यूएसएड से भारत को 180 करोड़ः कितना झूठ बोलेंगे ट्रम्प, मस्क और बीजेपी

02:25 pm Feb 21, 2025 | सत्य ब्यूरो

अमेरिका की सरकारी एजेंसी यूएसएड (USAID ) ने $21 मिलियन (180 करोड़ रुपये) की वित्तीय मदद की पेशकश भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए की थी। इस पैसे को बांग्लादेश में  "मतदान जागरूकता" बढ़ाने के लिए दी गई थी। इंडियन एक्सप्रेस ने इसकी पड़ताल की। उसने अमेरिकी फेडरल खर्च के रिकॉर्ड को देखा और बताया कि वो फंड भारत के लिए नहीं बांग्लादेश के लिए था। DOGE ने एक्स पर ट्वीट करके इस फंड को भारत के लिए बताया था, जिसे अब रद्द कर दिया गया है। इसके बाद राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी बयान दिये कि भारत को हम 21 मिलियन डॉलर क्यों दे। फिर उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन के नेतृत्व वाला प्रशासन इसे भारत में किसी पार्टी को जिताने के लिए देना चाहता था, जिसे रोक दिया गया है।

रविवार को, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के सरकारी दक्षता विभाग DOGE ने घोषणा की कि उसने यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) के जरिये कई अंतरराष्ट्रीय सहायता फंड को रद्द कर दिया है, यह यूएस के "करदाताओं के पैसे की बर्बादी" है। USAID मुख्य रूप से अमेरिकी सरकार की ओर से विदेशी सहायता देने के लिए जिम्मेदार है। ट्रंप ने 24 जनवरी को इस संगठन द्वारा वितरित धन पर 90 दिन की रोक लगा दी थी, जिसकी समीक्षा ट्रम्प प्रशासन कर रहा है। 

सिलसिलेवार यह सारी कहानी जानिये। रविवार को एलन मस्क के विभाग ने फंड वापस लेने या रोकने की सूची में $486 मिलियन के अनुदान का जिक्र किया था। यह फंड एनजीओ कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (CEPPS) को दिए गए थे। इसमें $21 मिलियन का अनुदान भारत में "मतदान प्रचार" के लिए रखा गया था। यह कंसोर्टियम तीन संगठनों – नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट, इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स – से मिलकर बना है। यह कंसोर्टियम पूरी दुनिया में लोकतंत्र और राजनीतिक परिवर्तनों का समर्थन करता है। इसे फंड USAID के ग्लोबल इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल ट्रांज़िशन प्रोग्राम के तहत मिलता है।

यहां एक खेल DOGE, ट्रम्प और एलन मस्क ने यह खेला कि आगे की जानकारी छिपा ली गई। यानी भारत में कौन सा संगठन, राजनीतिक दल या संस्था इन अनुदानों को पाने वाली थी। विदेश से कोई भी पैसा बिना सरकार की जानकारी के नहीं आ सकता है। यूएसएड यह पैसा जिन माध्यमों से भेजती है, वो सब सरकार, आरबीआई की जानकारी में होता है। भारत में मोदी सरकार ने तमाम एनजीओ के एफसीआर लाइसेंस कैंसल कर दिये हैं। यह लाइसेंस होने पर ही कोई एनजीओ विदेश से पैसा ले सकता है। भारत में अब बीजेपी समर्थक तमाम एनजीओ के पास एफसीआरए लाइसेंस हैं।

  • अमेरिकी सरकार का खर्च डेटा बता रहा है कि 2008 के बाद से USAID ने भारत में CEPPS के किसी भी प्रोजेक्ट की फंडिंग नहीं की है। अमेरिका में हर केंद्रीय अनुदान उसके खर्च डेटा में साफ साफ लिखा जाता है कि उसे किस देश में किस क्षेत्र में खर्च किया जाना है। इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल बता रही है कि 2008 के बाद इस तरह का कोई फंड भारत नहीं भेजा गया है।

कंसोर्टियम को दिए गए USAID के एकमात्र चल रहे फंड जो $21 मिलियन का है, उसे बांग्लादेश से जुड़ा दिखाया गया है। उसे बांग्लादेश में मतदान से संबंधित मकसद के लिए दर्ज किया गया है। जुलाई 2022 में USAID का यह फंड 'अमार वोट अमार' (मेरा वोट मेरा है) प्रोजेक्ट के लिए दिए गए थे। यह बांग्लादेश में का प्रोजेक्ट है। 

  • बांग्लादेश के लिए यह फंड जुलाई 2025 तक तीन साल के लिए चलने वाला था। एलन मस्क के विभाग ने इसी को रोका है। $21 मिलियन में से $13.4 मिलियन पहले ही बांग्लादेश में जनवरी 2024 के आम चुनाव से पहले छात्रों के बीच "राजनीतिक और नागरिक जुड़ाव" के लिए खर्च किए जा चुके हैं, और अन्य कार्यक्रमों के लिए भी इस्तेमाल किए गए हैं।   

बांग्लादेश में 16 साल के शासन के बाद शेख हसीना की सरकार को हटा दिया गया। उन्हें देश में हिंसा भड़कने पर बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। अब वो भारत में हैं। हालांकि उन्हें जनवरी 2024 के चुनावों में फिर से चुना गया था। अमेरिका ने उस समय कहा था कि बांग्लादेश चुनाव "स्वतंत्र और निष्पक्ष" नहीं हैं। हसीना को छात्रों ने व्यापक चुनौती दी थी।

