यूपीः धर्मांतरण विरोधी कानून और सख्त बनाने के लिए बिल पेश, क्या साबित करना चाहते हैं योगी
यूपी सरकार ने सोमवार को विधानसभा में उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया। यह बिल 2021 में इसी सरकार द्वारा पारित उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम की जगह लेगा। नए विधेयक में धर्मांतरण का आरोप साबित होने पर अधिकतम सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर उम्रकैद में बदल दिया गया है। किसी भी व्यक्ति को शिकायत दर्ज करने की अनुमति देने के लिए इसके दायरे का विस्तार किया गया है। इसमें मिलने वाली जमानत को और अधिक कठिन बना दिया गया है।
यूपी सरकार का कहना है कि उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 के तहत मौजूदा प्रावधान "पर्याप्त नहीं" हैं। यानी 2021 में जिन सख्तियों के बारे में योगी सरकार नहीं सोच पाई थी, उसे अब सोचकर लागू किया जा रहा है। भाजपा धर्मांतरण को चुनावों में मुद्दा बनाती है और इसके जरिए वो मुस्लिमों और ईसाई मिशनरियों को टारगेट करती है। योगी 80 और 20 की बात कहते रहे हैं। यानी 80 फीसदी हिन्दू आबादी और 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है। फिर भी धर्मांतरण मुद्दा है।
धर्मांतरण से यूपी सरकार काफी परेशान लगती है। बिल पेश किए जाते समय उसका आधिकारिक बयान यही बता रहा है। उसने कहा है कि “अवैध धर्म परिवर्तन विरोधी कानून इस अपराध की संवेदनशीलता और गंभीरता, महिलाओं की गरिमा और सामाजिक स्थिति, इसके जरिए जनसंख्या परिवर्तन में विदेशी और राष्ट्र-विरोधी तत्वों और संगठनों की संगठित और योजनाबद्ध गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। यह महसूस किया गया कि उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम में जुर्माने और उसकी राशि को बढ़ाया जाना चाहिए और जमानत की शर्तों को यथासंभव कठोर बनाया जाना चाहिए।”
इसमें यह भी कहा गया है कि “चूंकि अधिनियम के मौजूदा दंडात्मक प्रावधान नाबालिग, विकलांग, मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के संबंध में धार्मिक रूपांतरण और सामूहिक रूपांतरण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए इसमें संशोधन की आवश्यकता है। कानूनी मामलों के संबंध में अतीत में विभिन्न मामलों में उत्पन्न हुई कुछ कठिनाइयों (धारा 4 के तहत) को हल करना भी आवश्यक हो गया है…।”
कुछ महत्वपूर्ण बदलाव
मौजूदा अधिनियम किसी भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित किसी भी व्यक्ति को गैरकानूनी धर्मांतरण के मामले में एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देता है। नया विधेयक इसके दायरे को बढ़ाता है। अब "किसी भी व्यक्ति" को शामिल किया गया है। यानी ''अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित कोई भी जानकारी कोई भी व्यक्ति दे सकता है।'' और सरल भाषा में समझें- कोई भी तीसरा व्यक्ति अगर दूसरे के बारे में धर्मांतरण की सूचना देता है तो भी एफआईआर दर्ज की जाएगी। पीड़ित चाहे परेशान न हो लेकिन तीसरा व्यक्ति अगर उसकी स्थिति से परेशान है तो भी एफआईआर हो जाएगी।
नए विधेयक में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति, जो धर्म परिवर्तन करने के इरादे से, किसी व्यक्ति को उसके जीवन या संपत्ति के भय में डालता है, हमला करता है या बल का उपयोग करता है, शादी का वादा करता है या उकसाता है, किसी नाबालिग, महिला या महिला को शादी के लिए उकसाता है या साजिश रचता है। किसी व्यक्ति को तस्करी करने या अन्यथा उन्हें बेचने या इसके लिए उकसाने, प्रयास करने या साजिश रचने पर कम से कम 20 साल की कठोर सजा से दंडित किया जाएगा, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है। यानी धर्म परिवर्तन कराने पर हत्या अपराध में होने वाली जैसी सजा का इंतजाम योगी आदित्यनाथ सरकार ने किया है। धर्म परिवर्तन को हत्या अपराध के बराबर कर दिया गया है।
इस धारा के तहत लगाया गया जुर्माना पीड़िता को इलाज में खर्च और पुनर्वास के लिए दिया जाएगा। विधेयक में कहा गया है, “अदालत उक्त धार्मिक रूप से पीड़ित को आरोपी द्वारा देय उचित मुआवजे को भी मंजूरी देगी, जो 5 लाख रुपये तक हो सकती है, यह जुर्माने के अतिरिक्त होगा।”
विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के संबंध में किसी विदेशी या अवैध संस्था से धन प्राप्त करता है, उसे कम से कम सात साल की सजा होगी, लेकिन जिसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और न्यूनतम 10 लाख रुपये का जुर्माना भी देना होगा।
विधेयक के अनुसार, जो कोई भी नाबालिग, विकलांग या मानसिक रूप से प्रभावित व्यक्ति, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के संबंध में कानून का उल्लंघन करेगा, उसे 14 साल तक की सजा होगी। कम से कम 1 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा। मौजूदा अधिनियम में 10 साल तक की सजा का प्रावधान है, और न्यूनतम जुर्माना 25,000 रुपये तय है।
सामूहिक धर्म परिवर्तन से संबंधित मामलों में प्रस्तावित सजा 7-14 साल की कैद और न्यूनतम 1 लाख रुपये का जुर्माना है, जबकि मौजूदा अधिनियम में सजा 3-10 साल की कैद और न्यूनतम 50,000 रुपये का जुर्माना है।
मौजूदा अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है: "इस अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे।" लेकिन अब जो विधेयक पेश किया गया है उसमें जमानत प्रावधान को और अधिक सख्त बनाने के लिए इसमें एक अतिरिक्त उपधारा जोड़ी गई है। उस उपधारा के मुताबिक “अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का आरोपी व्यक्ति, यदि हिरासत में है, तो उसे तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि लोक अभियोजक (सरकारी वकील) को ऐसी रिहाई के लिए जमानत के आवेदन का विरोध करने का अवसर नहीं दिया जाता है, या जहां लोक अभियोजक जमानत के लिए आवेदन का विरोध करता है। जमानत तभी मिलेगी जब सत्र अदालत इस बात से संतुष्ट हो कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध नहीं किया जा सकता है।''
यहां यह बताना जरूरी है कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार से पहले जब भाजपा की सरकार थी तो इसी तरह वहां भी धर्मांतरण विरोधी कानून को और सख्त बनाया गया था। कर्नाटक पिछली भाजपा सरकार ने कई मामले भी दर्ज किए थे। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने से पहले पिछली भाजपा सरकार धर्मांतरण विरोधी बिल लाई थी। लेकिन जनता ने भाजपा के हिन्दू एजेंडे पर ध्यान न देकर अपने मुद्दे, अपनी समस्याओं के आधार पर वोट डाला था। लेकिन यूपी का मामला अलग लग रहा है। यहां पर पहले से ही कट्टर हिन्दू नेता के रूप में स्थापित योगी आदित्यनाथ खुद को और भी कट्टर साबित करने में जुटे हैं। लेकिन जिस मकसद के लिए वो ये सब कर रहे हैं, वो पूरा हो पाएगा। अपनी ही सरकार में असंतुष्ट नेताओं का सामना कर रहे योगी को क्या इस तरह के हिन्दू एजेंडे बचा पाएंगे।