अमेरिका की मुख्य राजनयिक एलिस वेल्स ने भारत सरकार से कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर में नज़रबंद किये गये नेताओं को रिहा करे। जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से ही कई पाबंदियां लागू की गई थीं और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को नज़रबंद रखा गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने राज्य के सभी जिलों में इंटरनेट सेवाओं को बहाल कर दिया है।
दक्षिण और केंद्रीय एशियाई मामलों की वरिष्ठ राजनयिक वेल्स ने वाशिंगटन में आयोजित न्यूज़ ब्रीफ़िंग में शुक्रवार को कहा कि हाल ही में विदेशी राजनयिकों का जम्मू और कश्मीर का दौरान एक बेहतर क़दम था। वेल्स ने कहा, ‘मैं कश्मीर के कुछ इलाक़ों में इंटरनेट सेवाओं को चालू करना और हमारे राजदूतों और अन्य विदेशी राजनयिकों के जम्मू-कश्मीर के दौरे जैसे क़दमों को देखकर ख़ुश हूं। इसे बड़े स्तर पर मीडिया में कवर किया गया। हम इसे उपयोगी क़दम मानते हैं।’
वेल्स ने कहा, ‘हम सरकार से अपील करेंगे कि वह हमारे राजनयिकों को वहां जाने की नियमित तौर पर अनुमति दे और जिन नेताओं को बिना आरोपों के हिरासत में लिया गया है, उन्हें रिहा करने की दिशा में तेज़ी से क़दम बढ़ाये।’ वेल्स कुछ दिनों पहले ही एशियाई देशों की यात्रा पर थीं और उन्होंने नई दिल्ली में एक कॉन्फ़्रेंस में भी शिरकत की थी।
इस महीने की शुरुआत में 15 देशों के राजनयिकों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद यह पहला मौक़ा था जब विदेशी राजनयिकों ने राज्य का दौरा किया था। इन राजनयिकों को पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती से मिलने की अनुमति नहीं दी गई थी। यूरोप के कुछ देशों के राजनयिकों ने उन्हें स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति नहीं मिलने पर राज्य के दौरे पर आने से इनकार कर दिया था।
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता और केंद्र सरकार से कश्मीर में लगाये गये प्रतिबंधों से जुड़े सभी आदेशों की एक हफ़्ते में समीक्षा करने के लिए कहा था। भारत सरकार का कहना था कि घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित घुसपैठ को रोकने के लिए इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया जाना ज़रूरी था।
वेल्स ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर भी बात की और कहा कि उन्हें भारत की यात्रा के दौरान इस क़ानून को लेकर भी जानकारी मिली। वेल्स ने कहा, ‘इस मुद्दे पर विपक्षी राजनीतिक दलों के द्वारा सड़कों पर हो, मीडिया में हो या अदालतों में, भारत जबरदस्त लोकतांत्रिक समीक्षा के दौर से गुजर रहा है।’
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर देश भर में जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं। यह क़ानून तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आये धार्मिक अल्पसंख्यकों जिनमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी शामिल हैं, को भारत की नागरिकता देता है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह क़ानून लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे के ख़िलाफ़ है जबकि सरकार का कहना है कि यह पड़ोसी देशों में धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है।