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चुनावी तैयारी: यूपी में बीजेपी के 50 से ज़्यादा जिलाध्यक्ष बदलने के मायने

चुनावी तैयारी: यूपी में बीजेपी के 50 से ज़्यादा जिलाध्यक्ष बदलने के मायने

यूपी में बीजेपी ने बड़े पैमाने पर जिलाध्यक्ष क्यों बदले? क्या उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले बीजेपी को बड़े नुक़सान की आशंका है या फिर जातिगत समीकरण साधने की कोशिश है?

आख़िरकार भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी गोटियाँ सजानी शुरू कर दी हैं। आज बीजेपी ने अपने जिला अध्यक्षों की सूची जारी कर दी। इसके साथ ही जल्दी विभिन्न आयोगों और संस्थानों में खाली पड़े अध्यक्षों के पद भी भरे जाएंगे। इसके लिए भी कवायद शुरू हो गई है। बीजेपी ने तमाम स्थानों पर जिला अध्यक्षों को बदल दिया है। लगभग 50 से अधिक जिला अध्यक्षों को बदला गया है।

पार्टी ने इस बात का ध्यान रखा है कि दलित और पिछड़ों को आवश्यक जगह मिल जाए लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पसमांदा मुसलमान की जोरदार वकालत करने वाली भाजपा की सूची में मुसलमान नहीं हैं। पार्टी ने लखनऊ शहर और जिला दोनों के जिला अध्यक्ष बदल दिए लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रधानमंत्री के जिले वाराणसी और मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर में जिला अध्यक्षों को नहीं बदला गया है। 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व विधानसभा में नेता विपक्ष अखिलेश यादव के जनपद इटावा में पार्टी ने एक बार फिर अति पिछड़े का दांव ही चला है और पुराने जिला अध्यक्ष संजीव राजपूत को दोबारा मौका दे दिया है।

कानपुर देहात में संतोष शुक्ल के भाई मनोज शुक्ल को जिलाध्यक्ष बनाया गया है। पूर्व मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कुख्यात विकास दुबे ने शिवली थाने के अंदर गोली मारकर कर दी थी।

इस बदलाव में मंत्रियों और विधायकों की राय तो ली गई है लेकिन यह कहना भी गलत होगा कि उनके परामर्श को मान लिया गया है। अब पार्टी मंडल अध्यक्षों की भी नियुक्त कर देगी और इसमें सांसदों और विधायकों की राय ली जाएगी। सूत्रों के अनुसार तमाम पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को विभिन्न आयोग और परिषदों के अध्यक्ष पद पर बैठ कर लाल बत्ती दी जाएगी।

पार्टी यह उम्मीद कर रहा है कि यह बदलाव काफी उत्साह पैदा करेगा लेकिन इस बदलाव से एक बात और उभर के सामने आई है कि इससे चुनाव के पहले असंतोष के स्वर भी उभरे हैं। वास्तव में हर जिले में एक अनार सौ बीमार वाली बात थी। भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कतें यही थी कि वह अध्यक्ष का चयन कैसे करे क्योंकि दावेदार बहुत थे। अब पार्टी को उन लोगों को भी मनाना होगा जो जिला अध्यक्ष के मजबूत दावेदार थे लेकिन इस सूची में उन्हें जगह नहीं मिली है। क्या उन्हें कोई और जिम्मेदारी दी जाएगी, इसको लेकर काफी चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं। बहुत से प्रमुख नेताओं को पार्टी अन्य पदों पर बिठाना चाहती है। क्योंकि जिन्हें जिलाध्यक्ष पद नहीं मिला है उनमें कई जनाधार वाले नेता भी हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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