टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज या टीआईएसएस ने अपने सभी चार परिसरों में लगभग 55 प्रोफेसरों और 60 गैर-शिक्षण कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें संस्थान के आधे शिक्षण कर्मचारी और गुवाहाटी में इसके परिसर के सभी गैर-शिक्षण कर्मचारी शामिल हैं। बर्खास्त किए गए शिक्षण कर्मचारियों में से लगभग 20 संस्थान के मुंबई कैंपस से हैं, 15 हैदराबाद से हैं, 14 गुवाहाटी से हैं और छह महाराष्ट्र के तुलजापुर स्थित कैंपस से हैं।
संस्थान के प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम ने एक बयान में कहा, "लगभग सौ स्टाफ सदस्य, जिन्हें पहले टाटा एजुकेशन ट्रस्ट ने फंडिंग की थी, TISS में वर्षों की सेवा के बाद बेरोजगार हो गए। यह संस्थान को चलाने में TISS प्रशासन के वर्तमान नेतृत्व की पूरी तरह से विफलता और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की उदासीनता है।"
रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के बर्खास्त कर दिया गया। उन्हें शुक्रवार रात को बर्खास्तगी का पत्र प्राप्त हुआ। जिसमें कहा गया था कि उनके कॉन्ट्रैक्ट रविवार को खत्म हो जाएंगे। उन्हें टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से अनुमोदन/अनुदान प्राप्त न होने की स्थिति में" नवीनीकृत (रिन्यू) नहीं किया जाएगा।
कार्यवाहक रजिस्ट्रार अनिल सुतार ने बर्खास्तगी वाले पत्र में कहा है कि “संस्थान (टिस) ने वेतन के उद्देश्य से टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से अनुदान जारी करने के लिए आधिकारिक पत्राचार और व्यक्तिगत बैठकों के जरिए अपनी पूरी कोशिश की… अभी तक अनुदान न तो प्राप्त हुआ और न ही आगे विस्तार के संबंध में कोई निर्णय लिया गया है।”
इंडियन एक्सप्रेस ने टिस के एक सदस्य के हवाले से कहा, "हालांकि ट्रस्ट की ओर से कोई सीधा कम्युनिकेशन नहीं आया है कि वे ग्रांट बंद करने जा रहे हैं, लेकिन ग्रांट भेजने के बारे में कोई अन्य कम्युनिकेशन भी नहीं आया है।"
बर्खास्त किए गए सभी लोग कॉन्ट्रैक्ट पर थे। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की बाकी फैकल्टी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पेरोल पर स्थायी कर्मचारी हैं। पिछले जून में यूजीसी के नियमों में बदलाव ने संस्थान को केंद्र के प्रशासनिक दायरे में ला दिया था।
कार्यवाहक कुलपति मनोज तिवारी ने मीडिया को बताया कि इस मामले पर टाटा एजुकेशन ट्रस्ट के साथ चर्चा के लिए एक समिति का गठन किया गया है। उन्होंने कहा, "यदि अनुदान प्राप्त हो जाता है, तो बर्खास्तगी वापस हो सकती है। लेकिन स्थिति में बदलाव न होने की स्थिति में कोई विकल्प नहीं है।" नौकरी से निकाले गए लोगों में शामिल गुवाहाटी परिसर के एक अज्ञात कर्मचारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उसका कॉन्ट्रैक्ट मई में समाप्त हो गया था। लेकिन इस महीने की शुरुआत में, हमें एक ईमेल मिला जिसमें टाटा ट्रस्ट की फंडिंग का नवीनीकरण होने तक संस्थान का काम जारी रखने का अनुरोध किया गया था। ऐसी समझ थी कि कॉन्ट्रैक्ट का नवीनीकरण किया जाएगा।
गुवाहाटी के कर्मचारी ने बताया- “जैसा कि हमारे कॉन्ट्रैक्ट में कहा गया है, हमें एक महीने की नोटिस अवधि भी नहीं दी गई है। हमें अपने जून के वेतन का दावा करने के लिए नो-ड्यूज़ फॉर्म भरने के लिए सिर्फ दो दिन का समय दिया गया है। गुवाहाटी के एक अन्य संकाय सदस्य ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हमें इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि वे हमारी प्रतिबद्धता का सम्मान तक नहीं करेंगे।”