हिंदुस्तान या मंदिरस्तान?
इस आदमी ने इस देश के हिंदुओं के बड़े हिस्से को पागल बना रखा है। लोग रोजी-रोटी की चिंता छोड़, अब हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने में लगे हैं। पता नहीं कौनसे इतिहास के किन गली-कूचों से निकलकर इतिहासकार आ रहे हैं और जहां देखो, वहां मस्जिद के नीचे प्राचीन मंदिर प्रकट करवा रहे हैं! इस पर उत्पात मचा रहे हैं, तोड़फोड़ करवा रहे हैं, भीड़ को हिंसा करने पर तैयार कर रहे हैं। हत्याएं करवा रहे हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे मंदिर, जामा मस्जिद के नीचे मंदिर, अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे मंदिर, संभल की जामा मस्जिद के नीचे मंदिर, ईदगाह मस्जिद के नीचे मंदिर। मंडी में मस्जिद के नीचे मंदिर। मंगलूर में मस्जिद के नीचे मंदिर। इस तरह और भी मस्जिदों में और भी मंदिर बताए जा रहे हैं। वह आदमी मौन स्वीकृति लक्षणम् की मुद्रा में चुपचाप बैठा है। होने दो, मरने दो, उसका छुपा हुआ नारा है, उसके मन की सच्ची बात है।
कितने मंदिर चाहिए आखिर इन्हें? इस देश में कम से कम एक करोड़ मंदिर तो होंगे ही। लगभग हर गांव, हर शहर, हर गली, हर नुक्कड़ पर एक मंदिर है। लगभग हर हाउसिंग सोसायटी में एक मंदिर है। हर हिंदू के घर में निजी- पारिवारिक मंदिर है। पार्कों में पहले दो मूर्तियां रखी जाती हैं, फिर वहां एक दिन मंदिर प्रकट करवा दिया जाता है। किसी से बदला लेना हो तो किसी और को सपने में ईश्वर दिखने लग जाते हैं कि यहां मेरा मंदिर था और वहां एक मंदिर प्रकट हो जाता है। इस तरह घर और बाहर के सभी तरह के मंदिरों को जोड़कर देखें तो दस करोड़ से कम मंदिर तो किसी भी हालत में नहीं होंगे।
इसके अलावा किसी भी सड़क पर या उसके किनारे कभी भी चंदोवा तन जाता है। वाहनों को रास्ता बदलना पड़ता है। वहां एक से लेकर सात दिन, सात रात के लिए मंदिर बन जाता है। ये यज्ञ और वो यज्ञ शुरू हो जाता है। दुर्गा की स्थापना हो जाती है। गणपति उत्सव आरंभ हो जाता है। वैष्णो देवी की चौकी बैठ जाती है, 'विशाल भगवती जागरण' शुरू हो जाता है। सत्यनारायण कथा या हनुमान चालीसा या सुंदर काण्ड का पाठ आरंभ हो जाता है।
हर वटवृक्ष भी स्वयं में एक मंदिर है। हर घर का तुलसी चौरा या गमले में उगा पौधा भी एक मंदिर है। हर गाय एक चलता-फिरता मंदिर है। किसी भी पत्थर पर सिंदूर पोत दो, वह मंदिर है। चांद और सूरज देवता हैं तो हिंदुओं के आकाश में भी दो मंदिर हैं। पाताल में भी मंदिर हैं। ऑनलाइन भी मंदिरों के दर्शन आजकल सुलभ हैं। रेडियो और टीवी भी पार्टटाइम मंदिर की भूमिका में हैं। वहां हर सुबह भजन -कीर्तन -उपदेश होते हैं। सुबह नौ- दस बजे से नफरत मंडली का गायन -वादन- कीर्तन- भजन शुरू हो जाता है।
हर बड़ा पत्थर, हर नदी से प्राप्त चपटा- गोल पत्थर एक संभाव्य देवता का संभावित मंदिर है। हर काला या सफेद संगमरमर का पत्थर मंदिर और मूर्ति की संभावनाओं से युक्त है। फिर अनेकानेक आश्रम हैं, मठ हैं, डेरे हैं और भी न जाने क्या-क्या हैं!
हिंदुस्तान का शायद ही कोई कोना अब मंदिर होने से बच पाया हो और होगा तो उसका भी शीघ्र ही मंदिरीकरण प्रस्तावित होगा। इसके अलावा अनेक भव्य मंदिर निर्माणाधीन हैं।
इस तरह देखें तो हर हिंदू के पीछे औसतन एक मंदिर या मठ आदि है। उसके दांये मंदिर है तो बांये भी मंदिर है। ऊपर मंदिर है तो नीचे भी मंदिर है। आगे मंदिर है तो पीछे भी मंदिर है। फिर कण -कण में भगवान हैं तो कण- कण में भी मंदिर हैं।
देवता भी सैकड़ों- हजारों में हैं। हर जाति के, हर गांव के, हर क्षेत्र के स्थानीय देवता हैं। राम को देवता माननेवाले हैं तो रावण को देवता मानने वाले थोड़े हैं, पर हैं। अब तो तमाम भगवाधारी भी देवता बनने की जुगाड़ में हैं वरना वे देवतातुल्य तो होते ही हैं। कुछ तो उनके पैर धोकर उसके पानी का चरणामृत ले रहे हैं। कथावाचक भी अब देवतुल्य हो चुके हैं।
हर ब्राह्मण अपने आप में एक जीवित मंदिर है। हर पति-चाहे वह जैसा भी हो-पत्नी के लिए उसका निजी देवता है। इस तरह हिंदू धर्म मंदिरों, साधुओं, पुजारियों, यज्ञों-हवनों, गायों से गले-गले तक लदाफंदा है। फिर भी और मंदिर चाहिए। हर मस्जिद के नीचे एक मंदिर का निवास बताया जा रहा है। अभी तो फिर भी कम हैं। अगर यह जुनून इस तरह बढ़ता रहा तो हर सड़क, हर मोहल्ले में गड्डे खुदे होंगे, वहां मंदिर प्रकट हो चुका होगा। और यह सिलसिला मस्जिद तक सीमित नहीं रहेगा। शीघ्र ही साहेब के हर विरोधी के अपने घर के नीचे भी एक प्राचीन मंदिर पाया जाना लगेगा!
एक बार यह तय हो जाना चाहिए कि हिंदू कितने मंदिर इस देश को चाहिए? अभी औसतन एक मंदिर है, दो मंदिर चाहिए या दस मंदिर चाहिए या सौ मंदिर चाहिए? घर चाहिए या वह भी नहीं चाहिए? सड़क चाहिए या भी नहीं चाहिए? अस्पताल और स्कूल चाहिए या नहीं चाहिए? या सारा काम मंदिर से ही चल जाएगा? तब तक हिंदुस्तान का नाम मंदिरस्तान हो जाएगा। फिर दिनभर के सारे काम वहीं होंगे!