मुसलमानों के बढ़ते उत्पीड़न को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छीछालेदर का सिलसिला जारी है। कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ पहले ही भारत में धार्मिक उत्पीड़न पर चिंता ज़ाहिर कर चुकी हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी के जिगरी यार डोनल्ड ट्रम्प के देश से भी कड़ी टिप्पणी आ गई है। अमेरिकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम ने अपनी रिपोर्ट में भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न पर चिंता ज़ाहिर की है।
संस्था ने भारत को अब दूसरी से हटाकर पहली श्रेणी में रखने की सिफ़ारिश की है, जिसमें ऐसे देश रखे जाते हैं जो ख़ास चिंता पैदा करते हैं। इस श्रेणी को कंट्रीज विद पर्टीकुलर कंसर्न यानी सीपीसी कहा जाता है। सन् 2002 के दंगों के बाद भी उसने भारत को इस वर्ग में रखा था लेकिन सन् 2004 के बाद पहली बार इस वर्ग में ईरान, पाकिस्तान और चीन जैसे 14 देश शामिल हैं। भारत पहले दूसरी श्रेणी में था, जिसका मतलब था कि वह निगरानी में है।
ज़ाहिर है कि यदि ट्रम्प प्रशासन ने संस्था की सिफ़ारिश को मान लिया तो भारत सरकार के लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो जाएँगी। उसके ख़िलाफ़ कई तरह की पाबंदियाँ लगाई जा सकती हैं। इससे भी गंभीर बात यह होगी कि अंतरराषट्रीय स्तर पर उसकी साख को बट्टा लग जाएगा। कई और देश भी मुखर होने लगेंगे।
कमीशन का कहना है कि 2019 में हालात तेज़ी से बिगड़े हैं। सरकार ने आम चुनाव में जीत के बाद अपने संसदीय ताक़त का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ जमकर किया है।
कमीशन के मुताबिक़ सरकार ने अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा की इजाज़त दे दी और उनके धार्मिक स्थलों की तोड़-फोड़ पर भी वह चुप रही है। उसने हेट स्पीच को रोकने की भी कोई कोशिश नहीं की है। गो हत्या के संदेह में मॉब लिंचिंग का सिलसिला भी जारी है।
इस मामले में उसने सीएए, एपीआर और एनआरसी का हवाला दिया है। उसने मुसलिम बहुसंख्यक आबादी वाले राज्य जम्मू कश्मीर से स्वायत्तता छीने जाने को भी इससे जोड़कर देखा है।
रिपोर्ट में दिल्ली दंगों के दौरान सरकार के रवैये की भी चर्चा है, हालाँकि यह फ़रवरी 2020 की घटना है। कमीशन की रिपोर्ट में गृह मंत्री अमित शाह का नाम दो बार आया है। एक बार उनके द्वारा प्रवासियों को दीमक कहकर उनका सफाया करने के बयान के संदर्भ में उनका ज़िक्र किया गया है।
कमीशन ने ट्रंप प्रशासन से भारत सरकार की एजेंसियों और अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करने को कहा है। उसने सुझाव दिया है कि उन पर सख़्त पाबंदियाँ लगाई जाएँ, उनकी संपत्ति ज़ब्त करके और उनके अमेरिका में आने पर रोक लगा दी जाए।
भारत की प्रतिक्रिया
यह भारत सरकार के लिए बहुत ही शर्मनाक स्थिति है। हालाँकि उसने इस रिपोर्ट को यह कहते हुए ठुकरा दिया है कि इसमें भारत के ख़िलाफ़ की गई भेदभावपूर्ण और भड़काऊ टिप्पणियों में कुछ नया नहीं है लेकिन इस बार ग़लत दावों का स्तर एक नई ऊँचाई पर पहुँच गया है।
मोदी सरकार की यह प्रतिक्रिया अनपेक्षित नहीं है। सार्वजनिक स्तर पर वह इसे स्वीकार नहीं कर सकती, क्योंकि इससे उसकी और भी किरकिरी होगी। लेकिन उसे समझना होगा और समझकर अपना रवैया बदलना होगा। शुतुरमर्ग वाले रवैये से बात नहीं बनेगी, क्योंकि अब छिपने और छिपाने से कुछ छिपने का समय नहीं है।
मीडिया और पूरी दुनिया की आँखें सरकार के रंग-ढंग पर लगी हुई हैं और वे देख रही हैं कि हिंदुस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता के साथ किस तरह का खिलवाड़ हो रहा है। दिल्ली दंगों के दौरान और उसके बाद मुसलमानों को निशाना बनाने की ख़बरें आए दिन आ रही हैं।
फिर जिस तरह से कोरोना संकट को सांप्रदायिक रंग देकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। न ही यह छिपा है कि सरकार उसे रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है।
इसके विपरीत बीजेपी और उसके संगी संगठनों ने भेदभाव और उत्पीड़न का नया सिलसिला शुरू कर दिया है। इसके तहत सब्ज़ी वालों और दूसरे छोटे-मोटे काम करने वालों का बहिष्कार किया जा रहा है। उन्हें जीविकोपार्जन से वंचित किया जा रहा है, ग़रीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी में ढकेला जा रहा है और ये सब हो रहा है सरकार की सहमति से।
सहमति से इसलिए क्योंकि सरकार इस अन्यायपूर्ण भेदभाव को रोकने की कोशिश नहीं कर रही, बल्कि चुप रहकर एक तरह से इसका समर्थन ही कर रही है।