आख़िर बीजेपी के क्षत्रपों की त्योरियाँ क्यों चढ़ी हुई हैं?
यूपी बीजेपी में संगठन के विस्तार के साथ ही पिछले एक पखवाड़े से चल रही भीतरी खींचतान का पटाक्षेप हो गया है। गुजरात कैडर के पूर्व नौकरशाह और पीएम नरेंद्र मोदी के खासमखास अरविंद कुमार शर्मा को पार्टी का नया उपाध्यक्ष बनाया गया है। हालांकि जनवरी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर वे मोदी के निर्देश पर अपने गृहराज्य उत्तर प्रदेश आए थे।
शर्मा के आते ही उन्हें एमएलसी बना दिया गया। माना जा रहा था कि उन्हें यथाशीघ्र डिप्टी सीएम बनाकर गृह और कार्मिक जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी दी जाएगी।
यही कारण था कि यूपी के तमाम नौकरशाह, बीजेपी नेता और मीडिया के लोग उनसे मिलने के लिए बेताब होने लगे। लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ ने उन्हें तीन दिन तक मिलने का समय नहीं दिया।
योगी पर नज़र
दरअसल, चर्चा यह थी कि योगी आदित्यनाथ पर नजर रखने के लिए नरेंद्र मोदी ने एके शर्मा को लखनऊ भेजा है। जाहिर है योगी की महत्वाकांक्षा को नियंत्रित करने और उन्हें कमजोर करने के लिए ही शर्मा को लखनऊ भेजा गया था। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने शर्मा को कैबिनेट में शामिल करने से इनकार कर दिया।
यह इनकार नरेंद्र मोदी के सामने एक खुली चुनौती थी। इसके बाद नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के बीच एक तरह का शीतयुद्ध चालू हो गया।
मोदी और योगी के बीच सुलह कराने के लिए संघ को हस्तक्षेप करना पड़ा। करीब एक पखवाड़े तक लखनऊ और दिल्ली में संघ और बीजेपी नेताओं की बैठकों का दौर चलता रहा।
अटकलों पर विराम
संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह ने लखनऊ के दौरे करके बीजेपी के मंत्री और विधायकों से मुलाकात की। संभवतया इसके नतीजे में योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाई। पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर योगी ने अपना रिपोर्ट कार्ड पेश किया।
पीएम और गृहमंत्री की ओर से ट्वीट की गई तसवीरों से ऐसा लग रहा था कि योगी आदित्यनाथ ने आत्मसमर्पण कर दिया है। फिर से अटकलें लगाई जाने लगीं कि योगी सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार होगा और शर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। लेकिन शर्मा के बीजेपी उपाध्यक्ष बनने के बाद अब इन अटकलों पर विराम लग गया है।
गौरतलब है कि शर्मा यूपी बीजेपी के सत्रह उपाध्यक्षों में से एक हैं। जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ ने शर्मा को प्रभावहीन बना दिया है। इससे साबित होता है कि नरेंद्र मोदी योगी पर नजर रखने और उन्हें नियंत्रित करने के अपने मंसूबे में नाकाम हुए हैं।
क्या भारी साबित हुए योगी?
वज़ीर बनने के लिए आए अरविंद शर्मा महज प्यादा बनकर रह गए हैं! इस बीच बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने एलान कर दिया है कि अगला चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। गौरतलब है कि आरएसएस पहले ही स्थानीय क्षत्रपों को आगे करके विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कह चुका है। तब क्या नरेंद्र मोदी पर योगी आदित्यनाथ भारी साबित हुए हैं? क्या बीजेपी का पर्याय बन चुके नरेंद्र मोदी की अजेय छवि अब दरकने लगी है?
दरअसल, बंगाल चुनाव में पराजय और कोरोना कुप्रबंधन से हुई लाखों मौतों के कारण नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग को काफी धक्का पहुँचा है। उनकी लोकप्रियता लगातार घटती जा रही है। बीजेपी और मोदी का अंध समर्थक रहा शहरी मध्यवर्ग भी अब मोहभंग की स्थिति में है।
मोदी को चुनौती!
बीजेपी के तमाम प्रांतीय क्षत्रप सीधे तौर पर मोदी को चुनौती दे रहे हैं। राजस्थान में वसुंधरा राजे, कर्नाटक में बी. एस.येदियुरप्पा और यूपी में योगी आदित्यनाथ मोदी को खुली चुनौती दे रहे हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के पूर्व सी एम रमन सिंह, असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल जैसे नेताओं के भीतर भी असंतोष सुलग रहा है।
बंगाल में मोदी के फोन करने के बावजूद बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे मुकुल राय का वापस ममता के खेमे में लौटना यह साबित करता है कि अब मोदी का जादू और छप्पन इंची ताकत का आभामंडल मद्धिम हो चला है।
ऑपरेशन तृणमूल?
विभिन्न प्रांतों में दूसरे दलों से गए बीजेपी के नेता वापस अपनी पुरानी पार्टी में लौटने की जुगत में हैं। त्रिपुरा की बीजेपी सरकार पर आसन्न संकट दिख रहा है। मुख्यमंत्री विप्लब कुमार देव से 10 से 15 विधायक नाराज बताए जा रहे हैं। ये विधायक मुकुल राय के संपर्क में हैं। विधायकों की नाराजगी दूर करने के लिए आनन-फानन में बीएल संतोष को भेजा गया। ऑपरेशन लोटस द्वारा विरोधियों की सरकार गिराने वाली बीजेपी को क्या अब ऑपरेशन तृणमूल का सामना करना पड़ेगा?
संकट से जूझती पार्टी
उत्तराखंड में वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच जुबानी जंग जारी है। पार्टी विद डिफरेंस और अनुशासन के लिए विशेष पहचान रखने वाली बीजेपी को आज भीतरी संकटों से जूझना पड़ रहा है। यह अक्सर तभी होता है, जब केंद्रीय नेतृत्व कमजोर हो। तब क्या बीजेपी भी काँग्रेस की गति प्राप्त हो जाएगी? हालांकि काँग्रेस और बीजेपी में एक बड़ा अंतर है।
बीजेपी के अंदरूनी संकट के समय आरएसएस की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आरएसएस के नियंत्रण और निर्देशन के कारण बीजेपी के भीतर की टूटन और गाँठों को दुरुस्त कर लिया जाता है। लेकिन क्या इस बार भी सबकुछ सामान्य हो जाएगा?
हालांकि मोदी की सत्ता को अभी कोई खतरा नहीं है, लेकिन योगी आदित्यनाथ और अन्य क्षत्रपों की चुनौती के आगे क्या उनकी ताकत बरकरार रह पाएगी? क्या अब मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व और बीजेपी का सूर्य ढलान पर है?