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कप्पन का गुनाह- मुसलिमों को पीड़ित बताया, भड़काया: एसटीएफ़ चार्जशीट

कप्पन का गुनाह- मुसलिमों को पीड़ित बताया, भड़काया: एसटीएफ़ चार्जशीट

पिछले साल 5 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस में जाने के दौरान गिरफ़्तार किए गए मलयालम पत्रकार सिद्दीक कप्पन का आख़िर कसूर क्या है? जानिए, यूपी पुलिस की चार्जशीट में क्या आरोप लगाए गए हैं।

जिन मलयालम पत्रकार सिद्दीक कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक साल से जेल में बंद रखा है उनका आख़िर गुनाह क्या है? एक साल में पुलिस आख़िर क्या साबित कर पाई? इसकी मिसाल चार्जशीट में देखी जा सकती है। यूपी एसटीएफ़ की चार्जशीट में कहा गया है कि सिद्दीक कप्पन ने मुसलिमों को पीड़ित बताया, मुसलिमों को भड़काया, वामपंथियों व माओवादियों से सहानुभूति जताई। 5000 पन्ने की चार्जशीट में कप्पन द्वारा मलयालम मीडिया में लिखे गए उन 36 लेखों का हवाला दिया गया है जो कोरोना संकट के बीच निजामुद्दीन मरकज, सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन, उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा, अयोध्या में राम मंदिर और राजद्रोह केस में जेल में बंद शरजील इमाम के आरोप-पत्र को लेकर लिखे गए हैं। 

चार्जशीट में किस तरह के आरोप लगाए गए हैं उसका एक नमूना वह भी है जिसमें उनके एक लेख की कुछ लाइनों का ज़िक्र है। इन लेखों में से एक, जिसे एएमयू में सीएए के विरोध के दौरान लिखा गया था, का उल्लेख करते हुए नोट में कहा गया है, 'लेखन में, उन मुसलमानों को पीड़ितों के रूप में पेश किया गया है जिन्हें पुलिस ने पीटा था और जिन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा गया था। लेखन से साफ़ है कि यह मुसलमानों को भड़काने के लिए किया गया है।'

ये वही सिद्दीक कप्पन हैं जिन्हें पिछले साल 5 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस में जाने के दौरान गिरफ़्तार किया गया था। उनके साथ पीएफ़आई सदस्य अतिकुर रहमान, मसूद अहमद और उनका ड्राइवर आलम भी थे। इन्हें भी गिरफ़्तार किया गया था। तब कथित तौर पर गैंग रेप के बाद दलित युवकी की हत्या के मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था और इस मामले में यूपी सरकार की किरकिरी हुई थी। इसके बाद यूपी सरकार ने कार्रवाई की और कहा कि सरकार को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी। इसी साज़िश में शामिल होने का आरोप कप्पन पर भी लगा। 

कप्पन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट (यूएपीए) लगा दिया गया। पुलिस ने यूएपीए का सब-सेक्शन 17 लगाया, जो आतंकवाद के लिए पैसे एकत्रित करने से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा धारा 153 ए, 295-ए, 124-ए और आईटी एक्ट की कई धाराओं में भी मामला दर्ज कर जेल में डाल दिया गया। राजद्रोह का भी आरोप लगाया गया। 

इस मामले में ज़मानत के लिए दायर की गई उनकी याचिकाओं को बार-बार खारिज किया गया। उन्हें ज़मानत तब मिली जब उनकी माँ बीमार थीं और आख़िरी साँसें गिन रही थीं।

इस साल फ़रवरी में सुप्रीम कोर्ट ने पाँच दिनों के लिए इस शर्त पर ज़मानत दी थी कि वह अपनी 90 वर्षीय माँ से मिलें।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केरल में वह मीडिया से बात नहीं कर सकते हैं और वह न तो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकते हैं और न ही रिश्तेदारों, डॉक्टरों और किसी से भी मिल सकते हैं। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि उन्हें उत्तर प्रदेश से केरल पुलिस द्वारा ले जाया जाएगा और यह यूपी पुलिस की ज़िम्मेदारी होगी कि वह उनकी यात्रा सुनिश्चित करे और वापस लाए। 

 - Satya Hindi

हाथरस घटना।

कप्पन के मामले की जाँच के लिए यूपी एसटीएफ़ का गठन किया गया था। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि इस एसटीएफ़ ने कप्पन के ख़िलाफ़ चार्जशीट तैयार कर ली है। रिपोर्ट के अनुसार, इसके नोट में निष्कर्ष निकाला गया है, 'सिद्दीक कप्पन के इन लेखों को काफी हद तक सांप्रदायिक कहा जा सकता है। दंगों के दौरान अल्पसंख्यक का नाम लेना और उनसे जुड़ी घटनाओं के बारे में बात करना भावनाओं को भड़का सकता है। ज़िम्मेदार पत्रकार ऐसी सांप्रदायिक रिपोर्टिंग नहीं करते। कप्पन केवल और केवल मुसलमानों को उकसाने की रिपोर्ट करते हैं, जो कि पीएफ़आई का एक छिपा हुआ एजेंडा है। कुछ रिपोर्ट माओवादियों और कम्युनिस्टों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए लिखी गई थीं।'

एसटीएफ़ ने दावा किया है कि पीएफ़आई हाथरस पीड़िता के लिए न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन की आड़ में अशांति और दंगा जैसी स्थिति पैदा करना चाहता था। केस डायरी नोट के अनुसार, लेख कप्पन के लैपटॉप से ​​प्राप्त डेटा का हिस्सा हैं, जिसे फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजे जाने के बाद प्राप्त किया किया गया है। 

नोट में पुलिस का दावा है कि कप्पन ने पीएफ़आई के 'थिंक टैंक' के रूप में काम किया। यह भी आरोप लगाया गया है कि वह मलयालम मीडिया में 'हिंदू विरोधी' रिपोर्ट को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे थे और दिल्ली दंगों को भड़काने की योजना बना रहे थे। पुलिस ने दिल्ली दंगों को लेकर उन पर इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी अंकित शर्मा और हेड कांस्टेबल रतन लाल की मौत को छिपाने की कोशिश करने और दिल्ली दंगों में निलंबित आप पार्षद ताहिर हुसैन की कथित भूमिका को कम करने का भी आरोप लगाया।

जाँच एजेंसी का यह भी आरोप है कि कप्पन ने अपने लेखन के माध्यम से प्रतिबंधित संगठन सिमी द्वारा किए गए आतंकवाद को नकारने की कोशिश की। एसटीएफ़ ने मलयालम में लेख और उनके अनुवाद वाले सैकड़ों पेज भी पेश किए हैं। 

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