उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें और आख़िरी चरण का मतदान सोमवार को हो रहा है। इस चरण में 9 ज़िलों की 54 सीटों के लिए वोटिंग हो रही है। इसमें से 12 सीटें आरक्षित हैं। इस चरण में 2.06 करोड़ मतदाता हैं। तो इस आख़िरी चरण में किस दल की कितनी सीटों पर मज़बूत पकड़ है?
किस दल का पलड़ा भारी है, यह समझने से पहले यह जान लें कि आख़िर इस चरण में वोटिंग कहाँ-कहाँ होगी और मौजूदा स्थिति क्या है। इस चरण में जिन ज़िलों में मतदान होगा उनमें- आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही और सोनभद्र शामिल हैं।
इस चरण में बीजेपी के सहयोगी दल अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी भी कई सीटों पर चुनाव मैदान में हैं जबकि सपा की सहयोगी अपना दल (कमेरावादी) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) भी चुनाव लड़ रही है।
इस चरण में कई बड़े नेताओं की साख दाँव पर है। इसमें योगी सरकार के सात मंत्री शामिल हैं। कैबिनेट मंत्री रहे दारा सिंह चौहान, अनिल राजभर, रवींद्र जायसवाल, नीलकंठ तिवारी, गिरीश यादव, रमाशंकर सिंह पटेल, दुर्गा प्रसाद यादव, आलमबदी आजमी, विजय मिश्रा, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर, धनंजय सिंह, मुख्तार अंसारी के पुत्र अब्बास भी अपनी क़िस्मत आजमा रहे हैं।
तो सवाल है कि किस-किस नेता और किस पार्टी की पकड़ मज़बूत है? क्या यहाँ पिछले चुनाव की तरह नतीजे आएँगे या फिर इस बार के राजनीतिक समीकरण कुछ अलग होंगे?
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इन 54 सीटों में से 29 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 7 सीटें उसके सहयोगी दलों को मिली थीं। सपा को 11 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 6 सीटें बीएसपी के खाते में गई थीं।
इसके उलट 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को यहाँ पर 34 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बीएसपी को 7 और बीजेपी को 4 सीटों पर जीत मिली थी।
2019 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर ऐसी स्थिति रही थी।
इसको जातिगत समीकरणों से भी समझा जा सकता है। इस चरण में मुसलिम और दलितों की आबादी काफ़ी बड़ी है।
दलितों में सबसे ज़्यादा जाटव हैं। दलितों की कुल आबादी में से क़रीब 72.5 फ़ीसदी जाटव हैं और इसके बाद सबसे ज़्यादा 8 फ़ीसदी पासी हैं।
सातवें चरण में ओबीसी में भी सबसे ज़्यादा आबादी यादव की है और उसके बाद कुर्मी की है। क़रीब 16 फ़ीसदी आबादी यादवों की है जिसे सपा का कोर वोटर माना जाता है।
सवर्ण जातियों में सबसे ज़्यादा आबादी ब्राह्मणों की है। ब्राह्मणों को लेकर सवाल पूछा जा रहा है कि वे इस बार किनके पक्ष में मतदान करेंगे। चुनावी विश्लेषक संभावना जता रहे हैं कि पिछले चुनावों से इस बार की तसवीर अलग होगी।
वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्वाचन क्षेत्र है इसलिए बीजेपी इस बार यहां पर बड़ा समर्थन मिलने के प्रति आशावान है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन को इस इलाके में दलित और ओबीसी मतदाताओं का अच्छा साथ मिला था। बीएसपी को गाजीपुर, घोसी, जौनपुर और लालगंज संसदीय क्षेत्रों में जीत मिली थी जबकि अखिलेश यादव आजमगढ़ की सीट से चुनाव जीते थे।