ये आलम बदी साहब हैं। जिस आज़मगढ़ में सपा ने सारी सीटें जीतीं वहाँ सबसे ज़्यादा वोटों से जीतने वाले विधायक है। पाँचवीं बार जीते हैं। इन चुनावों के दौरान जब भी फ़ोन पर बात हुई, बोलते थे ‘इस बार क्षेत्र में भी नहीं जाने का मन हो रहा, वोटर भी कह रहे इस उम्र में वोट माँगने की ज़रूरत नहीं, आप घर पर आराम करो’।
85 बरस के हैं, एक अंडा, एक गिलास दूध, एक रोटी और एक मौसमी फल इनका दिन भर का आहार है। अब तक के चुनाव भी एक-डेढ़ लाख रुपये ख़र्च कर जीतते रहे हैं। चार-पाँच सौ रुपये के चार पाँच कुर्ते पायजामे होंगे। बीस साल विधायक रहने के बाद भी न कभी नई कार ख़रीद पाए और न नया घर बनवा पाए। ईमानदार शब्द इनके सामने बौना है। आज तक किसी की लहर इनके इलाक़े में न चली है और न चलेगी।
एक बार चुनाव हार गए। बहुत पहले। हार के अगले दिन ही क्षेत्र के यादव गाँव में पहुँच गए। एक बाहुबली यादव जिसने बीएसपी से चुनाव लड़ा था, इन्हें हरा दिया। उस गाँव के यादव परिवार की औरतें इन्हें देखते ही दहाड़ मार के रोने लगीं। बोलीं- चाचा हमने आपको वोट नहीं दिया लेकिन क़सम से नहीं जानते थे आप हार जाएँगे। और उन्हें पकड़ के कहने लगीं अब क्या होगा। अब गलती कैसे सुधरेगी। आलम बदी ने कहा- कोई नहीं, हम तो यही हैं, हार जीत लगी रहती है।
दरअसल, पूरे पाँच साल आलम बदी सुबह नौ बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं। औसतन हर दो महीने में वो हर गाँव पहुँच जाते हैं। उन्हें हर गाँव की सड़क, लाइट, ट्यूबवेल की समस्या सब पता है। निजी काम तो किसी बिरले का ही किया या कराया होगा। ग़लत काम के लिए सिफ़ारिश करनी हो तो अधिकारियों को अंग्रेज़ी में चिट्ठी लिख देते हैं। पर कमाल देखिए लगातार जीत रहे हैं। समाजवादी पार्टी के बड़े लोगों के सामने उनका ज़िक्र कर दीजिए तो मुँह का ज़ायक़ा ख़राब हो जाता है।
आलम बदी हमेशा कहते हैं कि सियासत सेवा है पर सब यहाँ मेवा के चक्कर में...। चुनाव को मेले की तरह जो लेते हैं उनकी दुकान मेले वाली दुकानों की तरह ही हैं। मुझे घर के नाम से पुकारते हैं। बातचीत में हमेशा कहते हैं कि संघ से लड़ने के लिए उनसे बड़ा सेवक बनना पड़ेगा। तीन महीने की हौ हौ और हुड़दंग से शोर तो होता है सीट नहीं मिलती। इस बार चुनाव से पहले विधानसभा में एक दर्जन बीजेपी विधायकों ने इनको घेर लिया… बोले चाचा जीतने का मंत्र बताओ। तो उन्होंने कहा इस बार जीत के आओ, अगली विधानसभा के पहले सत्र में बताऊँगा। पता चला उनमें दस हार गए और जो दो जीते हैं वो भी इनके रास्ते पर कहाँ चलने वाले!
(राजीव रंजन सिंह की फ़ेसबुक वाल से साभार)