वाशिंगटन पोस्ट को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि भारत में मतदान के लिए या किसी अन्य उद्देश्य के लिए 21 मिलियन डॉलर (180 करोड़) खर्च किए जाने थे। क्षेत्रीय सहायता कार्यक्रमों की जानकारी रखने वाले तीन लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर इस दावे पर हैरानी जताई - और चिंता जताई कि इससे भारत की दक्षिणपंथी सरकार को सिविल सोसायटी को और कमजोर करने की कोशिशों को मजबूती मिलेगी।
वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है- DOGE (अमेरिकी दक्षता विभाग) ने इस खबर पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। व्हाइट हाउस और स्टेट डिपार्टमेंट (विदेश मंत्रालय) ने टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया। DOGE को ट्रम्प के अरबपति मित्र एलन मस्क संभाल रहे हैं। यह मामला पिछले हफ्ते डॉग की एक सोशल मीडिया पोस्ट के साथ शुरू हुआ था। जिसमें विदेशी ग्रांट की एक सूची थी जिसे उन्होंने रद्द कर दिया था। इस सूची के बीच में "भारत में मतदान बढ़ाने के लिए $21 मिलियन" का जिक्र था। भारत में यह प्रमुख खबर बन गई। बीजेपी ने इसे एक अमेरिकी साजिश के सबूत के रूप में पेश किया। हालांकि भारत में बीजेपी पर चुनाव को प्रभावित करने और कई तरह की गड़बड़ी के आरोप लगे हैं।
ट्रम्प की टिप्पणियों के बाद बीजेपी ने प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस पर आरोप लगाने की कोशिश की। बीजेपी आईटी सेल में काम करने वाले अमित मालवीय से लेकर भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस पर टिप्पणी की। धनखड़ ने शुक्रवार को कहा था, "हालिया खुलासे ने मुझे झकझोर कर रख दिया है। हमारे चुनावी प्रणाली की शुद्धता को कमजोर करने के लिए इस देश के लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हेरफेर करने की कोशिश की गई थी।"
कंसोर्टियम फॉर इलेक्शन्स एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (CEPPS) के अधिकारियों ने बताया कि डॉग के विवरण से मेल खाने वाले ग्रांट का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हमारे पास $21 मिलियन का अनुबंध था — लेकिन वो भारत के लिए नहीं, बल्कि पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए था।
सीईपीपीएस के अमेरिकी अधिकारी ने कहा- "ऐसा लगता है कि वे अन्य कार्यक्रमों से संख्याओं को मिला रहे हैं।" सहायता कार्यक्रमों की जानकारी रखने वाले एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा- "हम भारत में चुनावों के बारे में कुछ नहीं जानते क्योंकि हम कभी इसमें शामिल नहीं थे। CEPPS में हम सभी डॉग के इस दावे को देखकर हैरान थे।"
वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है- यह गलत दावा बीजेपी के उस लंबे समय से चले आ रहे नैरेटिव के साथ मेल खाता है कि अमेरिका सहित विदेशी ताकतें मोदी सरकार को कमजोर करने और घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए काम कर रही हैं। एक्स और अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर, प्रधानमंत्री के कुछ दक्षिणपंथी समर्थकों ने सोशल इन्वेस्टर जॉर्ज सोरोस और "डीप स्टेट" की साजिश के सिद्धांत फैलाए हैं। जो ट्रम्प और उनके राजनीतिक सहयोगियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को दर्शाता है।
यह विवाद, मोदी के व्हाइट हाउस में 13 फरवरी को ट्रम्प से मिलने के एक हफ्ते के भीतर शुरू हुआ। मस्क ने जो ग्लोबल अराजकता फैलाई है, उसका यह एक और उदाहरण है। अरबपति मस्क और उनके कुछ सहायक संघीय सरकार के आकार और प्रतिष्ठा को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। ट्रम्प के 20 जनवरी के कार्यकारी आदेश में सभी विदेशी सहायता पर 90 दिनों तक रोक लगा दी गई थी। जिसे ट्रम्प प्रशासन फिजूलखर्ची या अमेरिकी मूल्यों के विपरीत मानता है। लेकिन मस्क ने इस मामले में पूरा रायता फैला दिया।
15 फरवरी को DOGE ने एक्स पर की गई एक लंबी पोस्ट में कहा था कि सर्बिया से लेकर कंबोडिया तक के देशों में विभिन्न उद्देश्यों के लिए $729 मिलियन के विदेशी अनुदान रद्द कर दिए गए थे। इसमें भारत में वोटर टर्नआउट (मतदान बढ़ाने या मतदाता भागीदारी) बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर का जिक्र था। बता दें कि वॉशिंगटन पोस्ट ने शनिवार को जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उन्हीं लाइन पर भारत के प्रमुख अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने भी दो दिन पहले एक खोजपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उसमें भी यही कहा गया था कि 21 मिलियन डॉलर भारत के लिए नहीं, बांग्लादेश के लिए थे।
कहानी में नया मोड़
