नये वर्ल्ड ऑर्डर को अब तक एक कल्पना बताकर खारिज किया जाता रहा है। इसे महज एक थ्योरी कहा जाता रहा है। लेकिन अब यह हकीकत में बदलता दिखाई दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में सोमवार को यूक्रेन युद्ध पर लाये गये प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका और रूस एकसाथ आ गये। यूएन में यह प्रस्ताव रूस की निन्दा के लिये लाया गया था। अभी तक अमेरिका इस युद्ध में यूक्रेन की मदद करता रहा है। लेकिन ट्रम्प के आने के बाद स्थितियां एकदम से बदल गईं। भारत इस प्रस्ताव पर हुई वोटिंग से दूर रहा। यानी गैरहाजिर रहा।
यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करने वाले एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने के लिए यूएस ने रूस का साथ दिया और अन्य 16 देशों के साथ इसका विरोध किया। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, लेकिन अमेरिका ने इसका कड़ा विरोध किया। अमेरिका ने एक वैकल्पिक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें रूस को युद्ध के लिए दोषी ठहराने या यूक्रेन की सीमाओं का उल्लेख करने से इनकार कर दिया गया था।
यूक्रेन और यूरोपीय देशों द्वारा तैयार किए गए इस प्रस्ताव को 93 वोट मिले, जबकि 18 देशों ने विरोध किया और 65 देशों ने मतदान से दूरी बनाई। संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस प्रस्ताव ने यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन के समर्थन में वोटों की संख्या पहले की तुलना में कम हो गई।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसका शीर्षक था ‘यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति को आगे बढ़ाना’। इसे यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने पेश किया था, जिसमें तनाव कम करने, शत्रुता को जल्द समाप्त करने और युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया गया था। हालांकि भारत यूक्रेन और रूस के बीच शांति का पक्षधर रहा है। भारत में तो एक बार यह तक प्रचार किया गया कि मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा दिया है। इस पर सोशल मीडिया पर मीम भी बने।
- अमेरिका का यह कदम उसकी नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान वॉशिंगटन ने संयुक्त राष्ट्र में पारित सभी प्रस्तावों में यूक्रेन का पूरा समर्थन किया था। बाइडेन ने कीव को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति सुनिश्चित करके युद्ध के मैदान में भी उसकी मदद की थी।
अमेरिका द्वारा पेश किए गए जवाबी प्रस्ताव में यूक्रेन संघर्ष के “शीघ्र अंत” की अपील की गई। लेकिन इसमें यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का कोई जिक्र नहीं था। इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों का समर्थन नहीं मिला। इस प्रस्ताव में इतने बदलाव किए गए कि जब संशोधित प्रस्ताव पर मतदान हुआ, तो अमेरिका ने खुद ही इससे दूरी बना ली। संशोधित अमेरिकी प्रस्ताव को 93 वोट मिले, जबकि 73 देशों ने मतदान से परहेज किया और आठ ने विरोध किया।
संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वासिली नेबेंजिया ने अमेरिका के मूल प्रस्ताव को “सही दिशा में उठाया गया कदम” बताया। यह बयान रूस और अमेरिका के बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में आए नाटकीय बदलावों के बीच दिया गया।
नेबेंजिया ने ट्रंप की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने महसूस किया कि यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की “अपने देश में शांति स्थापित करने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं रखते, क्योंकि वह सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं।”
पिछले महीने ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के बाद कूटनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। उन्होंने रूस के साथ स्पष्ट मेल-मिलाप का रास्ता अपनाया है, जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को “तानाशाह” बताया है।
पुतिन का बयान
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार को कहा कि रूस यूक्रेन में संघर्ष को सुलझाने के मकसद से रूस-अमेरिका शांति वार्ता में यूरोप की भागीदारी का विरोध नहीं कर रहा है। लेकिन उन्होंने कहा कि ब्रुसेल्स ने लंबे समय से मास्को के साथ किसी भी तरह की बातचीत को नामंजूर किया है। रूसी टीवी पर इंटरव्यू में पुतिन ने यह भी कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प रूस-यूक्रेन संघर्ष को भावनात्मक रूप से नहीं बल्कि तर्कसंगत रूप से देख रहे हैं। रूस और अमेरिका ने पिछले सप्ताह सऊदी अरब में यूक्रेन पर बातचीत की शुरुआत की थी। इसमें यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगियों को आमंत्रित नहीं किया गया। इस पर यूक्रेन और यूरोपीय यूनियन ने आपत्तियां उठाई थीं।
(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)