देश के गणतंत्र हुए सात दशक से ज़्यादा हो गए। देश भर में जगह-जगह राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया जा रहा है। साल 2002 से पहले आम लोग केवल गिने-चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़कर सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहरा सकते थे। अदालत में लड़ाई लड़ने के बाद भारतीय झंडा संहिता में 26 जनवरी 2002 को संशोधन किया गया। इसमें आम जनता को वर्ष के सभी दिनों में झंडा फहराने की अनुमति दी गयी और ध्वज की गरिमा, सम्मान की रक्षा करने को कहा गया।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तिरंगे झंडे में इस्तेमाल प्रतीकों का क्या मतलब है? तीन अलग-अलग रंगों के क्या मायने हैं? क्या आपको यह पता है कि आख़िर तिरंगा झंडा बना कैसे और किसने इसे बनाया? कब इसे स्वीकार किया गया? जानिए, इन सब सवालों के जवाब।
भारत का तिरंगा झंडा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के काल में विकसित हुआ है। कई महान क्रांतिकारियों ने अलग-अलग रंग-रूप के झंडे तले क्रांति की। इनके रंग-रूप अनेक रहे लेकिन सभी जन एक थे और उनका उद्देश्य भी एक था। स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान कई अलग-अलग ध्वज का प्रयोग किया गया।
कहा जाता है कि 1857 में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय राष्ट्रीय ध्वज बनाने की योजना बनी थी, लेकिन वह आंदोलन अचानक ख़त्म हो गया था। तब झंडा नहीं बन पाया था। पहली बार झंडा 1904 में स्वामी विवेकानंद की एक शिष्या द्वारा बनाया गया था। पहली बार उस झंडे को 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान चौक कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। उस झंडे में लाल, पीले और हरे रंग की पट्टियाँ थीं। बीच की पीली पट्टी पर वन्देमातरम् लिखा था।
1917 में भी एक नये प्रकार का झंडा सामने आया था। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने इस झंडे को फहराया था। इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी पट्टियाँ थीं। इसके साथ सप्तऋषि के क्रम में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर यूनियन जैक भी था।
लेकिन मौजूदा तिरंगा झंडे से मिलता जुलता जो झंडा बना था वह 1921 में सामने आया था। इसे आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया ने बनाया था।
पिंगली का बनाया वह झंडा दो रंगों का था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करते थे। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
1931 में तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली। इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंगों की तीन पट्टियाँ थीं और मध्य में गांधी जी का चलता हुआ चरखा था। इसमें यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।
आज़ाद भारत का झंडा
1931 में अपनाए गए झंडे में 1947 में मामूली बदलाव किया गया। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने मौजूदा ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज आख़िरकार स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा बना। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा।
तीन रंगों के मायने क्या?
तिरंगे में तीन रंग होते हैं जिनमें शीर्ष पर केसरिया होता है जो देश की ताक़त और साहस को दर्शाता है। केंद्र में सफेद शांति और सच्चाई का प्रतीक है। नीचे का हरा रंग देश की धरती की उर्वरता, वृद्धि और शुभ या मंगल को दर्शाता है। अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है, केंद्र में रखा गया है और इसमें 24 तीलियाँ हैं जो दर्शाती हैं कि जीवन गतिमान है।
पहले भारतीय नागरिकों को चुनिंदा अवसरों को छोड़कर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी। यह उद्योगपति नवीन जिंदल द्वारा एक दशक की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बदल गया।
23 जनवरी, 2004 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले में घोषित किया गया था कि राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान के साथ स्वतंत्र रूप से फहराने का अधिकार हर भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में इसे जोड़ा गया।
दिसंबर 2021 से पहले मशीन से बने और पॉलिएस्टर से बने राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की अनुमति नहीं थी। लेकिन दिसंबर 2021 में इसकी अनुमति दे दी गई। अब हाथ या मशीन से बना हुआ कपास, पॉलिएस्टर, ऊन, रेशमी खादी से बना तिरंगा भी फहराया जा सकता है।
भारतीय कानून के अनुसार ध्वज को हमेशा 'गरिमा, निष्ठा और सम्मान' के साथ देखना चाहिए। सरकारी नियमों में कहा गया है कि झंडे का स्पर्श कभी भी जमीन या पानी के साथ नहीं होना चाहिए। उस का प्रयोग मेजपोश के रूप में, या मंच पर नहीं ढका जा सकता, इससे किसी मूर्ति को ढका नहीं जा सकता न ही किसी आधारशिला पर रखा जा सकता है।