+
अपनी वैश्विक दादागीरी छोड़ रहा है अमेरिका!

अपनी वैश्विक दादागीरी छोड़ रहा है अमेरिका!

अफ़ग़ानिस्तान में अब शासन प्रशासन पर तालिबान का कब्जा हो गया है। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर जो बयान दिया, वह उसके नीतिगत बदलाव के संकेत देते हैं। 

अफ़ग़ानिस्तान में अब शासन प्रशासन पर तालिबान का कब्जा हो गया है। बहुत कम समय में तालिबानियों ने राजधानी काबुल सहित तमाम महत्त्वपूर्ण शहरों पर कब्जा जमा लिया। अमेरिकी सेना और उसके कूटनीतिज्ञ और वहाँ काम कर रहे अन्य अमेरिकी अफ़ग़ानिस्तान से निकल भी नहीं पाए। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर जो बयान दिया, वह उसके नीतिगत बदलाव के संकेत देते हैं। अब यह लगने लगा है कि अमेरिका अन्य देशों में हस्तक्षेप और खुद के दादा होने की स्थिति से पीछे हटकर अपने आंतरिक मामलों व अमेरिकी हितों तक केंद्रित रहने की रणनीति पर जोर देने वाला है।

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में दो गुट बने। 1991 में सोवियत संघ के विघटन ने विश्व राजनीतिक परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया। महाशक्ति के रूप में सोवियत संघ का अवसान हो गया और अब एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका रह गया और विश्व का स्वरूप एकध्रुवीय हो गया।

अमेरिका की आर्थिक स्थिति लंबे समय से डांवाडोल है। विभिन्न देशों के आंतरिक मामलों में टांग अड़ा देने की उसकी नीति ने उसके ख़र्च बढ़ाए और उस अनुपात में उसे मुनाफा नहीं हुआ। इराक पर हमले का मसला हो या अफ़ग़ानिस्तान का मसला हो, अमेरिका को आर्थिक नुक़सान ही उठाना पड़ा।

11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में क़दम रखा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ आतंकी हमले के कारण अमेरिका ने ऐसा किया था। उसकी वैश्विक दादागीरी को एक आतंकी संगठन ने चुनौती दी थी। अमेरिका ने बाकायदा अफ़ग़ानिस्तान में अपनी फौज उतारी, वहाँ के स्थानीय लोगों की एक बहुत बड़ी फौज तैयार की। उस फौज को अत्याधुनिक असलहों और तमाम संसाधनों से लैस किया।

जब तालिबान ने पिछले रविवार को काबुल पर कब्जा कर लिया और राजधानी में अफरा-तफरी पैदा हो गई तो पूरा विश्व अमेरिका की ओर देखने लगा कि अब उसका क्या रुख होगा। अमेरिका ने इतना सब होने के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान से हटने की रणनीति को सही क़रार दिया। 

अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि मैं अमेरिका का राष्ट्रपति हूँ और किसी देश के आंतरिक झगड़ों में पड़कर अपने देश के नागरिकों और सैनिकों की जान गँवाना उन्हें गवारा नहीं है।

यह अमेरिका की रणनीति में ज़बरदस्त बदलाव है। इसके पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भी वैश्विक संस्थाओं की उपेक्षा करनी शुरू कर दी थी। संयुक्त राष्ट्र संघ की जितनी भी संस्थाएँ हैं, उन्हें चलाने में अमेरिका सबसे ज़्यादा आर्थिक मदद करता रहा है। ट्रंप के शासनकाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन को आर्थिक मदद रोक देने की धमकियाँ दी गईं और उसे बेकार संगठन घोषित किया गया। इसी तरह विश्व व्यापार संगठन के ख़िलाफ़ भी ट्रंप बयान देते रहे कि वह अमेरिकी हितों के ख़िलाफ़ काम करता है। विश्व व्यापार संगठन के पंचाट में लंबे समय से न्यायाधीश नहीं हैं और वह बेकार पड़ा है। भारत सहित 116 देशों के अनुरोध के बावजूद अमेरिका ने नए न्यायाधीशों की नियुक्ति का विरोध किया। साथ ही अमेरिका अपनी सुविधा मुताबिक़ विभिन्न देशों से द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौते करता रहा, जिसमें विश्व व्यापार संगठन का कोई महत्त्व नहीं रहा।

अब हर चीज में नाक घुसेड़ने और वैश्विक अगुआ बनने का अमेरिका का रुख ख़त्म होता नज़र आ रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर अमेरिका ने साफ़ किया कि उसका मक़सद था कि अलक़ायदा अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल अमेरिका पर हमले के लिए न कर सके। अमेरिका ने यह भी साफ़ किया कि वह अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने नहीं आया था। हालाँकि उसने सफ़ाई दी कि उसने वहाँ पर 3 लाख सैनिकों को प्रशिक्षित किया और हर तरह की मदद की और अब अगर वहाँ की सरकार ने तालिबान के समक्ष हथियार डाल दिया तो वह उनकी ज़िम्मेदारी है।

जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान की अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित कथित ताक़तवर सेना ने तालिबान के सामने बगैर किसी प्रतिरोध के हथियार डाल दिए, उससे ऐसा नहीं लगता कि अमेरिका तालिबान के विरोध में है।

ऐसा लगता है कि अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति और वहाँ की सरकार को सत्ता हस्तांतरित नहीं की है और संदेह जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान पर इस तालिबानी कब्जे के पीछे अमेरिका और तालिबान के बीच कोई गुप्त समझौता रहा है।

आतंकवाद से लड़ाई को लेकर भी अमेरिका ने अपनी स्थिति साफ़ कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि आतंकी ख़तरा अफ़ग़ानिस्तान से आगे बढ़ गया है। सोमालिया में अल शबाब, अरब प्रायद्वीप में अल कायदा, सीरिया में अल-नुसरा, और आईएसआईएस जैसे संगठन सीरिया और इराक में अपना आधार बना रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि हम विविध देशों के आतंकी संगठनों से निपट रहे हैं और वहाँ हमने सेना की स्थायी मौजूदगी नहीं कायम की है।

अगर अमेरिका के राष्ट्रपति के बयानों के बीच के अर्थ को पढ़ा जाए और हाल के वर्षों में विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व व्यापार संगठन आदि के प्रति उसके रूख को देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका अब वैश्विक दबदबा छोड़ने को तैयार है। अमेरिका की नीति बदल रही है और यह यूरोप सहित उन तमाम देशों को अचंभित करने वाली है, जो अमेरिका के सहारे अपनी रणनीतियाँ तय करते थे। अमेरिका के रुख को देखकर यही लगता है कि अब वैश्विक राजनीति में बहुत कुछ बदलने वाला है और भारत जैसे तमाम देशों को अपनी रणनीति और दुनिया के विभिन्न देशों में अपने गुट का री-अलाइनमेंट करना होगा।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें