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भीड़ फिर बनी हिंसक, गाय चोरी के शक में युवक को पीटा, मौत

भीड़ फिर बनी हिंसक, गाय चोरी के शक में युवक को पीटा, मौत

गाय चोरी करने के शक में भीड़ ने पीट-पीटकर एक युवक की जान ले ली। भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिए जाने की घटनाएँ पहले भी हो चुकी हैं।

गाय चोरी करने के शक में भीड़ ने पीट-पीटकर एक युवक की जान ले ली। भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिए जाने की घटनाएँ पहले भी हो चुकी हैं। इन घटनाओं से यह साबित होता है कि यह ऐसी उन्मादी भीड़ है जो क़ानून को कुछ नहीं समझती और सिर्फ़ आरोप या शक के आधार पर किसी को भी पीट-पीटकर मार डालने पर उतारू है। 

यह घटना त्रिपुरा के धलाई जिले के रायसियाबारी इलाक़े में मंगलवार रात को हुई। पुलिस उप निरीक्षक अरिंदम नाथ ने अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि मारे गए युवक की पहचान बुधि कुमार के रूप में हुई है। बताया जाता है कि बुधि कुमार गाँव में एक व्यक्ति की गो शाला में घुस गया था। लेकिन उसे वहाँ देखकर गो शाला के मालिक ने शोर मचा दिया। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक़, जब बुधि भागने की कोशिश कर रहा था तो गाँव के कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया और बुरी तरह मारा। रात 12 बजे रायसियाबारी पुलिस को घटना की सूचना मिली तो पुलिस मौक़े पर पहुँची और उसे बचाया। बुधि को एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ अगली सुबह उसकी मौत हो गई। पुलिस का कहना है कि इस बारे में इससे ज़्यादा वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही कह सकती है।

त्रिपुरा गो रक्षक वाहिनी के अध्यक्ष मुर्तजा उद्दीन चौधरी ने कहा कि गाय चोरी करने वालों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। हालाँकि उन्होंने कहा कि लोगों को क़ानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए और पुलिस को ही इस मामले में कार्रवाई करने का हक़ है। 

इसके अलावा पश्चिम बंगाल के मालदा में 20 साल के युवक की भी भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इस मामले में दो लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया है। मालदा के पुलिस अधीक्षक आलोक राजौरिया ने बताया कि मारे गए युवक का नाम सानौल शेख़ था।पुलिस अधीक्षक ने कहा कि यह घटना पिछले बुधवार को वैष्णवनगर बाज़ार इलाक़े में हुई जब शेख़ को बाइक चोरी करते हुए पकड़ा गया था। इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद शेख़ पर हमला करने वालों की पहचान की जा सकी। 

भीड़ के द्वारा पीटे जाने के बाद शेख़ को बेदराबाद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया जहाँ से उसे मालदा मेडिकल कॉलेज में रेफ़र कर दिया गया। हालत ख़राब होने के बाद उसे कोलकाता के एसएसकेएम हॉस्पिटल में शिफ़्ट किया गया लेकिन शनिवार को उसकी मौत हो गई। शेख़ की माँ के द्वारा पुलिस को दी गई शिकायत के बाद पुलिस ने मुक़दमा दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। 

हाल ही में झारखंड के जमशेदपुर में भीड़ ने बाइक चोरी के शक में तबरेज़ अंसारी नाम के युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। तबरेज़ की हत्या के बाद से ही पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं जब भीड़ ने क़ानून को अपने हाथ में ले लिया। मालदा में हुई घटना उसी तरह की है जिस तरह तबरेज़ की भीड़ के द्वारा हत्या की गई थी। उसी तरह त्रिपुरा जैसी भी कई घटनाएँ हो चुकी हैं। 

गो तस्करी के शक में पहलू ख़ान, रक़बर की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा मुसलमानों को ‘जय श्री राम’ और ‘वंदे मातरम’ बुलवाने के नाम पर पीटे जाने की भी कई घटनाएँ हाल ही के दिनों में हो चुकी हैं।

अब सवाल यह है कि यह भीड़ क़ानून को अपने हाथों में क्यों लेती जा रही है। किसी भी तरह की चोरी के आरोप में या शक के आधार पर किसी को भी पीट-पीटकर हत्या कर दिए की घटनाएँ सभ्य समाज के माथे पर कलंक हैं। भीड़ के द्वारा क़ानून को हाथ में लेने की बढ़ रही घटनाओं से हम लोकतंत्र के बजाय भीड़तंत्र में बदलते जा रहे हैं। 

यह उन्मादी भीड़ अपने हिसाब से किसी को भी सजा देने के लिए तैयार खड़ी है और अब तो ऐसा लगने लगा है कि इसे रोकना आसान नहीं है। यह भीड़ कब किसकी जान ले ले, कोई नहीं जानता लेकिन ऐसी घटनाओं को आख़िर कब तक नज़रअंदाज करें।

पिछले महीने उत्तर प्रदेश के बरेली में मजदूरों को मंदिर में माँस खाने के आरोप में जमकर पीटा गया था। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। आंकड़ों के मुताबिक़, 2015 के बाद, पशु चोरी या पशु तस्करी को लेकर भीड़ के द्वारा हमला करने की 121 घटनाएँ हो चुकी हैं, जबकि 2012 से 2014 के बीच ऐसी कुल 6 घटनाएँ हुई थीं। अगर 2009 से 2019 के बीच हुई ऐसी घटनाओं को देखें तो 59 फ़ीसदी मामलों में हिंसा का शिकार होने वाले मुसलिम थे और इसमें से 28% घटनाएँ पशु चोरी और पशुओं की तस्करी से संबंधित थीं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि ऐसी 66% घटनाएँ बीजेपी शासित राज्यों में हुईं जबकि 16% घटनाएँ कांग्रेस शासित राज्यों में।

सभी राज्य और केंद्र सरकारें आख़िर इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं करतीं। आख़िर कैसे भीड़ को क़ानून अपने हाथ में लेने का अधिकार दिया जा सकता है। ऐसे में तो पुलिस, प्रशासन, मीडिया का काम करना बेहद मुश्किल हो जाएगा क्योंकि यहाँ कोई किसी की बात सुनने को तैयार नहीं है। भीड़ ख़ुद ही जज है और फ़ैसला सुनाने के बाद ख़ुद ही सजा दे देती है।

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