भारत में इंडियन एक्सप्रेस की जब रिपोर्ट आ गई तो बीजेपी ने कोई अधिकृत प्रतिक्रिया नहीं दी। अलबत्ता बीजेपी आईटी सेल के अमित मालवीय ने ट्रम्प के बयान का वीडियो ट्वीट किया और कहा कि "अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत में मतदाता भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए यूएसएड फंडिंग के प्रयासों के बारे में अपने दावे को दोहराया... लेकिन उन्हें अपने देश के खर्च के बारे में क्या पता? इंडियन एक्सप्रेस और उन्मादी वामपंथी सोचते हैं कि वे बेहतर जानते हैं!"ट्रम्प ने कहा- "21 मिलियन डॉलर मेरे दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत को मतदाता भागीदारी के लिए जा रहे हैं। हम भारत में मतदाता भागीदारी के लिए 21 मिलियन डॉलर दे रहे हैं। हमारे लिए क्या? मैं भी मतदाता भागीदारी चाहता हूं।" यानी ट्रम्प ये कह रहे हैं कि 21 मिलियन डॉलर भारत में मोदी सरकार को जा रहे हैं। इससे अमेरिका को क्या फायदा है। अमेरिका भी ऐसी ही मतदाता भागीदारी के लिए फंड चाहता है। कांग्रेस के पवन खेड़ा ने फौरन इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भक्तों को इसे सुनने के लिए कहा।
इसी पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश का भी ट्वीट आया। रमेश ने एक्स पर लिखा- यह मेरे सहयोगी पवन खेड़ा द्वारा USAID मुद्दे पर जारी किया गया बयान है। USAID के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति और भाजपा ने बेशर्मी से झूठ बोला है। वाशिंगटन डीसी में प्रधानमंत्री के अच्छे मित्र द्वारा इस मुद्दे को लगातार खबरों में बनाए रखा जा रहा है।
ट्रम्प का यह तीसरा बयान था, जिसमें मोदी का जिक्र आया और कांग्रेस ने पलटवार किया। लेकिन इससे पहले ट्रम्प के दो बयानों के आधार पर बीजेपी भारत में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने में लगी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने पिछले बयान में सिर्फ संकेत दिया था कि इन फंड्स का इस्तेमाल 2024 के लोकसभा चुनावों में दखल देने के लिए किया गया हो सकता है। लेकिन ट्रम्प ने इसका कोई सबूत नहीं दिया कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले किस राजनीतिक दल, संगठन या सरकार को यह पैसा दिया गया था। लेकिन अपनी नई टिप्पणी में प्रधानमंत्री मोदी का नाम ले रहे हैं। हालांकि भारत में विदेश से आने वाला हर पैसा सरकार की निगरानी में होता है। ट्रम्प ने इसी बयान में बांग्लादेश को "राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने" के लिए दी गई 29 मिलियन डॉलर की यूएसएड फंडिंग का जिक्र किया। उन्होंने कहा- "बांग्लादेश में 29 मिलियन डॉलर एक ऐसी फर्म को गए, जिसके बारे में किसी ने कभी सुना नहीं था। उस फर्म में केवल दो लोग काम कर रहे थे।"
ट्रम्प ने शुक्रवार को रिपब्लिकन गवर्नर्स कॉन्फ्रेंस में आरोप को दोहराया था। इस बार फंडिंग को उन्होंने "रिश्वत योजना" करार दिया। उनके शब्द थे- "भारत में मतदाता भागीदारी के लिए 21 मिलियन डॉलर। हम भारत की भागीदारी की परवाह क्यों कर रहे हैं? हमारे पास पर्याप्त समस्याएं हैं... यह एक रिश्वत योजना है, आप जानते हैं।"
ट्रम्प के दावे के चार दिन बाद सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी और आरोपों को "बेहद परेशान करने वाला" बताया। विदेश मंत्रालय ने भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप को लेकर चिंता व्यक्त की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने शुक्रवार को कहा- "भारत में कई विभाग और एजेंसियां यूएसएड के साथ काम करती हैं। ये सभी मंत्रालय और एजेंसियां अब इस पर ध्यान दे रही हैं।"
लेकिन जैसा वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि बीजेपी ट्रम्प के बयानों के जरिये भारत में विपक्षी दल कांग्रेस के खिलाफ एक नैरेटिव बनाने में लगी है। मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, जिनकी भारत सरकार 2021 से मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जांच कर रही है, ने वाशिंगटन पोस्ट से कहा कि ट्रम्प प्रशासन मोदी को सिविल सोसायटी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए "मौका" दे रहा है, जिसे उन्होंने भारत की "प्रतिरोध की अंतिम सीमा" बताया। उन्होंने कहा- "हमारे देशों में स्वतंत्र नागरिक आवाजों को कमजोर करना दक्षिणपंथियों का एक सामूहिक प्रोजेक्ट है। यह बुडापेस्ट से लेकर वाशिंगटन, डी.सी. और नई दिल्ली तक फैला हुआ एक सामूहिक प्रोजेक्ट है।"
वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के कमजोर नागरिक समाज, जो मोदी के सत्ता में रहने के दौरान भारत सरकार का प्रमुख निशाना रहा है, को और अधिक स्टेट दबाव का सामना करना पड़ सकता है। इसमें विदेश से समर्थन प्राप्त करने पर सख्त नियम शामिल हैं।" नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी के कार्यकारी निदेशक जो एथियाली ने कहा- "विदेशी फंडिंग नियमों का उपयोग शासन के आलोचकों और विरोधी आवाजों को कुचलने के लिए एक प्रतिशोधी हथियार के रूप में किया जाता है।"
(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)