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'राजद्रोह' से बरी होने के बाद कितनी बदली सोनी सोरी की ज़िंदगी?

'राजद्रोह' से बरी होने के बाद कितनी बदली सोनी सोरी की ज़िंदगी?

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून पर रोक लगा दी है। क्या इस क़ानून की ज़रूरत है? इसका आकलन छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी पर लगाए गए राजद्रोह के आरोपों से भी लगाया जा सकता है। वह आरोपों से बरी हो गईं, लेकिन ज़िंदगी तबाह हो गई।

सोनी सोरी पर राजद्रोह केस का क्या नतीज़ा निकला? वही छत्तीसगढ़ की जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता जिनपर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया था। जिन्होंने पुलिस हिरासत में कथित तौर पर अमानवीय प्रताड़नाएँ झेलीं। जिनकी ज़िंदगी के 11 साल तबाह हो गए। जिनका परिवार बिखर गया। और जिन बच्चों को एक अच्छी ज़िंदगी देने के लिए पढ़ाती थीं उनमें से अधिकतर बच्चे पढ़ाई छूटने के बाद माओवादी बन गए। 

2011 में जिस राजद्रोह के मुक़दमे ने उनकी ज़िंदगी को तबाह कर दिया उन आरोपों से उन्हें इसी साल मार्च में बरी कर दिया गया। यानी 11 साल जिन आरोपों से उनकी ज़िंदगी तबाह की गई वे आरोप दरअसल ग़लत लगाए गए थे। उन पर राजद्रोह के कुल छह मुक़दमे दर्ज किए गए थे। उन्हीं मामलों में 15 मार्च 2022 को दंतेवाड़ा की एक विशेष अदालत ने उन्हें बेगुनाह पाते हुए बाइज़्ज़त बरी कर दिया। इन मामलों में बरी हुए दो महीने हो भी गए हैं तो क्या उन्होंने इन 11 सालों में जो खोया वह अब लौट कर आ सकता है? इन राजद्रोह के मुक़दमों ने जो उनसे छीना, क्या उन्हें वापस मिल सकता है? आख़िर राजद्रोह जैसे मामले क्या बिना सबूत के ही उन पर लाद दिए गए थे? ऐसे हालात में सोनी सोरी कोर्ट के फ़ैसले के बाद कितनी खुश हैं? 

इस पर वह क्या कहती हैं, यह जानने से पहले आप उन घटनाक्रमों को जान लीजिए जो उनके जो उनके साथ इतने सालों तक बीता। 

सोनी सोरी और उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी पर सितंबर 2011 में पहली बार दंतेवाड़ा पुलिस ने मुक़दमा दर्ज किया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि एस्सार कंपनी की ओर से उन्होंने नक्सलियों तक 15 लाख रुपए पहुंचाए थे। इसके पहले उन पर नक्सलवाद या अन्य किसी अपराध से जुड़ा कोई भी मुक़दमा दायर नहीं था।

पुलिस ने तब दावा किया था कि पुलिस की घेराबंदी के बाद भी समेली स्कूल की शिक्षिका सोनी सोरी फ़रार हो गई थीं, जबकि उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को गिरफ़्तार कर लिया गया था। तब सोनी सोरी ने आशंका जताई थी कि वे और उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी, पुलिस के फ़र्ज़ी मुठभेड़ों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं, इसलिए उन्हें फँसाया गया है। पुलिस ने अक्टूबर, 2011 को अपने वकील से मिलने जा रही सोनी सोरी को दिल्ली के साकेत कोर्ट परिसर से गिरफ़्तार करने का दावा किया था। 

पुलिस ने तब आरोप लगाया था कि इन लोगों ने प्रतिबंधित माओवादी संगठन की न केवल मदद की है, बल्कि सरकार के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई में सहयोग भी किया। इसी के साथ उनपर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया गया था।

अब वह राजद्रोह के आरोपों से बरी हो गई हैं। बीबीसी से उन्होंने बातचीत में कहा, 'मुझ पर राजद्रोह के साथ कुल 6 मामले दर्ज किए गए। सभी एक से बढ़ कर एक। मुझे इन सभी मामलों में बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया है। लेकिन राजद्रोह के मामले ने मेरे जीवन में खुशियों की कोई जगह ही नहीं रहने दी।' 

वह कहती हैं कि 'मेरी ज़िंदगी में उन 11 सालों के जितने घाव हैं, वो अब भी ताज़ा हैं। वो रिसते रहते हैं, वो उसी तरह दर्द देते रहते हैं।' उन्होंने बीबीसी से कहा, 'मुझे लगभग साढ़े 10 साल तक इस कलंक के साथ जीना पड़ा कि मैं जिस भारत देश की आदिवासी बेटी हूँ, उसने अपनी माँ, भारत माँ के साथ विद्रोह किया है। जेल के पिंजरे में मैंने भले सवा दो साल गुज़ारे हैं, लेकिन इन 10-11 सालों में भी राजद्रोह के आरोप के कारण अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाई।' वह कहती हैं कि कहीं काम तलाशने की कोशिश की तो काम नहीं मिला और हर कहीं राजद्रोह का आरोप जैसे मेरे साथ चिपका हुआ था। 

गिरफ़्तारी के बाद की प्रताड़ना को लेकर सोनी कहती हैं, 'मुझे प्रताड़ित और अपमानित करने के लिए कपड़े उतार दिए जाते थे। मुझे पीटा जाता था। पुलिस वाले गंदी टिप्पणियां करते थे। पुलिस हिरासत में मुझे नंगा रखा जाता था। कई बंदी और क़ैदियों को लगता था कि मैं देशद्रोही हूँ, इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से उनके लिए घृणा की पात्र थी।' हालाँकि पुलिस ने इन आरोपों को खारिज कर दिया।

सोनी सोरी बताती हैं कि जब वे जेल में थीं, उसी दौरान उनकी माँ नहीं रहीं। पुलिस प्रताड़ना से पति अनिल फुटाने की भी मौत हो गई। बच्चों की पढ़ाई छूट गई। पूरा परिवार बिखर गया। वह कहती हैं कि जिन 50 बच्चों को मैं स्कूल में पढ़ाती थी, उनमें से 30 बच्चे माओवादी बन गये, दूसरे बच्चे पढ़ाई से वंचित हो गए।

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