न्यूज़ीलैंड में पिछले हफ़्ते दो मसजिदों पर हमले में क़रीब 50 लोगों की मौत हो गयी। हमले के कुछ ही घंटे बाद न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा एर्डर्न ने न्यू प्लाईमाउथ में प्रेस कॉन्फ़्रेंस किया। उसी दिन उन्होंने दो बार राष्ट्र को संबोधित किया और क्राइस्टचर्च की घटना को न्यूज़ीलैंड के इतिहास की सबसे ख़राब घटना बताया।
अब भारत में पुलवामा में हमले के बाद भारत के प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया को पढ़िए। लेकिन ज़रा कंप्यूटर स्क्रीन से नज़र हटाइये, अनुलोम-विलोम करिये और गहरी साँस ले लीजिये। फिर इस पर नज़र डालिये।
पुलवामा हमला और प्रधानमंत्री मोदी
पुलवामा में जवानों पर हमला 3.15 बजे हुआ था और इस पर प्रधानमंत्री का पहला ट्वीट 6.46 बजे आया। एक ट्वीट करने में प्रधानमंत्री को क़रीब साढ़े तीन घंटे लग गए। इस साढ़े तीन घंटे प्रधानमंत्री क्या कर रहे थे? कई जगह मीडिया रिपोर्टें आयीं कि जब पूरा देश शोक में डूबा हुआ था तब प्रधानमंत्री उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में फ़िल्म की शूटिंग में व्यस्त थे। पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने भी प्रधानमंत्री की शूटिंग की तसवीर को ट्वीट कर दिया। इसमें वह कैमरा के साथ नौका विहार करते नज़र आ रहे थे। हालाँकि प्रधानमंत्री के समर्थकों ने दावा किया कि शूटिंग पुलवामा हमले से पहले ही ख़त्म हो गयी थी। इस पूरे मामले में लीपापोती की कोशिश की गयी। इसमें बताया गया कि दरअसल, प्रधानमंत्री जिस इलाक़े में थे वहाँ नेटवर्क सही नहीं था, इसलिए प्रधानमंत्री को हमले की जानकारी देने में देरी हुई। डिजिटल इंडिया के ‘अगुआ’ के इस तर्क पर ठहाके लगा कर हँसा जा सकता है और हँसिये भी, सेहत अच्छी रहेगी!
हमले के दिन प्रधानमंत्री सिर्फ़ एक ट्वीट करते हैं और हमले के अगले दिन प्रधानमंत्री ‘प्रचारमंत्री’ बन कर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ ट्रेन का उद्घाटन करने पहुँच जाते हैं।
प्रधानमंत्री ने न तो देश को संबोधित किया और न ही कोई प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। मीडिया की बात करना भी बेमानी है। पिछले पाँच साल में एक भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस न करने का रिकॉर्ड निश्चित ही प्रधानमंत्री टूटने देना नहीं चाहते होंगे! पर हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। यह परम्परा नयी है। गूगल के तहख़ाने में जाइये और देखिये नवंबर, 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्र को संबोधित किया था और लोगों से शांत रहने की अपील की थी।
पुलवामा हमले को ही देख लीजिये। इस हमले के बाद, जब देश के अलग-अलग जगहों पर कश्मीरियों पर हमला होना शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री को यह कहने में कि ‘हमारी लड़ाई कश्मीर के लिए है न कि कश्मीरियों के ख़िलाफ़’ एक हफ़्ते से ज़्यादा का वक़्त लग जाता है। वह भी तब जब सामाजिक नागरिक संगठनों के दबाव बनने के बाद।
पुलवामा हमले पर भारत के मीडिया की रिपोर्टें और न्यूज़ीलैंड के मीडिया की रिपोर्टें देंखें। भारत के अधिकतर मीडिया की रद्दी रिपोर्टों को पढ़ने के बाद खाली टाइम मिले तो आप भी पढ़िए। न्यूज़ीलैंड के मीडिया को देखने, पढ़ने और समझने की कोशिश करें।
देखिये कि क्या हमले के बाद वहाँ के न्यूज़रूम भी क्या वॉर-रूम बन गए हैं? वहाँ के एंकर क्या युद्ध-उन्माद की भाषा बोल रहे हैं? वहाँ के पत्रकार क्या सूत्रों के हवाले हो गए हैं?
आप यह भी देखें कि क्या वहाँ के नागरिक फ़ेसबुक पर देशभक्ति की कविताएँ लिख रहे हैं या सरकार से सवाल पूछ रहे हैं? वहाँ की प्रधानमंत्री कहीं चुनाव प्रचार करने तो नहीं निकल गयी हैं? मैं देखना चाहता हूँ कि हमले के बाद प्रधानमंत्री जेसिंडा एर्डर्न कहीं अपना बूथ सबसे मज़बूत करने तो नहीं निकल गयीं?