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के बीच मुख्य मुक़ाबला हुआ तो प्रदेश की सभी सीटों पर कांग्रेस हाशिए पर चली जाएगी। ज़्यादातर सीटों पर बीजेपी, गठबंधन की ताक़त के मुक़ाबले कमज़ोर है। उत्तर प्रदेश की चुनावी बिरयानी की देग़ के पहले चरण के ये 8 चावल ही बिरयानी के असली स्वाद का अंदाज़ा देंगे।

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