दिसंबर 2024 में सोशल मीडिया पर ढाका स्थित USAID की राजनीतिक प्रक्रिया सलाहकार ने वाशिंगटन में नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट के कार्यालय की यात्रा के दौरान इस अनुदान की पुष्टि की। वहां उन्होंने कहा: "USAID-वित्त पोषित $21 मिलियन CEPPS/नागरिक प्रोजेक्ट... का मैं प्रबंधन करता हूँ।"

ट्रम्प ने क्या झूठ बोला

बुधवार (19 फरवरी) को राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने "अनुमान लगाया" कि पिछला प्रशासन (बाइडेन) "भारत में किसी और को चुनाव जीतने में मदद करने" की कोशिश कर रहा था, जिसमें $21 मिलियन का अनुदान "चुनाव" के लिए दिया गया था। ट्रम्प ने मियामी में एक कार्यक्रम में कहा: "भारत में चुनाव के लिए हमें $21 मिलियन क्यों खर्च करने की जरूरत है? मुझे लगता है कि वे किसी और को चुनाव जीतने में मदद करने की कोशिश कर रहे थे।"  फिर उन्होंने जोड़ा: "हमें भारत सरकार को बताना चाहिए।"  

ट्रम्प ने यह नहीं बताया कि इन फंड्स का वितरण कब हुआ था। राष्ट्रपति ने अपने दावों के लिए कोई सबूत नहीं पेश किया। ट्रम्प की टिप्पणी तब आई, जब उन्होंने अपने प्रशासन के फैसले का बचाव किया था। जिसमें USAID द्वारा भारत में "चुनाव" के लिए दिए जाने वाले फंड्स को रद्द कर दिया गया था।

भाजपा का दावा

ट्रम्प, एलन मस्क के विभाग द्वारा भारत के फंड के संबंध में फैलाये गये झूठ को बीजेपी ने तेजी से पकड़ा और कांग्रेस पर हमला बोला। गुरुवार को, बीजेपी ने दावा किया कि ट्रम्प की टिप्पणी से "पुष्टि" हो गई है कि भारतीय चुनावी प्रक्रियाओं में विदेशी हस्तक्षेप की कोशिश की गई थी। बीजेपी आईटी सेल में काम करने वाले अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर लिखा: "ट्रंप का दावा प्रधानमंत्री मोदी के 2024 के अभियान के दौरान किए गए दावे की पुष्टि करता है कि विदेशी शक्तियाँ उन्हें सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रही थीं...।" मालवीय ने दावा किया था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने "भारत के रणनीतिक और जियोपॉलिटिक्स हितों को कमजोर करने के लिए ग्लोबल नेटवर्कों के साथ गठजोड़ किया है, जो विदेशी एजेंसियों का ही हिस्सा है।"  

कांग्रेस ने ट्रम्प के बयान को "बेतुका" करार दिया। कांग्रेस ने मोदी सरकार से USAID के भारत में सरकारी और एनडीओ की फंडिंग करने के बारे में एक व्हाइट पेपर मांगा। भारत सरकार ने अभी तक इन आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। कांग्रेस ने शुक्रवार को भी बीजेपी को इस पर घेरा। उसके तमाम नेता बीजेपी से अपने झूठ पर माफी मांगने की बात कह रहे हैं। बीजेपी भी हैरान और परेशान लग रही है। वो भी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट का खंडन नहीं कर सकी है।


सरकार करा सकती है जांच

मोदी सरकार भारतीय चुनावों में संभावित विदेशी हस्तक्षेप की जांच करा सकती है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि क्या इस तरह की विदेशी फंडिंग ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। इसे जांच के दायरे में रखा जायेगा। खास बात यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस मामले की जांच की मांग की है। बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी ने एक्स पर लिखा है कि वीना रेड्डी को 2021 में USAID के भारतीय मिशन के प्रमुख के रूप में भारत भेजा गया था। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद (शायद उनका मतदाता मतदान मिशन पूरा हो गया), वह अमेरिका लौट आईं। अफसोस की बात है। जांच एजेंसियां ​​उनसे पूछ सकती थीं कि मतदाता मतदान अभियान के लिए यह पैसा किसने प्राप्त किया।”

यूएसएड के फंड का सच सामने आने के बाद मोदी सरकार इस पर जांच किसलिए कराना चाहती है। यह सवाल स्वाभाविक है। क्योंकि अगर सरकार जांच कराने का आदेश देती है तो उसके बाद इस मामले को रफादफा कर दिया जायेगा। क्योंकि जनता के सामने यह तथ्य तो मौजूद है कि सबसे पहले आरोप बीजेपी की तरफ से लगना शुरू हुए। अमित मालवीय, निशिकांत दूबे और महेश जेठमलानी समेत तमाम नेताओं ने जांच की मांग की। अब कांग्रेस ने भी जांच की मांग कर दी है। ऐसे में भारत सरकार इससे पीछा छुड़ाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती। यह साफ हो गया है कि अमेरिका में बुने गये ताने-बाने पर बीजेपी ने यहां कांग्रेस को विवादों में लाने की कोशिश की।

(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)