नेता सबसे बड़ा अभिनेता होता है, लेकिन राजनीति में जहाँ आज मुद्दे और विचारधाराएँ गौण हो गयी हैं, ऐसे में अभिनेता तुरुप का इक्का साबित होने लगे हैं। सिने जगत से राजनीति में उतरने वालों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लम्बी है। अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, गोविंदा, हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, जया प्रदा से लेकर उर्मिला मातोंडकर के बीच दर्जनों ऐसे अभिनेता-अभिनेत्री हैं जिन्होंने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई, कुछ को यह रास आयी तो कुछ इसे अलविदा कहकर वापस अपनी दुनिया में लौट गए। लेकिन अमिताभ बच्चन और गोविंदा दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने राजनीति में उतरकर दो कद्दावर नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर ही पूर्ण विराम लगा दिया।
अमिताभ बच्चन ने साल 1984 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद लोकसभा सीट पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व कई बार केंद्रीय मंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा को एक लाख 87 हज़ार मतों से पराजित किया था। इस हार से बहुगुणा इतने विचलित हो गए थे कि सक्रिय राजनीति से ही संन्यास ले लिया।
बहुगुणा राजनीति की ऐसी शख़्सियत थीं जिन्होंने इंदिरा गाँधी को भी झुकाया था। बहुगुणा जवाहर लाल नेहरू कैबिनेट में भी मंत्री हुआ करते थे। जब इंदिरा गाँधी का दौर आया तो उन्होंने बहुगुणा को संचार विभाग में जूनियर मिनिस्टर का पद दिया लेकिन नाराज बहुगुणा ने 15 दिन तक मंत्री का चार्ज ही नहीं लिया। बाद में कुढ़कर इंदिरा गाँधी ने उन्हें स्वतंत्र प्रभार दिया था।
अमिताभ ने बहुगुणा की सियासी पारी का अंत किया तो फ़िल्मों से राजनीति में आये गोविंदा ने भी ऐसी ही कहानी कांग्रेस के टिकट पर साल 2004 के लोकसभा चुनावों में लिखी। इस बार कांग्रेस उर्मिला मातोंडकर के सहारे वही प्रयोग दोहराना चाहती है।
मुंबई उत्तर लोकसभा सीट पर कभी बीजेपी के राम नाइक का कब्जा हुआ करता था। नाइक इस सीट से लगातार 5 बार सांसद बने थे और इन लगातार जीत के कारण उनका नाम भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन तीन प्रमुख नेताओं अटल-आडवाणी -मुरली मनोहर जोशी के बाद लिया जाने लगा था।
अपनी आम आदमी की छवि के चलते राम नाइक यहाँ से हर बार जीत दर्ज कराते आ रहे थे, लेकिन 2004 में फ़िल्म अभिनेता गोविंदा ने उन्हें हराकर उनकी चुनावी राजनीति पर पूर्ण विराम लगा दिया। वर्तमान में राम नाइक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल हैं।
अमिताभ ने बोफ़ोर्स कांड के घेरे में आने के चलते राजनीति को अलविदा कह दिया तो गोविंदा ने भी पार्टी संगठन में अपनी उपेक्षा के आरोप लगाकर अगला चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
गोविंदा के बाद संजय निरुपम 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से लड़े और जीते लेकिन पिछले चुनाव में इस सीट पर निरुपम क़रीब 4 लाख वोट से हार गए। इसके बाद उन्होंने यहाँ से लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटाई और इस बार पार्टी हाई कमान पर बहुत दबाव बनाकर अपनी सीट बदलवा ली है। लेकिन संजय निरुपम ने फिर वही अभिनेता वाला फ़ॉर्मूला इस सीट पर चलाने के लिए पार्टी में उर्मिला मातोंडकर को प्रवेश दिलाकर टिकट दिला दिया।
इस सीट से वर्तमान सांसद गोपाल शेट्टी पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। इससे पहले वह बोरीवली विधानसभा से विधायक और भारतीय जनता पार्टी के मुंबई प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी रहे हैं। लेकिन गत लोकसभा चुनाव में उन्हें मिली 4 लाख से ज़्यादा वोटों की जीत ने राम नाइक के दौर की याद ताज़ा कर दी थी।
मुंबई उत्तर लोकसभा सीट में बोरीवली, दहिसर, मगाथाने, कांदिवली पूर्व, चारकोप और मलाड पश्चिम विधानसभा सीट आती है। यहाँ की बोरीवली, दहिसर, कांदिवली पूर्व और चारकोप विधानसभा सीट पर बीजेपी, मगाथने में शिवसेना तो सिर्फ़ एक विधानसभा सीट मलाड पश्चिम कांग्रेस के खाते में है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या उर्मिला मातोंडकर जलवा दिखा पाएँगी?
कांग्रेस ने मराठी कार्ड खेला
उर्मिला के साथ एक बड़ी सहानुभूति है, वह है उनका मराठी होना। उनको टिकट देते ही कांग्रेस ने यह मुद्दा भी उछाल दिया है। अब राजनीतिक पंडित यह कयास लगाने लगे हैं कि गोपाल शेट्टी ग़ैर मराठी हैं और बीजेपी के टिकट पर लड़ रहे हैं ऐसे में शिवसेना को मिलने वाला मराठी वोट उर्मिला के खाते में जा सकता है।
इस लोकसभा क्षेत्र में मराठी मतदाताओं की संख्या क़रीब 28 फ़ीसदी है। वैसे इस सीट पर गुजराती मतदाताओं के साथ-साथ उत्तर भारतीय मतदाताओं का भी बाहुल्य है। पिछले चुनाव में गुजराती मतदाताओं ने मोदी लहर के चलते एकतरफ़ा वोट दिया था, इसलिए भी गोपाल शेट्टी को रिकार्ड मतों से जीत मिली थी।